राष्ट्रीय संगोष्ठी में ‘हिमशिला की देह थे घटते रहे’ पुस्तक का लोकार्पण सम्पन्न


गाजीपुर। राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय गाजीपुर के सावित्रीबाई फुले सभागार में ‘डॉ उमाशंकर तिवारी और हिंदी नवगीत’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न हुई।
     संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में माधव कृष्ण और डॉ शिखा तिवारी द्वारा डॉ. तिवारी पर सम्पादित पुस्तक ‘हिमशिला की देह थे घटते रहे’ का लोकार्पण हुआ। वहीं डॉ शिखा तिवारी द्वारा लिखित दूसरी पुस्तक ‘लंबी कविता की जमीन’ का लोकार्पण भी सम्पन्न हुआ।
     समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्या प्रोफेसर सविता भारद्वाज ने कहा कि डॉ उमाशंकर तिवारी इस शहर के महत्वपूर्ण कवि हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा से पूरे हिंदी जगत को चमत्कृत किया है। उनके नवगीतों में जनवादी चेतना है। उन्होंने कार्यक्रम के समन्वयक माधव कृष्ण और संयोजक डॉ शिखा तिवारी द्वारा उन पर व नवगीतों पर विमर्श खड़ा करने की प्रशंसा की।
       उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता प्रोफेसर अवधेश प्रधान ने कहा कि मनुष्यता की मातृभाषा कविता है, और यह सच है क्योंकि गीत मैंने सर्वप्रथम अपनी मां के मुख से सुना था। डॉ उमाशंकर तिवारी की कविताएं नवगीत उसी तर्ज पर हैं जैसे वीरगाथा काल के गीतों के बाद कबीर, सूरदास, तुलसीदास ने नवगीत लिखे। समय की मांग ही नवगीत की नवता है। 600 सालों के बाद भी हृदय की व्यथा का गीत विनय पत्रिका और कवितावली नवगीत है। अपने समय की दस्तक और पीड़ा को पहचानकर लिखे जाने वाले गीत ही नवगीत हैं, और डॉ उमाशंकर तिवारी के नवगीत पढ़कर उनके समय की ध्वनि स्पष्ट रूप से सुनी जा सकती है।
      समन्वयक माधव कृष्ण ने बाहर से आये विद्वान अतिथिवृन्द का स्वागत करते हुए बाजारवाद, नशाखोरी, भ्रष्टाचार, वैचारिक अंधता के दौर में भी डॉ उमाशंकर तिवारी के नवगीत आक्रोश व व्यथा व्यक्त करते हुए आशा की किरण हैं। उनके नवगीत मानुषी गरिमा को स्थापित करते हुए समझौतावादी दृष्टिकोण अपनाने से मना करते है: हम न रुकेंगे गलियारों में हम न बिकेंगे बाजारों में
बाकी है ईमान अभी भी।
      उद्घाटन सत्र का धन्यवाद प्रस्ताव एसोसिएट प्रोफेसर डॉ शिखा तिवारी ने नवगीतों के पाठ्यक्रम से लुप्त होने पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने डॉ उमाशंकर तिवारी के सहज व्यक्तित्व और ग्राम्य चेतना का विस्तार से वर्णन करते हुए सभी अतिथियों को धन्यवाद दिया।
     तकनीकी सत्र के मुख्य वक्ता प्रोफेसर वशिष्ठ अनूप ने कहा कि उनकी कविता ‘वे लोग जो कंधे हल ढोते खेतों में आंसू बोते हैं/उनका भी हक़ है फसलों पर अब भी मानो तो बेहतर है’ जैसी दलित समस्याओँ पर केंद्रित कविता आज तक किसी दलित सरोकारों वाले कवि ने नहीं लिखी। उन्होंने नवगीतों के पाठ्यक्रम से अलग होने पर इसमें सहयोग देने के लिए कहा और कहा कि छंदबद्ध कविताएं और गीत लिखने के लिए प्रतिभा चाहिए। यह प्रतिभा नैसर्गिक होती है, और इसे अभ्यास से उत्पन्न नहीं किया जा सकता। नवगीतों को हाशिए पर रखना अयोग्य लोगों द्वारा योग्य कवियों के विरुद्ध के सुनियोजित षडयंत्र है।
     सत्र के सारस्वत वक्ता प्रोफेसर प्रभाकर सिंह ने कहा कि डॉ उमाशंकर तिवारी के नवगीतों को पढ़ने के लिए साहित्य पढ़ने का शऊर विकसित करना होगा। आजकल साहित्य को आलोचकीय पंक्तियों के लिए वैचारिक कटघरे में खड़ा होकर पढ़ा जा रहा है इससे साहित्य का नुकसान हो रहा है। प्रोफेसर प्रभाकर सिंह ने कहा कि एक कवि अपने और पराये की संकुचित सीमाओं का अतिक्रमण कर जाता है। यही उसके द्वारा मनुष्यता के धर्म का साहित्यिक रूपांतरण है।             सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में गीतकार डॉ कमलेश राय ने कहा कि डॉ उमाशंकर तिवारी तल पर शांत और साथ पर बौखलाए हुए थे। उन्होंने आत्मपीड़ा को वैश्विक पीड़ा में देखा और यही उनके साहित्य सृजन की प्रक्रिया थी। तिवारी जी प्रशासकीय दायित्वों से परेशान होकर मेरे पास आते थे और कविता सुनाते थे। नवगीतों की लय ही उनके जीवन की धारा के है।
इस सत्र में महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय के एसो प्रोफेसर डॉ विकास सिंह ने धन्यवाद देते हुए सभी वक्ताओं के वक्तव्य का सारांश प्रस्तुत किया। इस सत्र में महाविद्यालय की छात्रा सौम्या दूबे ने अपना शोधपत्र पढ़ा। महाविद्यालय की प्रवक्ता डॉ दीप्ति सिंह के निर्देशन में महाविद्यालय की छात्राओं ने कुछ नवगीतों की संगीतमय प्रस्तुति दी।
विशिष्ट वक्ता नवगीतकार गणेश गंभीर जी ने कहा कि नवगीत अन्य गीति विधाओं से अलग है। चप्पलों के विज्ञापन में उन्हें विचारों से हल्का बताना भाषा और विचारों का अपमान है। डॉ उमाशंकर तिवारी ने भाषा को एक नई ऊंचाई दी और समय के साथ सम्वाद किया।
      सभा के अंत में आयोजित कवि सम्मेलन में डॉ कमलेश राय, डॉ वशिष्ठ अनूप, नवगीतकार गणेश गंभीर, शायर मधुर नजमी, डॉ प्रमोद श्रीवास्तव अनंग, छात्रा सौम्या मिश्रा ने कविताएं सुनाकर श्रोताओं की वाहवाही लूटी।
विभिन्न सत्रों का संचालन डॉ निरंजन यादव, डॉ संतोष कुमार तिवारी और नवगीतकार शुभम श्रीवास्तव ओम ने किया।

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