स्वतंत्रता आन्दोलन – 15 अगस्त से 28 अगस्त 1942 तक आजाद रहा सादात थाना 

क्रांतिकारी वीरों की सुधि लेने वाले कोई नहीं

               *डा. ए. के. राय* गाज़ीपुर। देश के स्वाधीनता आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति देने वाले जाबाजों से गाजीपुर की धरती भरी पड़ी है। शेरपुर गांव के अष्ट शहीदों ने अपने प्राणों की आहुति तो दे दी लेकिन राष्ट्रीय ध्वज को झुकने नहीं दिया और तहसील मुख्यालय पर उस समय राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर, देश के इतिहास में, स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गये।

    वहीं यदि आजादी की 76वीं वर्षगांठ पर सादात क्षेत्र के उन वीर सपूतों की बात न हो जिन्होंने दासता के उस समय में भी अंग्रेजी हुकूमत का इतिहास बदल दिया, तो यह उनके साथ घोर अपराध होगा। 

         बात 1942 की है जब महात्मा गांधी के करो या मरो आंदोलन में 15 अगस्त 1942 रविवार के दिन सादात में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बड़ा विद्रोह हुआ। आन्दोलन में सादात के वीर क्रांतिकारियों ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी निभाई और परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ी भारत माता को आजाद कराने के लिए नया इतिहास रच दिया। 15 अगस्त 1942 रविवार के दिन सादात में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बड़ा विद्रोह हुआ। सादात रेलवे स्टेशन, डाकघर, बीज गोदाम और सादात थाना पर क्रांतिकारियों ने लूटपाट कर वहां आग लगा दिया। इससे जहां अंग्रेजों को काफी नुकसान हुआ और इस विद्रोह में थाना के प्रभारी मुंशी हमीदुल्लाह खां और सिपाही वली मुहम्मद को जिंदा जला दिया गया था, वहीं कुत्तुबपुर निवासी क्रांतिकारी अलगू यादव शहीद हो गए थे। आग में  जिन्दा जल मरे दोनों पुलिस कर्मियों की मजार पुलिस विभाग ने बनवा दी थी परन्तु कुत्तुबपुर निवासी शहीद क्रांतिकारी अलगू यादव उपेक्षित ही रह गये। उनकी पहचान को साबित करने वाला कोई स्मारक या उनकी प्रतिमा आज भी कहीं नहीं है।

      आजादी के दीवानों की वीर गाथा पर नजर डालें तो 15 अगस्त 1942 को तड़के ही क्रांतिकारी सादात रेलवे स्टेशन को फूंकने और डाकघर एवं सहकारी बीज गोदाम को लूटने की योजना बना ली थी। देखते ही देखते क्रांतिकारियों ने डाकघर और बीज गोदाम लूट लिया। उधर रेलवे स्टेशन में क्रांतिकारियों द्वारा तोड़-फोड़ जारी थी। स्टेशन को फूंकने का प्रयास करते हुए क्रांतिकारियों पर वहां मौजूद अंग्रेज पुलिस ने फायर झोंक दिया। एक गोली क्रांतिकारी हरिवंश दूबे के पैर में लगी और वे घायल हो गए। गोली चलने की घटना पूरे क्षेत्र में आग की तरह फैल गई और देखते ही देखते कुछ ही घंटे में वहां हजारों की भीड़ एकत्र हो गई। क्रांतिकारियों की भीड़ देख पुलिस भागने लगी। क्रांतिकारी भी उनका पीछा करते हुए थाने पहुंच गए लेकिन वहां से सब इंस्पेक्टर मुंशी हमीदुल्लाह खां और सिपाही वली मुहम्मद को छोड़कर बाकी सब भाग गए। ये दोनों पुलिस कर्मी भी मौका पाते ही घोड़े पर सवार होकर भागने लगे तभी क्रांतिकारियों ने उनको घेर लिया। क्रांतिकारी अलगू यादव साहस दिखाते हुए घोड़े के पास पहुंचकर सब इंस्पेक्टर का पैर पकड़ कर घोड़े से खींचने लगे। उसी वक्त उसने अलगू यादव के सीने में गोली मार दी और वे मौके पर ही शहीद हो गए। इसके बाद  क्रांतिकारी दोनों पुलिस कर्मियों पर टूट पड़े और उन दोनों को घसीटते हुए थाने ले आए और दरवाजे एवं खिड़कियां तोड़कर लकड़ी जुटाई और आग लगाकर दोनों पुलिस कर्मियों को उसी में फेंककर जिंदा जला दिया। इस घटना के बाद 15 से 28 अगस्त 1942 तक अर्थात 15 दिनों तक सादात थाने पर कोई पुलिसकर्मी नहीं रहा, जिससे थाना आजाद रहा। घटना के बाद     बाद में जब क्रांतिकारियों की छानबीन हुई तो सभी लोग घर छोड़कर फरार हो गए। लोगों ने पेड़ों पर कई रातें बिताईं। कइयों को पकड़कर जेल में ठूंस दिया गया। सौ से 200 बेतों की सजाएं हुईं। इनमें हुरमुजपुर निवासी जित्तन पांडेय, सादात नगर के रघुनाथ यादव, दमडी सेठ, जीउत कोईरी, रहमतुल्लाह नाई, बैजनाथ पाठक, महीप यादव, सुक्खू साव, परसिद्धन विश्वकर्मा आदि का नाम प्रमुख रहा। इनके साथ ही अनेक ऐसे लोग भी रहे जिनका नाम तो सामने नहीं आया लेकिन आजादी की लड़ाई में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।

         आजादी की लड़ाई में अप्रतिम शौर्य का प्रदर्शन करते हुए महत्वपूर्ण योगदान देने वाले सादात क्षेत्र के वीर सेनानियों की स्मृति में, सरकार ने पूर्व माध्यमिक विद्यालय सादात परिसर में एक शिलालेख लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लिया है, जबकि जिन्दा आग के हवाले कर दिए गए दोनों पुलिसकर्मियों की याद में थाना गेट के बगल में बनी मजार आज भी मौजूद है। उन वीर सेनानियों की याद तो अब बस किसी समारोह में याद करने तक सिमट कर रह गई है। शहीद अलगू यादव, क्रांतिकारी जित्तन पांडेय, हरिबंश दूबे आदि के परिजन आज भी शासन प्रशासन की तरफ उम्मीद भरी नजर लगाए बैठे हैं लेकिन उनकी सुधि लेनेवाला कोई नहीं है।

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