बासंतिक नवरात्र – 2020

चैत्र नवरात्रि 2020।

वाराणसी, 23 मार्च 2020। भारतीय नववर्ष का शुभारंभ चैत्र प्रतिपदा से होता है। इसे भारतीय संवत्सर भी कहा जाता है। मान्यता है कि चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन ही ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। चैत्र शुक्ल पक्ष के प्रारम्भ का नौ दिन वासन्तिक (चैत्र) नवरात्र होता है। नवरात्र के पावन पर्व पर जगत्जननी माँ जगदम्बा जी की पूजा-अर्चना का विधान है। वासंतिक नवरात्र में मां जगदम्बा भगवती की आराधना से मनोकामना की पूर्ति होती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वर्ष में चार नवरात्र होते हैं- दो प्रत्यक्ष नवरात्र (चैत्र व आश्विन के शुक्लपक्ष में)तथा दो अप्रत्यक्ष या गुप्त नवरात्र (आषाढ़ व माघ के शुक्लपक्ष में)होते हैं।
चैत्र नवरात्रि या वसन्त ऋतु के वासंतिक नवरात्र में शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा, लक्ष्मी एवं सरस्वती जी की विशेष आराधना लाभदायक होती है। माँ दुर्गा व नौ गौरी के नौ-स्वरूपों की पूजा-अर्चना से सुख-समृद्धि, खुशहाली मिलती है।
चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होकर रामनवमी तक मां दूर्गा का पावन पर्व नवरात्रि मनाया जाएगा। इन नौं दिनों मेें मां के नौं रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन दिनों व्रत का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि में शक्ति के नौ रुपों की पूजा करने से सभी तरह की समस्याएं दूर हो जाती हैं और जीवन में सुख, शांति आ जाती है।
चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्र में भगवती की प्रसन्नता के लिए शुभ संकल्प के साथ नवरात्र के शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना करके व्रत रखकर श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ व मन्त्र का जाप शुभ फलदायी होता है।
इस वर्ष 25 मार्च, बुधवार से चैत्र नवरात्रि का आरंभ हो रहा है,जो दो अप्रैल तक रहेगा।माँ जगदम्बा की आराधना के लिए सर्वप्रथम कलश स्थापना की जायेगी।
बताया गया है कि चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि २४ मार्च, मंगलवार को दिन में दो बजकर ५८ मिनट से आरम्भ होगी जो अगले दिन २५ मार्च, को सायं ५ बजकर २७ मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के मान के अनुसार २५ मार्च, बुधवार को प्रतिपदा तिथि रहेगी और उसी दिन विधि-विधानपूर्वक शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना की जाएगी। कलश स्थापना शुद्ध मिट्टी में बर्तन में करनी चाहिए। कलश स्थापना का सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त २५ मार्च, बुधवार को दिन में ११ बजकर ३४ मिनट से १२ बजकर २६ मिनट तक रहेगा। घट स्थापना का शुभ मुहूर्त 25 मार्च, बुधवार सुबह 6 बजकर 19 मिनट से 7 बजकर 17 मिनट तक रहेगा।
घटस्थापना के लिए प्रातः उठ कर स्नान कर साफ और स्वच्छ कपड़े पहनकर घर के मंदिर या जहां कलश स्थापित करना हो वहां साफ-सफाई करने के बाद मंदिर में एक साफ-सुथरी चौकी बिछाएं या साफ जमीन पर साफ मिट्टी रखकर गंगाजल छिड़क कर उसे पवित्र करें। इसके उपरांत थोड़े-थोड़े पांच स्थान पर चावल रखें। जिन पर क्रमश: गणेशजी, मातृका, लोकपाल, नवग्रह तथा वरुण देव को स्‍थान दें। सर्वप्रथम थोड़े चावल रखकर गणेशजी का स्मरण करते हुए स्‍थान ग्रहण करने का आग्रह करें। इसके बाद मातृका, लोकपाल, नवग्रह और वरुण देव को स्‍थापित करें और स्‍थान लेने का आह्वान करें। फिर गंगा जल से सभी को स्नान कराएं। स्नान के बाद 3 बार कलावा लपेटकर प्रत्येक देव को वस्‍त्र के रूप में अर्पित करें। अब हाथ जोड़कर देवों का आह्वान करें। देवों को स्‍थान देने के बाद अब आप अपने कलश के अनुसार जौ मिली मिट्टी बिछाएं। कलश स्थापना करने से पहले कलश पर स्वास्तिक अवश्य बना लें। कलश में गंगाजल, अक्षत, सुपारी, रोली एवं मुद्रा(सिक्का) डालें और फिर एक लाल रंग की चुन्नी से लपेट कर रख दें। कलश में थोड़ा और गंगा जल डालते हुए ‘ॐ वरुणाय नम:’ मंत्र पढ़ें और कलश को पूर्ण रूप से भर दें। इसके बाद आम की टहनी (पल्लव) डालें। जौ या कच्चा चावल कटोरे में भरकर कलश के ऊपर रखें। फिर लाल कपड़े से लिपटा हुआ कच्‍चा नारियल कलश पर रख कलश को माथे के समीप लाएं और वरुण देवता को प्रणाम करते हुए मिट्टी पर कलश स्थापित करें। कलश के ऊपर रोली से ‘ॐ’ या ‘स्वास्तिक’ लिखें। मां भगवती का ध्यान करते हुए अब आप मां भगवती की तस्वीर या मूर्ति को स्‍थान दें। मां दुर्गा की प्रतिमा को वहां पर स्थापित करें और दुर्गा जी का रोली से तिलक कर नारियल में भी तिलक लगाएं। फूलों का हार दुर्गा जी की प्रतिमा को पहनाना चाहिए। माँ जगदम्बा को लाल चुनरी, अढ़उल के फूल की माला, नारियल, ऋतुफल, मेवा एवं मिष्ठान आदि अर्पित करके शुद्ध देशी घी का दीपक जलाकर दुर्गा सप्तशती का पाठ एवं मन्त्र का जप धार्मिक विधान के अनुसार करने के बाद आरती करनी चाहिए। सम्भव हो तो माँ जगदम्बा व कलश के समक्ष शुद्ध देशी घी का अखण्ड दीप प्रज्वलित करना चाहिए।
पूजा के समय यदि कोई मंत्र नहीं आता हो, तो केवल दुर्गा सप्तशती में दिए गए नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे’ से सभी पूजन सामग्री चढ़ाएं। मां शक्ति का यह मंत्र अमोघ है।
वासंतिक नवरात्र में माँ दुर्गा के नौ-स्वरूपों की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्त्व है। माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में -प्रथम-शैलपुत्री, द्वितीय-ब्रह्मचारिणी, तृतीय-चन्द्रघण्टा, चतुर्थ-कूष्माण्डा देवी, पंचम-स्कन्दमाता, षष्ठंम-कात्यायनी,सप्तम –
कालरात्रि,अष्टम-महागौरी एवं नवम्-सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है। नवरात्र में यथासम्भव रात्रि जागरण करना चाहिए। माता जगत् जननी की प्रसन्नता के लिए सर्व सिद्धि प्रदायक सरल मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ का जप अधिकतम संख्या में करना लाभकारी रहता है। नवरात्र में नौदुर्गा स्वरुप के अनुसार अलग-अलग तिथि के अनुसार उनकी प्रिय वस्तुएँ अर्पित करने का महत्व है। जिनमें प्रथम दिन (प्रतिपदा)-उड़द, हल्दी, माला-फूल, द्वितीय दिन (द्वितिया)-तिल, शक्कर,चूड़ी, गुलाल, शहद, तृतीय दिन (तृतीया)- लाल वस्त्र, शहद, खीर,काजल, चतुर्थ दिन (चतुर्थी)-दही, फल, सिंदूर, मसूर, पंचम दिन (पंचमी)-दूध, मेवा, कमल पुष्प, बिन्दी, षष्ठम दिन (षष्ठी)-चुनरी, पताका, दूर्वा, सप्तम दिन (सप्तमी) – बताशा, इत्र, फल-पुष्प, अष्टम दिन (अष्टमी)- पूड़ी, पीली मिठाई, कमलगट्टा, चन्दन, वस्त्र तथा नौवें दिन (नवमी)-खीर, सुहाग सामग्री, साबूदाना, अक्षत फल, बताशा आदि अर्पण करना चाहिए।
नवरात्र में व्रत रखने के पश्चात् व्रत की समाप्ति पर हवनादि करके निमन्त्रित कुमारी कन्याओं एवं बटुकों का पूर्ण आस्था व श्रद्धा भक्ति के साथ शुद्ध जल से चरण धोकर पूजा करने के पश्चात उनको रुचिकर भोजन कराना चाहिए। उन्हें उन्हें अपनी सामर्थ्य के अनुसार नये वस्त्र, ऋतुफल, मिष्ठान्न तथा नगद द्रव्य आदि देकर उनके चरण स्पर्श करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। जिससे माता भगवती की कृपा बनी रहे।
विद्वानों के अनुसार चैत्र शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि ३१ मार्च को अर्द्धरात्रि के पश्चात् ३ बजकर ५० मिनट से आरम्भ होकर ०१ अप्रैल, बुधवार की रात्रि ३ बजकर ४१ मिनट तक रहेगी। तत्पश्चात् नवमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी। अष्टमी तिथि को हवन, कुंवारी पूजन महानिशा पूजा एक अप्रैल, बुधवार को ही सम्पन्न होगी। उदया तिथि के मुताबिक एक अप्रैल, बुधवार को अष्टमी तिथि का मान रहने से महाअष्टमी, दुर्गाष्टमी का व्रत एक अप्रैल को रखा जाएगा।
जगदजननी मां भगवती के पूजन अर्चन के साथ नवरात्र में नवग्रह की पूजा भी विशेष फलदायी होती है।
नवरात्र में नौ ग्रहों की अनुकूलता के लिए विधि-विधानपूर्वक नवग्रह शान्ति करवाने के पश्चात नवग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान भी करना चाहिए। नवरात्रि में ग्रहों की अनुकूलता के लिए पूजा अर्चना करना विशेष लाभदायी रहता है। राशि के अधिपति ग्रह का मन्त्र एवं जप एवं संख्या इस प्रकार है-
* मेष (मंगल)- “ॐ अं अंगारकाय नमः” (जप संख्या-१०हजार)
* वृषभ (शुक्र)- “ॐ शुं शुक्राय नमः” (जप संख्या-सोलह हजार)
* मिथुन (बुध) – “ॐ बुं बुधाय नमः” (जप संख्या-१०हजार)
* कर्क (चन्द्रमा)- “ॐ सों सोमाय नमः” (जप संख्या-११,०००)
* सिंह (सूर्य)- “ॐ घृणि सूर्याय नमः” (जप संख्या-७०००)
* कन्या (बुध)- “ॐ बुं बुधाय नमः” (जप संख्या १००००)
* तुला (शुक्र)- “ॐ शुं शुक्राय नमः” (जप संख्या-१६०००)
* वृश्चिक (मंगल)- “ॐ अं अंगारकाय नमः” (जप संख्या-१००००)
* धनु (वृहस्पति)- “ॐ बूं बृहस्पतये नमः” (जप संख्या-१९०००)
* मकर (शनि)- “ॐ शं शनैश्चराय नमः” (जप संख्या-२३०००)
* कुंभ (शनि)- “ॐ शं शनैश्चराय नमः” (जप संख्या-२३०००),
* मीन (वृहस्पति)- “ॐ बृं बृहस्पतये नमः” (जप सं.१९०००)।
मां के नौ रूपों में
* मां शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम रूप है। मां शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं और इनकी पूजा से चंद्रमा से संबंधित दोष समाप्त होते हैं।
* मां ब्रह्मचारिणी – देवी दुर्गा के नौ रूपों में से द्वितीय रुप है। यह मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
* मां चंद्रघंटा – देवी दुर्गा के नौ रूपों में से तृतीय रुप है जो शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
* मां कूष्मांडा -देवी दुर्गा के नौ रूपों में से चतुर्थ रुप है। मां कूष्माण्डा सूर्य का मार्गदर्शन करती हैं अतः इनकी पूजा से सूर्य के कुप्रभावों से बचाव होता है।
* मां स्कंदमाता – देवी दुर्गा के नौ रूपों मे से पंचम रूप है जो बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बुध ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
* मां कात्यायनी – देवी कात्यायनी बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बृहस्पति के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
* मां कालरात्रि – देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शनि के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
* मां महागौरी – देवी महागौरी राहु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से राहु के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
* मां सिद्धिदात्री – देवी सिद्धिदात्री केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से केतु के बुरे प्रभाव कम होते हैं। नवरात्र व्रत के पारण का दशमी तिथि को विधि विधान पूर्वक किया जायेगा।

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