भागवद् कथा श्रवण से दूर होते हैं मन के विकार  – बृजेश कुमार पांडेय

गाजीपुर। दुल्लहपुर थाना क्षेत्र के खड़ौरा गांव में चल रही भागवत कथा के श्रवण से लोग धन्य हो रहे हैं।
तीसरे दिन के प्रवचन में आचार्य वृजेश कुमार पांडेय ने कम उम्र में परीक्षित के राजा बनने तथा कलियुग के प्रभाव से मति भ्रष्ट होने का वृत्तांत सुनाकर लोगों को भावविभोर कर दिया। कथा वाचन के चौथे दिन ने राजा परीक्षित की कथा का प्रसंग सुनाया। कथा प्रसंग में आचार्य ने कहा कि कथा श्रवण से मन के सब विकार दूर होते हैं। कथावाचक वही होता है जिसके मन में भगवान के प्रति भाव होता है और कथा वही लोग श्रवण करते हैं जिनमें कथा श्रवण करने की अभिरुचि होती है। मानव आज अपने घर, बीबी, बच्चों व अन्य लोभ, व्याधियों में फंसकर भगवान को विस्मृत कर मोहजाल में फंसा रहता है। भौतिक आडम्बरों के चलते बहुत से लोग अपने धन व पद का घमंड भी करते हैं जबकि उसको ये पता ही नहीं है कि भगवान से बड़ा इस दुनिया में कोई नहीं है। ईश्वर ही सर्वश्रेष्ठ है, फिर भी माया रूपी संसार में मनुष्य अपने आप को बड़ा मानकर अधोगति की यातना भोगता रहता है। आचार्य ने कहा कि मनुष्य को घमंड नहीं करना चाहिए। कथा वाचक ने शुकदेव परीक्षित संवाद का जिक्र करते हुए कहा कि एक बार परीक्षित महाराज शिकार खेलने की चाह में वन में काफी दूर चले गए। प्यास से व्याकुल राजा प्यास बुझाने के लिए पास में समीक ऋषि के आश्रम में पहुंच कर पानी पिलाने के लिए ऋषि से बोले। समीक ऋषि समाधि में लीन होने के चलते पानी नहीं पिला सके। परीक्षित ने सोचा ऋषि ने मेरा अपमान किया है, मुझे भी इसका अपमान करना चाहिए। यह सोचकर उसने पास में पड़ा एक मृत सर्प उठाकर समीक ऋषि के गले में डाल दिया। कलिकाल के प्रभाव में राजा की बुद्धि मारी गई। इसकी सूचना पास में बच्चों संग खेल रहे ऋषि के पुत्र को जैसे ही मिली।दौड़ते हुए पहुंचा और नदी का जल हाथ में लेकर शाप दिया कि जिसने मेरे पिता का अपमान किया है वह आज से सातवें दिन तक्षक नामक सर्प दंश से मृत्यु को प्राप्त करेगा। मृत्यु का श्राप पाकर राजा परीक्षित को बड़ी चिंता हुई। जिसके समाधान के लिए शुकदेव जी ने सात दिनों तक श्रीमद्भागवत का कथा श्रवण कराया। चौथे दिन की कथा का मुख्य आकर्षण श्रीकृष्ण जन्मोत्सव रहा। इस मौके पर कथा आयोजक श्यामा चरण पाण्डेय के परिवार सहित ग्रामवासी श्रद्धालु महिला पुरुष उपस्थित रहे।

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