संवेदनाओं को जागृत करने के लिए प्रेमचन्द जैसे साहित्यकार आवश्यक

गाजीपुर। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद और नवगीतकार डॉ उमाशंकर तिवारी की जयन्ती शहर के “द प्रेसिदियम इंटरनेशनल स्कूल अष्टभुजी कॉलोनी” के सभागार में सम्पन्न हुई।

अखिल भारतीय हिन्दी महासभा और उपनिषद मिशन ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि अनंत देव पाण्डेय रहे। उन्होंने कविताओं के द्वारा दोनों महापुरुषों की वन्दना की‌। 

         मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार कुमार निर्मलेंदु ने कहा कि किसानों के लिए पूर्वांचल के दो मनीषियों ने बड़ा योगदान दिया, स्वामी सहजानंद और मुंशी प्रेमचंद। १९३६ में प्रगतिशील संघ की बैठक में मुंशी प्रेमचन्द का भाषण सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाषणों में से एक है., उसी वर्ष किसान सभा के लखनऊ सम्मेलन में स्वामी सहजानंद भाषण दे रहे थे. किसी भी परिकल्पना को सरल भाषा में कहना ही प्रेमचन्द की विलक्षणता है. ‘गरीब के लिए क्या ईद, क्या मोहर्रम?’ प्रेमचंद की इस भाषा में ईद सुख का प्रतीक है, मोहर्रम दुःख का प्रतीक है. कविता के क्षेत्र में दिनकर और कहानी के क्षेत्र में प्रेमचन्द की रचनाओं से इतिहास की झलक मिलती है. रचना असर तब करती है, जब साहित्यकार अपनी विषयवस्तु के लिए संघर्ष करने को तैयार हो. मुंशी प्रेमचंद के पुत्र का विवाह सुभद्रा कुमारी चौहान की पुत्री से हुआ, जो एक अंतरजातीय विवाह था. उन्होंने जो लिखा, वह किया. इसलिए उनके लेख प्रामाणिक हैं। 

           विशिष्ट अतिथि डॉ युधिष्ठिर तिवारी ने कहा कि, कमल किशोर गोयनका के अनुसार मुंशी प्रेमचंद की आज तक समालोचना में केवल वर्ग संघर्ष को ही देखा जाता रहा है, जबकि उन्हें समग्र दृष्टि से समझने और देखने के लिए उनकी समावेशी प्रवृत्ति को डिकोड करना पड़ेगा. मुंशी प्रेमचंद के साथ विश्व कथाकारों में एक टॉलस्टॉय ही खड़े हो सकते हैं. डॉ उमाशंकर तिवारी ने भारतीय क्षितिज पर गाजीपुर को गौरव प्रदान किया. विशिष्ट अतिथि डॉ अम्बिका पाण्डेय ने कहा कि, हिंदी महासभा का गठन गाजीपुर में समावेशी साहित्यिक गोष्ठियों के अभाव को दूर करेगी. डॉ उमाशंकर तिवारी जी का साहित्य क्रमशः अमरता की ओर बढ़ रहा है. मुंशी प्रेमचन्द के साहित्यकार की आवश्यकता है जो संवेदनाओं को जागृत करे अन्यथा मणिपुर जैसी घटनाएँ होती रहेंगी.

अर्थशास्त्र के प्रवक्ता डॉ श्रीकांत पाण्डेय ने कहा कि, डॉ उमाशंकर तिवारी जी संस्मरणों के भण्डार थे. उनका व्यक्तित्व इकहरा था इसलिए वह सरल, निश्चल थे. साहित्यकार के पास घनीभूत अनुभूति होती है. डॉ तिवारी अपने नवगीतों की ही भांति एक संवेदनशील व्यक्ति थे ‘जिन्दगी जीने के लिए तूने आग का दरिया दिया. पार करने के लिए बस मोम की किश्ती दे दी.’ मुंशी प्रेमचंद का साहित्य हिन्दी कथा और उपन्यास के क्षेत्र का प्रस्थान बिंदु है. उन्होंने परिस्थितियों की ख़ूबसूरती से व्याख्या करते हुए परिवर्तन का साहित्य रचा.

      सेवानिवृत्त प्रवक्ता धर्मदेव यादव ने कहा, कि ऐसे आयोजन हमें शक्ति देते हैं, ‘ज्ञान श्रेष्ठ है वही जो आत्म आंकलन करे.’ प्रेमचन्द की वाणी और साहित्य में माधुरी है. डॉ उमाशंकर तिवारी के अनुज मायाशंकर तिवारी ने अपने भाई के लिखित प्रेमगीत को पढ़ा, “आज की यह रात पागल रात देखें कौन सोता है.” कवि गोपाल गौरव पाण्डेय जी ने कविता पढ़ी, ‘ग्र जिन्दगी में कोई दिलबर नहीं होता, तो आंसुओं का समन्दर नहीं होता. चांदी का बना ले या सोने का बना ले, दिल के सिवाय उसका कोई घर नहीं होता.’ कवि आशुतोष श्रीवास्तव ने कविता पढ़ी, “किसी माँ का बेटा ब्रांडेड स्कूल का ब्रांडेड प्रोडक्ट बन गया.” कवि रामअवध कुशवाहा ने पढ़ा, “शब्द की खोज में लग, आँख उठा देख जरा कौन है अमीर आज, जो भी है वह है चाटुकारिता से ग्रस्त.” कवि इन्द्रजीत तिवारी निर्भीक ने महंगाई पर व्यंग्य कसते हुए कहा, “महंगाई देख न कर तू दिल को छोटा, बन जा बेटा तू भी अब कंजूस व खोटा.” 

भारतीय स्टेट बैंक के भूतपूर्व प्रवन्धक महेश चन्द्र लाल ने कहा कि, मुंशी प्रमचंद सार को पकड़ने वाले और थोथा उड़ा देने वाले साहित्यकार हैं. विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ बालेश्वर विक्रम ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की पहली प्रकाशित कृति सोजे-वतन राष्ट्रवाद का दस्तावेज है, इसे हमीरपुर के कलेक्टर ने जलवाया, यह मुंशी प्रेमचन्द के निर्माण की घटना है. वह बड़े पत्रकार और सम्पादक हैं. उनकी कहानियाँ समाज और सभ्यता को टूटने से बचाने का प्रयास कर रही हैं. ‘एक अदद शब्द के लिए चलिए बाजार तक चलें’ के द्वारा डॉ उमाशंकर तिवारी बाजारवाद और विज्ञापनवाद के खतरों से आगाह करते हैं. 

संचालन डॉ माधव कृष्ण ने किया. हिन्दी महासभा के उपाध्यक्ष (युवा प्रकोष्ठ) छत्रसाल सिंह जी ने कहा कि, युवाओं को अधिक से अधिक अध्ययन, विश्लेषण, और श्रवण की आवश्यकता है. मंत्री श्रीमती दामिनी पाण्डेय जी ने मुंशी प्रेमचन्द का जीवन परिचय दिया. युवा कवि रमाकांत यादव जी ने अपनी कविता पढ़कर लोगों को आनंदित किया, “तुझको इजहार लिखा हमने, बस एक दफा तुमको देखा, इस नफरत के अंगार में भी श्रृंगार ही लिखते जायेंगे, हम दीवाने हैं दीवानों के प्यार ही लिखते जायेंगे.” कार्यक्रम में हरीश पाण्डेय, अखिलेश्वर प्रसाद सिंह, सहेंद्र यादव, जवाहर वर्मा, अनिल राय, नागेश सिंह, अमित श्रीवास्तव, अनुपम आनन्द, मनीष यादव, मनोज यादव इत्यादि उपस्थित रहे। 

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