छठ व्रत !

बक्सर (बिहार),23 मार्च 2018। चैत्र माह की षष्ठी का सूर्योपासना का महत्वपूर्ण पर्व (चैती छठ) इस वर्ष शुक्रवार को धूमधाम से मनाया जा रहा है। भविष्य पुराण के अनुसार कार्तिक मास तथा चैत्र मास की छठ (चैत छठ) का विशेष महत्व है। चैत्र मास में नवरात्र के दौरान ही हर साल षष्ठी तिथि को चैत छठ पर्व मनाया जाता है। पुराण में बताया गया है कि चैत्र मास में सूर्यदेव की पूजा विवस्वान के नाम से होती है।

इन दिनों पुराणों के अनुसार वैवस्वत मनवंतर चल रहा है। इस मन्वंतर में सूर्यदेव ने देवमाता अदिति के गर्भ से जन्म लिया था और विवस्वान एवं मार्तण्ड कहलाए। इन्हीं की संतान वैवस्वत मनु हुए जिनसे सृष्टि का विकास हुआ है। शनि महाराज, यमराज, यमुना, एवं कर्ण भी इन्हीं की संतान हैं। भगवान राम भी इन्हीं के वंशज माने जाते हैं क्योंकि उनका जन्म वैवस्वत मनु के पुत्र इच्छवाकु के कुल में हुआ है। इसलिए भगवान श्रीरामचन्द्रजी अपने कुल पुरुष सूर्यदेव की पूजा और छठ व्रत किया करते थे। पुराणों में बताया गया है कि इनकी पूजा से पृथ्वीलोक में धन-धान्य, आरोग्य और संतान सुख की प्राप्ति होती है। सूर्य षष्ठी व्रत के दिन सूर्यदेव के साथ छठ माता की पूजा का भी विधान है। छठ को संतान सुख प्रदान करने वाला माना गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सृष्टि से पहले मनु स्वयंभू मनु के पुत्र प्रियव्रत के मरे हुए पुत्र को इन्होंने जीवन प्रदान किया था। इसके बाद राजा प्रियव्रत ने अपनी प्रजा से कहा कि वह संतान सुख एवं धन-धान्य के लिए छठ व्रत करें। उस समय से ही यह व्रत चला आ रहा है।

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