वासंतिक नवरात्रि ! मां की उपासना का विशेष पर्व

नवरात्रि का पावन पर्व शक्ति की देवी मां दुर्गा की उपासना का पर्व है। नवरात्रि वर्ष में चार होते हैं जिनमें दो नवरात्रों का विशेष महत्व बताया गया है। इसमें पहला वासंतिक नवरात्रि तथा दूसरा शारदीय नवरात्रि कहलाता है। वासंतिक नवरात्रि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होकर चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि तक मनाया जाता है। हिन्दू नववर्ष का भी शुभारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही.होता है।नौ दिनों तक संचालित होने वाले इस पर्व में आराध्य द्वारा मां दुर्गा के नौ रुपों के पूजन का विधान है। शक्ति स्वरुपिणी मां दुर्गा के नौ रूपों में प्रथम शैलपुत्री,द्वितीय ब्रह्मचारिणी, तृतीया चंद्रघंटा, चतुर्थ कूष्मांडा,पंचम स्कंदमाता, षष्ठी कात्यायनी, सातवीं कालरात्रि,आठवीं महागौरी और नौवीं सिद्धिदात्री होती हैं।
नवरात्रि के पहले दिन विधि विधान के साथ कलश स्थापित कर नौ दिनों तक माता की आराधना की जाती है। अंतिम दिन पूरे विधि विधान से हवन पूजन के साथ नवरात्रि सम्पन्न होता है। उसके बाद ब्रती द्वारा नौ कन्याओं को भोजन कराकर उन्हें यथासामर्थ्य उपहार देने चाहिए।

व्रतियों को नवरात्रि के प्रथम दिन प्रातःकाल उठकर स्नान कर विधि विधान से पूजन कर कलश स्थापना करना चाहिए।
इस वर्ष वासंतिक नवरात्रि आठ दिनों का ही है। यह 18 मार्च, रविवार से शुरू हो कर 25 मार्च को समाप्त होगा। कलश की स्थापना तथा नवरात्रि व्रत का संकल्प कर पहले प्रथम पूज्य गणपति तथा मां का पूजन करना चाहिए फिर पृथ्वी का पूजन कर कलश में गंगा जल भरकर घड़े के गले पर रक्षा सूत्र बांधना चाहिए।कलश के नीचे मिट्टी रखकर उसपर जौ रखकर वरूण पूजन करके मां भगवती का आह्वान करना चाहिए। वहां प्रतिदिन विधिपूर्वक मां भगवती का पूजन तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ करना आवश्यक ह।ै विधि विधान से किया गया मां का पजन कभी व्यर्थ नहीं जाता।

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