रामलीला मंचन ! भाई लक्ष्मण व पत्नी सीता संग श्रीराम ने किया वनगमन

गाजीपुर(उत्तर प्रदेश),11अक्टुबर 2018।अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वाधान में श्री राम चबूतरा से वन गमन, निषाद राज मिलन व तमसा निवास का मंचन किया गया।
रामलीला के आरम्भ होते ही राम, लक्ष्मण व सीता के साथ महारानी कैकेयी के कक्ष में पहुचते हैं,जहां महाराज दशरथ दुख व शोक मे डूबे हैं और कुल गुरु महर्षि वशिष्ठ व गुरु माता अरुंधति बैठी है। वहां श्रीराम, पिता दशरथ व महारानी कैकेयी व गुरु वशिष्ठव गुरु माता को प्रणाम करते है। इसी बीच दासी मंथरा श्रीराम, लक्ष्मण सीता के लिए तपस्वी का वस्त्र लेकर आती है तो कैकेयी केसरिया वस्त्र लेकर राम, लक्ष्मण व सीता को देती है तथा मंथरा सीता को लेकर कक्ष के अन्दर जाकर राजसी वस्त्रों तथा आभूषणों को उतरवा केसरिया वस्त्र पहनाकर महाराज दशरथ के पास ले जाती है। महाराज दशरथ ने श्रीराम, लक्ष्मण व सीता के उस रुप को देखकर दुखी होकर अपना सिर झुका लेते है। उसके बाद राम, लक्ष्मण और सीता गुरु वशिष्ठ, गुरु माता अरुन्धति व पिता दशरथ एवं महारानी केकेयी को प्रणाम कर उनके कक्ष से वन के लिए प्रस्थान करते है। महाराज दशरथ ने सुमन्त को बुलाकर आज्ञा देते हैं कि आप रथ में बैठाकर ले जाइये, सुमन्त तीनों लोगों को रथ में बैठा कर चलते हैं तभी अयोध्यावासी रोते हुए श्रीराम से कहते है कि आप हमे छोड़कर वन मत जाइये। वावजूद इसके श्रीराम सभी लोगो की बातों को अनसुनी करते हुए सुमन्त से रथ हाकने के लिए आदेश देते है। थोड़ी दूर आगे जाने पर अयोध्या की महिलाये तथा बच्चे भी दोनो हाथ उठाकर श्रीराम से कहते है कि आप हमारे राजा है और राजा रहेगे। आप हमे अनाथ करके वन मत जाइये। श्रीराम अयोध्यावासियो से कहते है कि आपलोग धैर्य रखें और महाराज भरत को तन,मन से मदद कीजिए। उधर श्रीराम वन के लिए प्रस्थान करते है तो सारे अयोध्यावासी श्रीराम चन्द्र की जय से पूरा अयोध्या को गुन्जायमान कर देते हैं। जयकारा सुनकर महाराज दशरथ कैकेयी के कक्ष से दौड़ते हुए बाहर आते है ,महाराज की तीनों रानियां कौशिल्या, केकेयी,सुमित्रा उन्हें अनेकों तरह से समझाती हैं। कैकेयी उनको पकड़कर अन्दर चलने के लिए प्रार्थना करती है, तो महाराज दशरथ कैकेयी को झटकारते हुए कहते है कि चल हट अब तुमसे मेरा कोई रिश्ता नही रहेगा जो मैने अग्नि को साक्षी देकर सात जन्मो को बचन निभाने का बचन दिया था वह जन्म जन्मान्तर के लिए समाप्त हो गया। तुम्हारे लिए दशरथ मर गया है और तुम विधवा हो चुकी हो। इतना सुनते ही कौशिल्या व सुमित्रा सहम जाती है और महाराज दशरथ को अपने कक्ष में ले जाती है। उधर सुमन्त रथ को बढाते हुए तमसा नदी तट पर पहुचते हैं। वहां पहुचकर श्रीराम लक्ष्मण सीता व अयोध्यावासी तमसा नदी के तट पर रात्रि में जमीन पर लेट कर विश्राम करते है । सूर्याेदय होते ही सुमन्त जी रथ को आगे बढ़ाते हुए अयोध्या व श्रृगवेरपुर के सीमा पर रथ को रोक लेते है और कहते है कि हे राम आपका रथ दोनो सीमाओं के बीच में है और आगे जाने पर वन प्रदेश है। वहीं श्रीराम और श्रृगवेरपुर के राजा निषाद राज का मिलन होता है। श्रीराम की यह वन शोभायात्रा हरिशंकरी से प्रारम्भ होकर महाजन टोली, झुन्नूलाल चौराहा, राजकीय महिला महाविद्यालय, राजकीय बालिका इण्टर कालेज, महुआबाग चौक होते हुए पहाड़ खाॅ के पोखरा स्थित श्रीराम जानकी मंदिर पर जा पहुंची। इस शोभायात्रा में भक्तगण भजन गाते हुए श्रीराम को वन के लिए विदा देते है। इस मौके पर रामलीला कमेटी के अध्यक्ष दीनानाथ गुप्ता, उपाध्यक्ष, विनय कुमार सिंह उर्फ वीनू, मंत्री ओमप्रकाश तिवारी (बच्चा), उपमंत्री लवकुमार त्रिवेदी उर्फ बड़े महाराज, मेला प्रबंधक बीरेश राम वर्मा ब्रम्हचारी, उपमेला प्रबंधक शिवपूजन तिवारी, कोषाध्यक्ष अभय कुमार अग्रवाल, प्रदीप कुमार, अशोक अग्रवाल, योगेश वर्मा एडवोकेट, बालगोबिन्द दत्त त्रिवेदीय उर्फ राजन, कुश कुमार त्रिवेदीय उर्फ छोटे महाराज, श्रीराम सिंह यादव, पंड़ित कृष्ण बिहारी त्रिवेदी सहित हजारों की संख्या में श्रद्धालु व दर्शक गण उपस्थित रहे।

Views: 76

Leave a Reply