नवरात्रि महात्म्य !सामर्थ्य, अर्थ व ज्ञान का महापर्व

वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 11 अक्टुबर 2018 ।हिंदू त्यौहार नवरात्रि उत्सव के समय व्रत, पूजन-अर्चन, साधना- उपासना और भजन के माध्यम से पूजा होती है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार 36 रात्रियां अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, जिनमें चार नवरात्र की रात विशेष होती हैं। इसमें पहला चैत्र नवरात्र जिसे वासंतिक नवरात्र कहते हैं तथा दूसरा अश्विन माह का नवरात्रि “शारदीय नवरात्र” होता हैं जबकि आषाढ़ और पौष माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। बताया गया है कि मानव शरीर में नौ प्रमुख वाह्य छिद्र होते हैं। जिसमें दो आंख, दो कान,नाक के दो छेद, दो गुप्तांग और एक मुंह होता है। उपरोक्त अंगों को पवित्र और शुद्ध रखने से मन निर्मल होता है और छठी इंद्री जागृत और सक्रिय होती है। हम जानते हैं कि नींद में यह सभी इंद्रियां सुप्त होती हैं और सिर्फ मन ही जागृत रहता है। व्रत और उपवास रखने से अंग प्रत्यंगों की आंतरिक सफाई हो जाती है, क्योंकि इन नौ दिनों में सात्विक भोजन और सात्विक रहन-सहन के कारण मन शांत रहता है। इन दिनों में प्रथम दिन शैलपुत्री,दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्मांडा, पांचवे दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी तथा नौवें दिन सिद्धिदात्री का पूजन अर्चन विधि विधान से किया जाता है। शारदीय नवरात्र की शुरुआत अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है। यह पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है। इसमें माता दुर्गा के नौ रूपों की विशेष विधि-विधान से पूजा की जाती है। नवरात्रि के प्रथम तिथि को श्रद्धालुजन कलश स्थापना कर पूजा की शुरूआत करते हैं। मां दुर्गा के नौ रूपों को तीन भागों में बांटा गया है। पहले तीन दिन भक्त मां जगतजननी जगदम्बा (दुर्गा), मध्य के तीन दिन धन की देवी मां लक्ष्मी तथा अंतिम तीन दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती के रूपों की पूजा आराधना करते हैं। निर्मल मन से इनके पूजन अर्चन से विशेष फल की प्राप्ति होती है। कहा गया है कि नवदुर्गा क यह रुप एक स्त्री के पूरे जीवनचक्र का प्रतिबिम्ब है जिसमें जन्म ग्रहण करनेवाली कन्या “शैलपुत्री” का स्वरूप होती है तो जन्मोपरांत कन्या अपनी कौमार्य अवस्था तक “ब्रह्मचारिणी” का रूप होती है। यौवनावस्था में विवाह से पूर्व वह चंद्रमा के समान निर्मल होने से “चंद्रघंटा” समान होती है तो वहीं शीशु को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह “कूष्मांडा” स्वरूप होती है। संतान के जन्मोपरांत वही स्त्री “स्कन्दमाता” बन जाती है और फिर संयम व साधना को धारण कर वही स्त्री “कात्यायनी” रूप में हो जाती है। अपने दृढ़ संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीतने की सामर्थ्य से वह “कालरात्रि”का रुप धारण करती है।इसके उपरांत अपने परिवार को ही अपना संसार मानकर उनका उपकार करने से वह “महागौरी” स्वरूप हो जाती है और फिर
पृथ्वी छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पूर्व अपनी संतान को समस्त सुख-संपदा का आशीर्वाद देने वाली स्त्री “सिद्धिदात्री” स्वरुपा हो जाती है।
नवरात्रि की प्रथम तिथि में माता का प्रथम स्वरूप “शैलपुत्री” पर्वतराज हिमालय की पुत्री का रूप है। नवरात्रि के प्रथम दिन इनके पूजन से शान्ति प्राप्त होती है। इनका पवित्र मंत्र ” ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्ये नमः” है। इस मंत्र की एक माला का जाप मां दुर्गा जी के चित्र के सम्मुख बैठकर सात्विक भाव व पवित्र मन से करना चाहिए।
नवरात्रि की दूसरी तिथि को मां का द्वितीय स्वरूप “ब्रह्मचारिणी” है,जो पार्वती जी का तप करता हुआ स्वरूप है। नवरात्र के दूसरे दिन इनकी साधना की जाती है। इनकी साधना से सदाचार, संयम तथा विजय प्राप्त होती है। इनका पवित्र मंत्र ” ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः” है। इस मंत्र की एक माला का जाप मां दुर्गा जी के चित्र के सम्मुख बैठकर सात्विक भाव व पवित्र मन से करना चाहिए।
नवरात्रि की तीसरी तिथि को मां का तीसरा स्वरूप “चंद्रघंटा” का होता है। समस्त कष्टों से मुक्ति के लिए इनकी साधना की जाती है। इनका पवित्र मंत्र “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नमः” है। इस मंत्र की एक माला का जाप मां दुर्गा जी के चित्र के सम्मुख बैठकर सात्विक भाव व पवित्र मन से करना चाहिए।
नवरात्रि की चौथी तिथि को माता के चतुर्थ रूप “कुष्मांडा” का पूजन अर्चन किया जाता है। इससे आयु ,यश व बल में वृद्धि होती है। इनका पवित्र मंत्र ” ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै नमः” है। इस मंत्र की एक माला का जाप मां दुर्गा जी के चित्र के सम्मुख बैठकर सात्विक भाव व पवित्र मन से करना चाहिए।
नवरात्रि की पांचवीं तिथि को मां के पांचवें स्वरूप “स्कंदमाता” क पूजन का विधान हैे । इनके पूजन से सुख, शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है । इनका पवित्र मंत्र ” ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नमः” है। इस मंत्र की एक माला का जाप मां दुर्गा जी के चित्र के सम्मुख बैठकर सात्विक भाव व पवित्र मन से करना चाहिए।
नवरात्रि की छठवीं तिथि को मां का छठवां स्वरूप “कात्यायनी” के नाम से जाना जाता है। इनका पूजन अर्चन षष्ठी तिथि को किया जाता है, जिससे रोग, शोक, संताप दूर होकर अर्थ, धर्म, काम व मोक्ष की प्राप्ति होती है। इनका पवित्र मंत्र ” ऊँ क्रीं कात्यायनी क्रीं नमः” है। इस मंत्र की एक माला का जाप मां दुर्गा जी के चित्र के सम्मुख बैठकर सात्विक भाव व पवित्र मन से करना चाहिए।
नवरात्रि की सातवीं तिथि को मां का सातवां स्वरूप “कालरात्रि” के नाम से जाना जाता है। यह दूसरों के द्वारा किए गए अनिष्ट प्रयोगों को नष्ट करती हैं। इनका पवित्र मंत्र ” ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्यै नमः” है। इस मंत्र की एक माला का जाप मां दुर्गा जी के चित्र के सम्मुख बैठकर सात्विक भाव व पवित्र मन से करना चाहिए।
नवरात्रि की आठवीं तिथि को मां का आठवां स्वरूप “महागौरी” का होता है जो समस्त कष्टों को दूर कर असंभव कार्य सिद्ध करती हैं। इनका पवित्र मंत्र ” ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं महगौर्ये नमः” है। इस मंत्र की एक माला का जाप मां दुर्गा जी के चित्र के सम्मुख बैठकर सात्विक भाव व पवित्र मन से करना चाहिए।
नवरात्रि की नवीं तिथि को मां का नौवां स्वरूप “सिद्धिदात्री” का होता है जिनका पूजन अर्चन नवमी तिथि को किया जाता है। अगम्य को सुगम बनाना इनका कार्य है। इनका पवित्र मंत्र ” ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नमः” है। इस मंत्र की एक माला का जाप मां दुर्गा जी के चित्र के सम्मुख बैठकर सात्विक भाव व पवित्र मन से कर गौघृत से हवन पूजन करना चाहिए।
नवरात्रि में नौ दिनों के व्रत और उपवास से जहां शारीरिक व आंतरिक आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है, वहीं शरीर के विकारों का नाश हो कर शरीर में नवचेतना का संचार होता है।

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