ई पेपर और डिजिटल मीडिया को मान्यता देना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी

गाजीपुर। जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया के बैनर तले सम्पन्न वर्चुअल बैठक में ई पेपर और डिजिटल मीडिया को मान्यता प्रदान करने की जोरदार आवाज उठायी गयी।

     वक्ताओं ने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान होता है। बिना पत्रकारिता अपने शैशवावस्था को छोड़कर आधुनिक पत्रकारिता का रूप ले चुकी है जहां अब सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए तमाम सारे विकल्प मौजूद हैं परंतु साधारणतया देखा जाता है कि इन विकल्पों के माध्यम से कभी-कभी उत्तेजित सामग्री परोसने के चलते समाज में विकृति और अव्यवस्था का माहौल बनता है और देश के सामाजिक ताने बाने को नुकसान पहुंचता है कभी कभी तो स्थिति अनियंत्रित भी हो जाती है। इन सबके बावजूद डिजिटल मीडिया का अपना एक अलग महत्व है। हाल के दिनों में इसका महत्व और भी बढ़ गया है और डिजिटल मीडिया ने समाज में अपना एक अलग मुकाम हासिल किया है। आज कुछ पलों में ही कोई भी खबर कुछ लोगों तक ही नहीं बल्कि कई देशों में प्रसारित हो रही है। डिजिटल मीडिया का सीमित कार्यक्षेत्र अब असीमित हो गया है ऐसी स्थिति में अब इसके पंजीकरण और मान्यता की भी आवाजें उठने लगी हैं।

         संगठन का मानना है कि डिजिटल मीडिया को पंजीकृत मीडिया में स्थापित करने से जहां इसके फायदे लोगों को मिल सकेंगे वहीं दूसरी तरफ इससे होने वाले नुकसान पर सरकार अपना नियंत्रण बनाते हुए इसे निरंकुशता से बचा सकेगी।

         संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग सक्सेना ने कहा कि आज के समय में डिजिटल मीडिया की महत्ता से इंकार नहीं किया जा सकता। सरकार की दोहरी नीति के कारण डिजिटल मीडिया की मान्यता अधर में है जो चिंतनीय है। हालांकि अब डिजिटल मीडिया का प्रयास भी होता है कि खबरों की विश्वसनीयता बनी रहे। खबरों में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए कई बार पत्रकारों को जान तक जोखिम में डालना पड़ता है। संगठित अपराध, किसी माफिया और अधिकारी को बेनकाब करने के लिए जब कोई पत्रकार हिम्मत जुटाता है, तो उसे कुचलने के लिए चारों तरफ से पूरी कोशिश की जाती है और उस पत्रकार से पत्रकार होने का सबूत मांगा जाता है, परन्तु डिजिटल मीडिया का पंजीकरण न होने के चलते पत्रकारों के प्रेस कार्ड तक नहीं जारी हो पाते है जारी भी होता है तो अधिमान्यता की शर्तें पूरी नहीं कर पाते है। जिस कारण इन्हें फर्जी पत्रकारों या तथाकथित पत्रकारों की संज्ञा दी जाती हैं।

           ऐसी जानकारियां शासन के जिम्मेदारों को संगठन के माध्यम से कई बार दी जा चुकीं है। इसके बावजूद सरकार अनजान बनी हुई है। 

          लीगल एक्सपर्ट डॉ नूपुर धमीजा अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि डिजिटल मीडिया से आज  रजिस्ट्रेशन दिखाओ के साथ-साथ कई और गंभीर प्रश्न किये जाते हैं । डिजिटल मीडिया पर पाबंदी का सबसे बेहतर जरिया है उसे फेक कह देना या फिर रजिस्टर्ड न होने की धौंस दिखाना। बड़ी मीडिया विज्ञापनों के दबावों में आसानी से मैनेज हो जाती है, लेकिन डिजिटल मीडिया पर बंदिशें संभव नहीं हैं।देश की जनता का भरोसा डिजिटल मीडिया पर बढ़ा है। पहले लोग डिजिटल की खबर पढ़कर सही गलत के फैसले हेतु प्रिंट या टीवी देखते थे लेकिन अब टीवी या प्रिंट में छपी खबर पर भरोसा करने के लिए यू-ट्यूब,फेसबुक या समाचार पोर्टल पर खबरें देखते हैं। अब डिजिटल मीडिया पर भरोसेमंद, शोधपरक और जनपक्षधर पहचान वाले तमाम पत्रकार मिल जाएंगे, जिन पर जनता किसी भी कॉरपोरेट घराने के पत्रकार और पत्रकारिता से ज्यादा ट्रस्ट करती है। अब समय आ चुका है कि  डिजिटल मीडिया को रजिस्टर्ड मीडिया के रूप में मान्यता दी जाएं। 

         वरिष्ठ पत्रकार डा. ए.के. राय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान समय में डिजिटलीकरण से देश में व्यापक स्तर पर बदलाव हो रहा है। इससे मीडिया का क्षेत्र भी काफी प्रभावित हुआ है। आज देश में डिजिटल मीडिया और ई पेपर के क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई है। इनके आने से दूरदराज के गांव देहात की खबरें भी अब राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने लगी हैं। डिजिटल मीडिया की पहुंच हर घर तक है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि डिजिटल मीडिया के पत्रकारों को भी अन्य पत्रकारों की भांति मान्यता प्रदान कर उनकी भी जिम्मेदारी उठाये। इसके साथ ही साथ सरकार को चाहिए कि डिजिटल मीडिया के नियमन और नियंत्रण तथा पत्रकारों के हित में मीडिया आयोग का भी गठन किया जाए। 

        संगठन के राष्ट्रीय संयोजक डॉ आर सी श्रीवास्तव ने कहा कि सरकार प्रिंट मीडिया और डिजिटल मीडिया सभी के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। डिजिटल मीडिया वर्तमान समय में अपना एक अलग महत्व रखती है और इसका पंजीकरण इससे जुड़े पत्रकारों के लिए मान सम्मान की बात है। आज ऐसे पत्रकारों की संख्या लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों में है यदि सरकार इस संबंध में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाती है तो ऐसी स्थिति में आपसी भेदभाव और छोटे बड़े की भावनाओं को ताक पर रखते हुए एकजुट होकर हमें अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए ताकि डिजिटल मीडिया और ई-पेपर को यथोचित सम्मान मिल सके।

        संस्था के वरिष्ठ पदाधिकारी अशोक झा के अनुसार आज कई राज्यों की सरकारें डिजिटल मीडिया के महत्व को समझते हुए उन्हें विज्ञापनों के साथ साथ उचित सम्मान देने की तरफ अग्रसर हैं परंतु जबतक केंद्र सरकार इस संबंध में कोई नीति निर्धारित नहीं करती तबतक राज्य सरकारों द्वारा किया गया प्रयास नाकाफी ही होगा।  

          संगठन के राजस्थान के वरिष्ठ पदाधिकारी राजू चारण ने कहा कि भारत के कई राज्यों ने डिजिटल मीडिया को परोक्ष या अपरोक्ष रूप से मान्यता देने के लिए हामी भरी है परंतु इतना ही पर्याप्त नहीं है। इस संबंध में और भी कार्य करने की आवश्यकता है जब तक डिजिटल मीडिया को मान्यता नहीं मिल जाती है तब तक हमारा संघर्ष जारी रहेगा।

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