स्वामी विवेकानन्दके विचार आज भी प्रासंगिक

बलिया। स्वामी विवेकानंद जयंती गुरुवार को सतीश चंद्र कॉलेज के राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के तत्वावधान में राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनायी गयी। स्वयंसेवकों व स्वयंसेविकाओं द्वारा, विश्व स्तर पर भारतीय संस्कृति को स्थापित करने वाले महान दार्शनिक, ओजस्वी वक्ता एवं युवाओं के ंनन स्रोत स्वामी विवेकानंद जी के जयंती समारोह का शुभारंभ स्वामी विवेकानन्द जी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर तथा उनके चित्र पर माल्यार्पण कर किया गया।

कॉलेज के मध्यकालीन इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ शुभनीत कौशिक ने स्वयंसेवकों तथा स्वयंसेविकाओं को सम्बोधित करते हुए स्वामी विवेकानंद जी के राष्ट्र निर्माण में किये गये योगदान पर प्रकाश डाला। वक्ताओं ने स्वामी विवेकानंद को भारतीय धर्म संस्कृति के समृद्ध नायक, ध्यान सिद्ध, राष्ट्र रत्न बताते हुए उनकी 161वीं जयन्ती पर कोटि कोटि नमन करते हुए उनके पदचिन्हों पर चल कर राष्ट्रोत्थान में भागीदारी सुनिश्चित करने का आह्वान किया। समारोह में कार्यक्रम अधिकारी डाॅ. प्रवीण पायलट ,डॉ. कीर्ति चंदन आजाद, डॉ. सत्यदेव प्रजापति ,डॉ. त्रिवेन्द्र कुमार, हरिद्वार तिवारी, रामभूषण सहित कालेज परिवार के लोग उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. सुनील कुमार यादव ने किया।

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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के जनक हैं स्वामी विवेकानन्द – माधव कृष्ण

गाज़ीपुर। भारत विकास परिषद शाखा गाजीपुर द्वारा स्वामी विवेकानंद जयंती के अवसर पर खाकी बाबा सिद्धार्थ इंटर कॉलेज यूसुफपुर परिसर में वर्तमान संदर्भों में स्वामी विवेकानंद विषयक संगोष्ठी सम्पन्न हुई। कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता एवं स्वामी विवेकानंद के चित्र पर माल्यार्पण से हुआ। इसके पश्चात सुश्री आस्था एवं सुश्री वर्षा द्वारा वंदे मातरम गीत प्रस्तुत किया गया।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता द प्रेसीडियम इंटरनेशनल स्कूल के निदेशक माधव कृष्ण ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द को देखते समय पूर्वाग्रहों से मुक्त होना होगा। वह समाजवाद, राष्ट्रवाद, सभ्यता, संस्कृति, प्रवृत्ति, निवृत्ति, वेद, विज्ञान, बुद्धि और ह्रदय सब कुछ हैं; और इनसे परे भी हैं। उनके वचनों को पढ़कर मनुष्य संकीर्णताओं की सभी सीमाओं से मुक्त होकर मनुष्य मात्र के विषय में संवेदनशील हो उठता हैl भारतीय नव जागरण में राजा राममोहन रॉय ने उपनिषदों के अद्वैत को पकड़ा, जबकि आर्य समाज ने वेदों को पकड़ा, थियोसोफिकल सोसाइटी ने प्राचीन संस्कृति को पकड़ा। इन्होंने भारतीय जनमानस को जागृत करने का कार्य किया लेकिन इनके अंदर समग्र भारतीय सभ्यता और संस्कृति अपना प्रतिनिधि नहीं पा सकी । स्वामी विवेकानन्द के गुरु रामकृष्ण परमहंस में भारतीय जनमानस को प्राचीन ऋषियों और धर्म का साक्षात विग्रह मिला। रामकृष्ण परमहंस आर्ष परम्परा की गंगा थे और स्वामी विवेकानन्द इस गंगा के भागीरथl उन्होंने भारतीय संस्कृति के सत्य, शिव और सुंदर के सिद्धांत को समूचे विश्व को पवित्र और मुक्त करने के उद्देश्य से फैला दिया। शिकागो के विश्व धर्म संसद में 11 सितम्बर 1893 को उनके पहले उद्बोधन के बाद भारत को संपेरों का देश समझने वाले पाश्चात्य जगत में एक खलबली मच गयी। उन्हें पहली बार लगा कि जिस देश, संस्कृति और धर्म का प्रतिनिधित्व स्वामी विवेकानंद करते हैं, उस देश में धर्म-प्रसार के लिए ईसाई मिशनरीज को भेजने की क्या आवश्यकता हैl वह भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के जनक हैंl

आज के परिवेश में स्वामी विवेकानन्द अधिक प्रासंगिक हो चुके हैं। जहां पड़ोसी युक्रेन और रूस एक दूसरे का अस्तित्व मिटाने का युद्ध लड़ रहे हैं, वहां स्वामी विवेकानन्द सभी धर्मों के सार को ग्रहण करने और सारहीन का त्याग कर विश्व-बंधुत्व और मैत्री की सार्वभौम सन्देश दे रहे हैं।ओ जहां हिन्दू और मुस्लिम एक दूसरे के रक्त के प्यासे होकर राजनैतिक दुश्मन बने हैं, वहीं स्वामी विवेकानन्द समावेशी वेदांती मस्तिष्क और सशक्त इस्लामी शरीर के द्वारा एक सशक्त भारत का निर्माण करने के प्रबल पक्षधर हैंl एक तरफ जहाँ लोग जातिवाद में अंधे होकर संकीर्ण होते जा रहे हैं, वहीं स्वामी विवेकानन्द अमीबा की संकुचित चेतना से क्राइस्ट और बुद्ध के महान हृदय में रूपांतरण की बात कर रहे हैंl उनके पहले उद्बोधन में असहिष्णुता के स्थान पर सहिष्णुता और सार्वभौम स्वीकृति के माध्यम से सभ्यताओं को बर्बाद करने वाली कट्टरता को समाप्त करने की बात की गयी थीl स्वामी विवेकानन्द में वह सब कुछ है जो सुंदर हैं; और विश्व को सुंदर बनाने का स्वप्न देखने वाली प्रत्येक आँख को उनकी तरफ देखना ही होगा‌l

भारत विकास परिषद के क्षेत्रीय महासचिव नवीन श्रीवास्तव ने परिषद के बारे में पूरी जानकारी प्रस्तुत की। संरक्षक चंद्रमा यादव ने स्कूल के छात्रों को आशीर्वचन दिया। खाकी बाबा सिद्धार्थ फार्मेसी के प्रबंधक अशोक कुमार सिंह पप्पू ने सबका स्वागत एवं अभिनंदन किया। परिषद के अध्यक्ष अनिल कुमार उपाध्याय ने सभी का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन परिषद के संयोजक संजय कुमार ने किया। इस अवसर पर प्रेम कुमार सिंह, उग्रसेन सिंह ,अनुपम आनंद श्रीवास्तव, प्रमोद राय रुन्नू , सूर्य प्रकाश राय ,अरुण कुमार राय आजाद ,प्रवीण गुप्ता ,विनय राय ,जयप्रकाश लाल , अजय प्रताप सिंह ,विनोद सिंह डब्लू , सचिन यादव , भुल्लन यादव ,दिग्विजय सिंह ,हीरालाल , उदय प्रताप यादव ,सूबेदार यादव , प्रफुल्ल सिंह आदि उपस्थित रहे।

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