मानवता अभ्युदय महायज्ञ में मानवीय मूल्यों की स्थापना पर जोर
गाज़ीपुर। श्री गंगा आश्रम द्वारा संचालित मानवता अभ्युदय महायज्ञ का प्रारंभ कलश यात्रा, गंगा पूजन और श्री रामचरित मानस के नवाह्न प्रयाण से हुआ।
उल्लेखनीय है कि विगत ४७ वर्षों से प्रतिवर्ष आयोजित हो रहा है जो आगामी १८ अप्रैल तक चलेगा। भारतीय संस्कृति और उदात्त मानवीय मूल्यों के पक्षधर बाबा गंगारामदास की एकमात्र चिंता है: सत्य न्याय धर्म की समाज में स्थापना। इसके लिए उन्होंने मानव धर्म प्रसार नामक सामाजिक संगठन खड़ा किया जो स्थानीय न्याय और सदुपदेशों के लिए दूर दूर गांवों और शहरों में स्वयंसेवकों को तैयार करता है और धर्म चक्र का प्रवर्तन करता है।
बताया गया कि यज्ञ के प्रत्येक दिन संध्याकाल में सत्संग और भंडारे का संचालन किया जाता है। प्रथम दिन के सत्संग का आरंभ दैनिक प्रार्थना और गुरु अर्चना के साथ हुआ। इसमें व्याख्यान देते हुए साहित्यकार माधव कृष्ण ने कहा कि, हम लोग प्रत्येक धर्म ग्रन्थ में पढ़ते हैं कि धरती अमानवीय कृत्यों से परेशान होकर गाय के रूप में भगवान श्रीहरि से अवतार लेने की प्रार्थना करती है। वस्तुतः जब परिस्थितियां ही बाबा गंगाराम दास जैसे महापुरुष के अवतरण की हेतु हैं। उन्होंने जब शादियाबाद के गुरैनी गांव में जन्म लिया। उस समय समाज में दहेज प्रथा, जातिवाद, सांप्रदायिकता, धर्म नाम पर केवल कर्मकांडो और अशांति का बोलबाला था। सज्जन लोग अपने घरों में दुबके थे और मुकदमे हो रहे थे। बाबा गंगाराम दास ने अपने जीवन काल में ही धर्म पर जमा धूल और गंदगी की परत को हटा दिया। उन्होंने वास्तविक धर्म को उजागर किया, केवल मनुष्य बनने का आह्वान किया, दहेज, भूत खेलने और मुकदमेबाजी जैसी कुप्रथाओं का सामने से सामना किया। उनके जीवन काल में अनेक गांव स्थानीय न्याय के माध्यम से मुकदमा विहीन हो गए। उनके शिष्यों में हिंदू, मुसलमान और अनेक धर्मों जातियों के सज्जन संगठित होना शुरू कर दिए और यह क्रम आज भी चल रहा है।
संत श्री बापू जी महाराज ने अपने व्याख्यान में श्री रामचरित मानस के ज्ञान दीपक प्रकरण को उठाया। उन्होंने कहा कि, संसार में प्रत्येक जीव दुखी है क्योंकि वह माया के वश में है। जैसे वर्षा का शुद्ध जल भूमि पर पड़ते ही गंदा हो जाता है, वैसे ही ईश्वर का अंश जीव माया से मिलते ही अपनी दिव्यता खो बैठता है। जीव में ईश्वर का गुण है लेकिन ईश्वर की सामर्थ्य नहीं है इसलिए जीव को इस दुख से दूर होने के लिए ईश्वर की शरण में आना होगा। बापू जी एवं माधव कृष्ण जी द्वारा प्रतिदिन व्याख्यान दिए जायेंगे और लोगों को सही अर्थों में मानव बनने की प्रेरणा दी जायेगी।
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