भारतीय सनातन संस्कृति में अधिकार प्रधान नहीं बल्कि कर्तव्य प्रधान समाज का महत्व

गाजीपुर। भारतीय सनातन संस्कृति में अधिकार प्रधान नहीं बल्कि कर्तव्य प्रधान समाज को महत्व दिया जाता है। यह वह समाज है जहां स्त्रियों का स्थान पुरूषों से ऊँचा है।
उक्त वक्तव्य काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के पूर्व कुलपति एवं उच्च शिक्षा आयोग के चेयरमैन डा. गिरीश त्रिपाठी ने सिद्धपीठ हथियाराम मठ के २६ वें पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी भवनी नंदन यति के दायित्व निर्वहन के २५ वर्ष पूरा होने पर आयोजित रजत जयंती समारोह की पूर्णाहुति सभा को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि मातृ ऋण ही एक ऐसा ऋण है जिससे कभी उद्वार नहीं पाया जा सकता है। सत्य सनातन धर्म हमें यह संदेश देता है कि जिस घर में नारियों का सम्मान है वहां लक्ष्मी का वास होता है। नारी शक्ति पर कहा कि हमारे देश की नारी में असीम ताकत है।कहा कि, लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला ने संजीवन बूटी ले जाते समय हनुमान की चिन्ता पर जबाव देते हुए कहा था कि जब तक आप लंका नहीं पहुंच जाओगे तब तक सूर्य उदय नहीं हो सकता। यह नारी की प्रबल इच्छा शक्ति का प्रमाण था। उन्होंने सिद्धपीठ के शिष्यों को भाग्यशाली बताया, कि आपको गुरूओं का मार्गदर्शन प्राप्त होता है। इस मौके पर हल्द्वानी से पधारे महामंडलेश्वर परेश यति ने कहा कि पूर्व से चली आ रही ऋषि परम्परा ही सर्वश्रेष्ठ है। संतो का संकल्प मात्र मंगलमयी है। जूना अखाड़ा के वारेष्ठ महामंडलेश्वर सोमेश्वर यति महाराज ने कहा कि धर्म की राह पर चलना ही मानव जीवन के कल्याण को संभव करेगा। उन्होंने सिद्धपीठ द्वारा संस्कृति की रक्षा के लिए संचालित कन्या महाविद्यालय की चर्चा करते हुए कहा कि अपनी बहन-बेटियों सहित परिवार में संस्कारयुक्त शिक्षा दें जिससे कुरीतियों से बचा जा सकता है। इस मौके पर सिद्धपीठ हथियाराम मठ के 26 वें पीठाधीश्वर स्वामी भवानीनंदन यति जी महाराज अपने दायित्व निर्वहन के 25 वर्ष पूर्ण होने पर शिष्य समुदाय द्वारा आयोजित रजत जयंती समारोह में भावुक हो गये। उन्होंने उपस्थित श्रद्धालुओं से खुद के लिए आशीर्वाद की कामना की। भावुक मन से संबोधित करते हुए श्री यति जी महाराज ने कहाकि सिद्धपीठ के ब्रह्मलीन गुरुजनों के त्याग तपस्या के फलस्वरूप उत्तरोत्तर वृद्धि कर रहे इस सिद्धपीठ में मैं आकर धन्य हो गया। आज 25 वर्षों की तपस्या साधना के फल स्वरुप मैं खुद आज अपने शिष्यों से आशीर्वाद प्राप्त करने आया हूं।
इससे पूर्व स्वामी बालकृष्ण यति कन्या महाविद्यालय की छात्राओ ने समवेत स्वर में गीता पाठ कर भावविभोर कर दिया। मुख्य अतिथि डॉ गिरीश चन्द त्रिपाठी अध्यक्ष उच्च शिक्षा आयोग को महामण्डलेश्वर स्वामी भवानीनन्दन यति ने स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया।

हल्द्वानी से पधारे आचार्य महामंडलेश्वर परेश यति जी महाराज ने कहा कि पूर्व से चली आ रही ऋषि परंपरा ही सर्वश्रेष्ठ है। 25 वर्ष की उपलब्धियों के दर्शन की कामना लिए आप सभी की मनोकामना सिद्धपीठ को मजबूत बनाती है। संतों का संकल्प मात्र मंगलमई है, जिसके आशीर्वाद के लिए भाव स्वरूप पात्रता आवश्यक है।
जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वर हल्द्वानी उत्तराखंड से आए महामंडलेश्वर सोमेश्वर यति जी महाराज ने कहाकि धर्म की राह पर चलना ही मानव जीवन के कल्याण को संभव करेगा। उन्होंने कहाकि वेद पुराण के साथ ही पुरुषों के बताए मार्ग पर चलना ही श्रेयस्कर साबित होगा। सिद्धपीठ द्वारा संस्कृति की रक्षा के लिए कन्या महाविद्यालय की स्थापना की गई जिससे अध्ययनरत छात्राओं के माध्यम से संस्कार का निर्माण होता है। उन्होंने कहा कि संस्कार हीन परिवार ही लव जिहाद का शिकार होता है। ऐसे में हम अपने बहन बेटियों सहित परिवार में संस्कार युक्त शिक्षा दें जिससे ऐसी कुरीतियों से बचा जा सकता है।
मथुरा वृंदावन से आए वरिष्ठ महामंडलेश्वर मोहनानन्द महाराज ने सिद्धपीठ पर पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर के 25 वर्षों के कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए श्रद्धालुओं को सौभाग्यशाली बताया जिन्हें ऐसे गुरुजनों का आशीर्वाद प्राप्त हो रहा है।
इस अवसर पर वृंदावन से पधारे प्रख्यात कथाकार ठाकुर जी महाराज, संत देवराहा बाबा, आचार्य संजय पाण्डेय, आचार्य बालकृष्ण पांथरी, सर्वेश पाण्डेय, प्राचार्य डॉ रत्नाकर त्रिपाठी, श्रवण तिवारी, आचार्य शरवेंद्र चन्द्र पाण्डेय, दीपक जी महाराज, रमाशंकर राजभर, दीपक जी महाराज, सुभाष गोयल इंदौर, विजय नारायण राय, डॉ रत्नाकर त्रिपाठी, बालकृष्ण पांथरी, कन्हैया जी महाराज, आनंद सिंह, आनन्द मिश्रा, विजय शंकर राय, लौटू प्रसाद सहित हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। मंच संचालन संतोष यादव ने किया।

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