कविता ! “भान होना चाहिये”

“भान होना चाहिये”

लुटेरे को शीश चढा कितना भी मान करें,
बोलने से पहले विचार होना चाहिये।

अरबी मसीहा जिसे लिख इठलाते तुम,
उसके गुनाहों का तो ज्ञान होना चाहिये।

अपना जमीर बेच लिखते मसीहा जिसे,
ऐसे आताताई का विरोध होना चाहिये।

राम जी के लिए लड़ा हमने संग्राम बड़ा,
तुम्हें इन बातों का तो भान होना चाहिये।

कवि – अशोक राय वत्स
रैनी, मऊ उत्तरप्रदेश 8619668341

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