“होली खुशहाली लाई है”

“होली खुशहाली लाई है”

रंग अबीर में भीग रहा हर गोरी का अंतरमन है,
फागुन की ठंडाई ने ली ये कैसी अंगड़ाई है।

ढोल मंजीरों की धुन पर नाची अब तन्हाई है,
गुझिया पापड़ के थाल सजे पर भाई सबको ठंडाई है।

देखो देखो इठलाई सी होली फिर से आई है।
बच्चों की छोड़ो बूढ़ों ने भी अब तो ली अंगड़ाई है,

भेदभाव को दूर भगाने की कसमें सबने खाई हैं,
रंग अबीर की बौछारों संग खुशियाँ घर घर आई हैं।

देखो होली अपने संग सबकी खुशहाली लाई है।
देखो होली अपने संग सबकी खुशहाली लाई है।

रचनाकार – अशोक राय वत्स.
रैनी (मऊ), उत्तरप्रदेश
मो. 8619668341

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