“घनाक्षरी” छंद – कवि अशोक राय वत्स
करते हो नफरत , नाम हिंदुस्तान से तो,
रहने का देश में , हक नहीं रखते हो।
असली है नाम यही , सोच कर देखो जरा,
भारती के नाम से , इतना क्यों जलते हो।
भारत कहें या हिन्द , सींचा है लहू से इसे,
लगता है इससे , ईर्ष्या तुम करते हो।
हिन्द हिन्द ही रहेगा , हिये में उकेरो तुम,
रखनी है ईर्ष्या तो , हिन्द में क्यों रहते हो।
कवि, अशोक राय वत्स ©®
रैनी, मऊ,उत्तरप्रदेश, 8619668341
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