इंटरनेट का स्वामी कौन ?

लखनऊ (उत्तर प्रदेश ), 26 मार्च 2018।आज डाटा, आडियो, वीडियो व फोटो आदि के एक से दूसरे स्थान के संप्रेषण के लिए इंटरनेट अत्यंत आवश्यक मीडिया है। इंटरनेट आज हमारी जरूरत के साथ-साथ आदत भी बन चुका है।इसकी सहायता से हम काफी दूर दराज के महत्वपूर्ण कार्य भी पलक झपकते आसानी से पूर्ण कर लेते हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डीजिटल इंडिया की सोच बगैर इंटरनेट के कभी पूरी नहीं हो सकती। इंटरनेट के माध्यम से हम बैंक से लेनदेन, सामानों की खरीदारी, डाटा व फाइलों के आदान प्रदान सहित अनेकों जीवनोपयोगी कार्य कम समय में करते हैं जिससे शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के श्रम की बचत होती है। इंटरनेट के माध्यम से आज पूरा विश्व एक परिवार बनकर रह गया है । इसकी सहायता से मिनटों में एक देश की सूचना का आदान प्रदान दूर दराज के देशों में किया जा रहा है। इंटरनेट का बखूबी प्रयोग करने वाले भी अधिकांश लोग यह नहीं जान पाते कि आखिर इंटरनेट है क्या ? तथा इंटरनेट का मूल स्वामी कौन है जो इसे संचालित करता है। वास्तविकता यह है कि इंटरनेट का आविष्कार किसने किया और कौन इसका स्वामी है इसके बारे में लोगों को बहुत ही कम जानकारी है। इस संबंध मे प्राप्त जानकारियों के अनुसार डेटा के द्वारा हमारा मोबाइल हजारों किलोमीटर दूर रखें वेबसाइट की सरवर से हमारे मोबाइल या कंप्यूटर तक पहुंचता है ।वास्तव में इंटरनेट की क्षेत्र में काम करने वाली टेलीकॉम कंपनियां वेबसाइट और सरवर के मध्य सम्पर्क (कनेक्शन) बनाती हैं और इसी कनेक्शन के लिए वे कंपनियां हमसे डेटा का शुल्क लेती है।हमारे देश में काम करनेवाली टेलीकॉम कम्पनियां जैसे आईडिया,एयरटेल, वोडाफोन, जीओ जैसी राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वाली कम्पनी इंटरनेट प्रयोग करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय टेलीकॉम कंपनियों को शुल्क देती है। यह अंतरराष्ट्रीय टेलीकॉम कंपनियां समुद्र के नीचे ऑप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी )के जरिए एक देश से दूसरे देश को जोड़ती हैं । वास्तव में देखा जाए तो इंटरनेट का कोई एक व्यक्ति या विशेष देश स्वामी नहीं है। इंटरनेट की उत्पत्ति और उसमें होने वाली सभी अविष्कारों के लिए कई देशों की सरकारों तथा निजी क्षेत्र, इंजिनियर्स कमेटी, सिविल सोसाइटी आदि के लोगों के अलावा और कई क्षेत्रों का सहयोग होता है। हम किसी वेबसाइट को खोलने के लिए ब्राउज़र के एड्रेस बार में वेबसाइट का डोमेन टाइप करते हैं , इसे आईकैन अर्थात इंटरनेट कारपोरेशन फार ऐसाइन्ड नेम्स एण्ड नम्बर जारी करती है। आईकैन जैसी बड़ी कंपनियां अमेरिका की हैं ।एमेजन, एलेक्सा जैसी वेवसाईट अमेरिका की है ।इसलिए अमेरिका का इंटरनेट पर दबदबा ज्यादा माना जाता है। इंटरनेट के एकाधिकार को बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में लाए जाने की कोशिश हो रही है।

इंटरनेट के ऑप्टिकल फाइबर केबल का जाल समुद्र में कई देश की कंपनियों द्वारा फैलाया गया है, परंतु वह पर कोई भी टावर नहीं है ।समुद्र में फैली इन केवल को सबमरीन केबल भी कहा जाता है। शीशे से निर्मित इन केबल की मोटाई मानव बालों की मोटाई सदृश होती है। सारा डेटा इन्हीं केबल से होकर गुजरते हुए अपने गंतब्य तक पहुंचता है। इसमें डेटा ट्रांसफर की गति सौ जीबी प्रति सेंकेड होती है। इन्हीं केबल के द्वारा इंटरनेट के 99 प्रतिशत डेटा का आदान प्रदान होता है जबकि एक प्रतिशत डेटा सेटेलाइट के द्वारा संचालित होता है। समुद्र में आप्टिकल फाइबर केबल के माध्यम से इंटरनेट को पूरी दुनिया में फैलाने का कार्य करने वाले कंपनियों को टियर वन के नाम से जाना जाता है।जैसे – स्प्रिंट, आरेंज (ओपेन ट्रांजिट),एनटीटी कम्युनिकेशन्स, टाटा कम्युनिकेशन्स (भारत) आदि हैं। यही कंपनियां संयुक्त रुप से इंटरनेट का संचालन आदि हैं,अर्थात इंटरनेट की बादशाहियत इन्हीं के पास हैं । इनसे ही जो कम्पनियाँ डेटा खरीदती हैं उन्हें टियर टू कम्पनी कहते हैं। ऐसी कंपनियों में बीएसएनएल,एयरटेल, रिलायंस आदि आती हैं।पुनः टियर टू कम्पनियां स्वयं या फिर अपने से छोटी कंपनियों (टियर थ्री) के माध्यम से डेटा उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराती हैं। इनके द्वारा उपलब्ध कराये गये डेटा के माध्यम से ही हम कम्प्यूटर व मोबाइल पर इंटरनेट का लाभ ले पाते हैं।

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