नवरात्र आराधना से जागृत होती है आंतरिक ऊर्जा 

 

 

 

 

 

 

 

 

नवरात्रि पूजनोत्सव


वाराणसी । सनातनी परम्परा और धर्मशास्त्रों में मातृशक्ति को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। मातृशक्ति को समर्पित जगद्जननी जगदम्बा के विशेष पर्व “नवरात्रि” को सनातनी परम्परा का निर्वहन करनेवाले श्रद्धालुओं में विशेष महत्व है। नवरात्रि में नौ दिन व्रत, पूजन-अर्चन, साधना- उपासना और जागरण के माध्यम से मां की पूजा होती है। पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार वर्ष की 36 रात्रियां अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, जिनमें चारों नवरात्रि की रात विशेष होती हैं। इसमें पहला चैत्र नवरात्र “वासंतिक नवरात्र” तथा दूसरा अश्विन माह का नवरात्रि “शारदीय नवरात्रि” होता हैं। आषाढ़ और पौष माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।

बताया गया है कि मानव शरीर में नौ प्रमुख वाह्य छिद्र होते हैं। जिसमें दो आंख, दो कान,नाक के दो छेद, दो गुप्तांग और एक मुंह होता है। नींद में यह सभी इंद्रियां सुप्तावस्था में रहती हैं और सिर्फ मन ही जागृत रहता है। व्रत और उपवास रखने से अंग प्रत्यंगों की आंतरिक सफाई हो जाती है, क्योंकि इन नौ दिनों में सात्विक भोजन और सात्विक रहन-सहन के कारण चित्त शांत रहता है।                         शरीर के उपरोक्त सभी अंगों को पवित्र और शुद्ध रखने से मन पवित्र व चित्त निर्मल होता है और छठी ज्ञानेन्द्री जागृत और सक्रिय होती है।

शारदीय नवरात्र का शुभारम्भ अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है। यह पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है। शास्त्रों में नवरात्रि के पवित्र दिनों में माता जगदम्बिका के नौ रुपों की विशेष विधि-विधान से पूजन व आराधना का विधान है। नवरात्रि के प्रथम दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्मांडा, पांचवे दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी व नौवें दिन सिद्धिदात्री का पूजन अर्चन विधि विधान से किया जाता है।

नवरात्रि के प्रथम तिथि को सभी श्रद्धालुजन कलश स्थापित कर नवरात्रि पूजन का आरम्भ करते हैं। मां दुर्गा के नौ रूपों को तीन भागों में वर्णित किया गया है। पहले तीन दिन भक्त मां जगतजननी जगदम्बा (दुर्गा), मध्य के तीन दिन धन की देवी मां लक्ष्मी तथा अंतिम तीन दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती के रूपों की पूजा आराधना करते हैं। निर्मल मन से इनके पूजन अर्चन से विशेष फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि नवदुर्गा के यह रुप एक स्त्री के पूरे जीवनचक्र का प्रतिबिम्ब है। जिसमें जन्म ग्रहण करनेवाली कन्या “शैलपुत्री” का स्वरूप होती हैं तो जन्मोपरांत कन्या अपनी कौमार्य अवस्था तक “ब्रह्मचारिणी” का रूप होती हैं। यौवनावस्था में विवाह से पूर्व वह चंद्रमा के समान निर्मल होने से “चंद्रघंटा” समान होती हैं तो वहीं शीशु को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह “कूष्मांडा” स्वरूप होती हैं। संतान के जन्मोपरांत वही स्त्री “स्कन्दमाता” बन जाती हैं और फिर संयम व साधना को धारण कर वही स्त्री “कात्यायनी” रूप में हो जाती हैं। अपने दृढ़ संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीतने की सामर्थ्य से वह “कालरात्रि”का रुप धारण करती हैं। इसके उपरांत अपने परिवार को ही अपना संसार मानकर उनका उपकार करने से वह “महागौरी” स्वरूप हो जाती हैं और फिर पृथ्वी छोड़कर स्वर्ग प्रस्थान करने से पूर्व अपनी संतान को समस्त सुख-संपदा का आशीर्वाद देने वाली स्त्री “सिद्धिदात्री” स्वरुपा हो जाती हैं।

उल्लेखनीय है कि इस वर्ष शारदीय नवरात्रि का आरम्भ गुरुवार 03 अक्टूबर से हो रहा है। इस वर्ष मां का आगमन पालकी पर हो रहा है। नवरात्रि के प्रथम दिन 03 अक्टूबर को ही कलश स्थापना या घटस्थापना के साथ ही मां जगत जननी जगदम्बा का पूजन अर्चन व व्रतादि प्रारंभ हो जायेंगे। कलश स्थापना हेतू दो मुहूर्त बन रहे हैं । कलश स्थापना का पहला शुभ मुहूर्त प्रातः 06:07 से लेकर प्रातः काल 09:23 तक रहेगा। वहीं दूसरा अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:37 से दोपहर 12:23 तक रहेगा।

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