भारतीय कृषक समाज के विकास के मॉडल थे स्वामी सहजानन्द – मनोज सिन्हा

स्वामी जी का व्यक्तित्व उत्तरोत्तर उर्ध्वगामी था-  डॉ. श्रीकांत पांडेय 


गाजीपुर। जम्मू काश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को मूलतः किसानों ने ही सशक्त किया है। किसानों के कारण ही भारत आज विश्व की पाँचवीं अर्थव्यवस्था है। ऐसे ही किसानों के हित-रक्षण के लिए स्वामी जी संघर्षरत रहे। उनके विचार भारतीय किसानों के लिए सदियों तक संजीवनी का काम करेंगे। 

          श्री सिन्हा ने उक्त उद्गार स्वामी सहजानन्द स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गाजीपुर और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “बदलते सामाजिक परिवेश में कृषक समाज : स्वामी सहजानन्द सरस्वती के विचारों की प्रासंगिकता” शीर्षक द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में व्यक्त किया।

          उपराज्यपाल ने कहा कि स्वामी जी जैसा व्यक्तित्व के साथ विरले ही अवतरित होता है। वस्तुतः स्वामी जी को कृषक समाज के विकास के मॉडल के रूप में देखा जा सकता है।

             इससे पूर्व महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. वी के राय ने श्री सिन्हा जी को मानपत्र, स्मृतिचिह्न एवं अंगवस्त्रम् देकर सम्मानित किया। महाविद्यालय प्रबंधन समिति के पूर्व सचिव कवींद्रनाथ शर्मा ने श्री सिन्हा का स्वागत कर उनके समक्ष स्वामी जी की विरासत व स्मृति को सहेजने की आकांक्षा व्यक्त की तथा राजनीतिक सहयोग का आग्रह किया। 

      ख्यातिलब्ध साहित्यकार डॉ. नीरजा माधव ने कहा कि स्वामी जी का हृदय भूमिपुत्रों की पीड़ा से प्रतिक्षण आकुल रहा करता था। इस आकुलता ने ही उन्हें कृषक समाज का मसीहा बना दिया। वरिष्ठ लेखिका डॉ. चंद्रकांता राय ने कहा कि स्वामीजी को केवल अध्यात्म के लिए जीना स्वार्थ प्रतीत हुआ, अतः वे परमार्थ की ओर उन्मुख होकर किसान, मजदूर और दीन-हीन तबके से जुड़े। विशिष्ट अतिथि प्रो. उदयन मिश्र, महासचिव, प्राचार्य परिषद, उत्तर प्रदेश ने स्वामी सहजानंद के महती कृत्यों का स्मरण करते हुए कहा कि स्वामी जी एक साथ संन्यासी, क्रांतिधर्मी, साहित्यकार, समाजचेता और कृषक नेता थे। 

          अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. सविता भारद्वाज, प्राचार्य, राजकीय महिला पीजी कॉलेज, गाज़ीपुर ने कहा कि स्वामी जी ऐसे संत थे जो राष्ट्र संत से अभिहित किये जाने योग्य हैं। उन्होंने वैश्विक पटल पर संत के जीवन को सही अर्थों में चरितार्थ किया था। उन्होंने कभी भी अपने कथ्य और कर्म में कोई भेद नहीं किया। 

          समापन समारोह में धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो. अजय राय तथा मंच संचालन संगोष्ठी के समन्वयक डॉ. प्रमोद कुमार अनंग ने किया।

          समापन सत्र से पूर्व अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के तृतीय एवं चतुर्थ तकनीकी सत्र का आयोजन हुआ जिसमें  प्रो. मदनमोहन पांडेय, प्रो. आकाश, प्रो. श्रीकांत पांडेय, प्रो. वंदना दुबे ने स्वामी सहजानन्द के जीवन संघर्ष और बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वरूप, बदलते परिवेश में कृषक समाज की स्थिति, भारत की आर्थिक प्रगति में किसानों की भूमिका जैसे अनेक मुद्दों पर अपना सार्थक विचार विनिमय किया।

          बलिया से आमंत्रित प्रो. बी एन पांडेय ने जैविक व रासायनिक खेती के गुण-दोषों का विवेचन किया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पधारे मुख्य वक्ता प्रो. राजेश गर्ग ने बताया कि स्वामी सहजानन्द ने नारायण के रूप में नर (कृषक) की पीड़ा को आत्मानुभूत किया था। चतुर्थ तकनीकी सत्र की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध इतिहासकार और स्वामी सहजानन्द सरस्वती के व्यक्तित्त्व व वांगमय के निष्णात अनुसंधाता प्रो. राघवशरण शर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि आधुनिक भारत के विकास मॉडल के लिए स्वामी सहजानन्द के विचार अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। उन्होंने स्वामी सहजानन्द सरस्वती को किसान आंदोलन के शिल्पकार, सूत्रकार और संघर्षरत योद्धा के रूप में संबोधित किया। 

          तकनीकी सत्र में मंचारूढ़ विद्वत् वक्ताओं का स्वागत-परिचय महाविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभागाध्यक्ष  डॉ. कृष्णानन्द चतुर्वेदी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. नर नारायण राय एवं मंच संचालन प्रो. संतोष कुमार सिंह ने किया। 

          संगोष्ठी के दौरान मीडिया प्रबंधन का दायित्व निर्वहन महाविद्यालय के हिंदी विभाग के प्राध्यापकद्वय सुरेश कुमार प्रजापति व डॉ. सतीश कुमार राय ने संभाला। पूरे संगोष्ठी के वृहत् आयोजन को सफल बनाने में मेजबान महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापकगण, सुदूर अंचलों से चलकर आये प्रबुद्धजन, शिक्षकगण, शोधार्थीगण, मीडियाकर्मी आदि की  सहभागितापूर्ण उपस्थिति स्तुत्य एवं प्रसंशनीय रही।

Views: 471

Advertisements

Leave a Reply