श्रीमद्भगवद्गीता सामाजिक न्याय और समदर्शन का दार्शनिक ग्रन्थ – माधव कृष्ण

श्रीकृष्ण ने मनुष्यता को सर्वोपरि रखते हुए नए मानक स्थापित किये – योगी आनन्द

गाज़ीपुर। उपनिषद मिशन ट्रस्ट के तत्वावधान में शहर के द प्रेसिदियम इंटरनेशनल स्कूल अष्टभुजी कॉलोनी के सभागार में ‘श्रीमद्भगवद्गीता के श्रीकृष्ण’ विषय पर ‘प्रश्न-विमर्श-सम्वाद’ संगोष्ठी का आयोजन सम्पन्न हुआ।

            मुख्य वक्ता अंतर्राष्ट्रीय कथाकार योगी आनन्द ने कहा कि, श्रीकृष्ण का जीवन सहजता और समग्रता का जीवन है। कभी-कभी व्यक्ति को युग की आवश्यकताओं के अनुरूप पूर्व-निर्धारित परिभाषाओं को बदलना पड़ता है, नए मानक गढ़ने पड़ते हैं तब सज्जनों की रक्षा हो पाती है। श्रीकृष्ण ने मनुष्यता को सर्वोपरि रखते हुए नए मानक स्थापित किये। अध्यात्म का अर्थ स्वभाव के अनुरूप किया जाने वाला सहज लोककल्याणकारी कर्म है।

           सेवानिवृत्त प्रवक्ता प्रोफेसर युधिष्ठिर तिवारी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि, श्रीमद्भगवद्गीता की गिनती सार्वकालिक महानतम ग्रंथों में होती है। महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, विनोबा भावे और स्वामी सहजानंद जैसे महापुरुषों ने इसमें अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन का समाधान देखा है। इसलिए जनमानस में इसके निरूपित तत्वों पर मनन-चिन्तन होना चाहिए।

        डॉ माधव कृष्ण ने कहा कि, भारत की माटी के अपने शब्दकोष हैंl इसलिए भारतीय दर्शन को पढने से पूर्व इस शब्दकोष का सम्यक ज्ञान आवश्यक है अन्यथा अनर्थकारी मानसिकता के कारण वास्तविक अर्थ छिप जाते हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण के समन्वयकारी स्वरूप को प्रासंगिक बताया। उस समय तमाम लोग ज्ञान-कर्म-भक्ति- संन्यास-ध्यान-विज्ञान इत्यादि धाराओं में अंतर्विरोध दिखाकर अपने सम्प्रदाय को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने में लगे थे। श्रीकृष्ण ने पहली बार वज्रगंभीर उद्घोष किया कि  अनासक्ति के साथ किया हुआ प्रत्येक कार्य और अपनाया गया प्रत्येक मार्ग सत्य की ओर ले जाता है। उन्होंने गीता के आधार पर आजकल वर्ण और जाति के मध्य अंतर स्पष्ट किया, और बताया कि योग्यता, गुण और कर्म जातियों का अतिक्रमण करते हैं। इसलिए वर्ण व्यवस्था को यथार्थ रूप से समझना होगाl श्रीमद्भगवद्गीता सामाजिक न्याय और समदर्शन का दार्शनिक ग्रन्थ है।

        प्रोफेसर श्रीकांत पाण्डेय ने कहा कि, एक लंबा अंतराल बीत जाने के कारण भारतीय दर्शन पर लगातार आघात हुए हैं। इन विषयों से सामान्य जनता या तो अनभिज्ञ है या उसका एक विशेष मानसिकता के लोगों ने ब्रेनवाश किया है, या तो पूजन के स्तर तक या तो अंधविरोध के स्तर तकl इसलिए पना विवेक जाग्रत करना होगा तथा अध्ययनशीलता को बढावा देना होगाl विशिष्ट वक्ता प्रोफेसर अम्बिका पाण्डेय ने कहा कि, गीता के ज्ञान-गंगा में स्नान करने से अज्ञानजनित मल से मुक्ति मिलती है। आर्य समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे आदित्य प्रकाश जी ने कहा कि गीता वेदों का सार हैl वेदों के माध्यम से सत्य का अनुसंधान करना चाहिए और असत्य को छोड़ना चाहिएl सभी धर्मों सम्प्रदायों के लोगों को एकसाथ बैठकर इस तरह की संगोष्ठी के माध्यम से सत्य के स्वरूप को स्थापित करना चाहिए और तदनुसार आचरण करना चाहिएl पतंजली योग समिति का प्रतिनिधित्व कर रहे सर्वजीत सिंह ने कहा कि, गीता में प्राणायाम को यज्ञ कहा गया है, इसे करने से सकारात्मकता आती है, और यही मनुष्य का वास्तविक आहार है।

        सेवानिवृत्त तहसीलदार भगवान पाण्डेय ने कहा कि, अन्ग्रेक कवि इलियट ने अपने क्वार्टेट में अर्जुन के प्रति श्रीकृष्ण के उपदेश का वर्ण किया है, और विश्व के तमाम महान दार्शनिकों ने गीता में विश्व बंधुत्व के सूत्र ही पाए हैं। गायत्री परिवार का प्रतिनिधित्व कर रही बहन निर्मला ने श्रीकृष्ण के जीवन से गुरु सांदीपनी के प्रसंग को उद्धृत किया, और कहा कि, श्रीकृष्ण के गुरु के प्रति श्रद्धा की आज समाज में आवश्यकता है। श्रेष्ठ व्यक्तियों से दूरी अज्ञानता को जन्म देती है। प्रगतिशील वैचारिकी का प्रतिनिधित्व कर रहे स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त प्रबंधक महेश चन्द्र लाल जी ने कुछ प्रश्न उठाये कि, इतने महान शास्त्र के रहने के बाद भी भारतीय समाज से जाति-व्यवस्था समाप्त क्यों नहीं होती? इन प्रश्नों पर संगोष्ठी में विचार हुआ और निष्कर्ष निकला कि ये सार्वजनीन सत्यों को प्रकट करने वाले शास्त्र पथप्रदर्शक हैं लेकिन इन्हें जीने वाले लोगों के ही जीवन में प्रकाश और सकारात्मकता आ पाती हैl बहुधा लोग इन ग्रंथों में वर्णित आदर्शों को नहीं जीते हैं।

          इस अवसर पर संस्कृत के प्रवक्ता रामअवध कुशवाहा ने एक कविता प्रस्तुत कीl अभिमन्यु आर्य और काव्यांजलि राय ने भजन प्रस्तुत किया, कुछ नहीं बिगड़ेगा तेरा हरिशरण आने के बादl एक छोटी सी बालिका प्राची तिवारी ने अर्थ के साथ गीता के कुछ महत्वपूर्ण श्लोकों का वाचन कर सभी को मन्त्रमुग्ध कर दिया। अतिथियों और विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधियों को गीता प्रबोधिनी देकर सम्मानित किया गया।

      सभा में सहेंद्र यादव, मनोज यादव, वृजेन्द्र यादव, श्रीमती शीला सिंह, दामिनी पाण्डेय, मुकेश भारती, अनिल राय, योग गुरु ओझा, दाऊ जी उपाध्याय, मनीष यादव इत्यादि उपस्थित रहेl आभार ज्ञापन हिन्दी की वरिष्ठ समालोचक प्रोफेसर शिखा तिवारी ने किया। डॉ बालेश्वर विक्रम ने अपने कुशल संचालन से सभा को जीवंत रखा।

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