सूचना आयुक्त पर लगा दंड लगाने और माफ करने का आरोप, एक्टिविस्ट उर्वशी ने उठायी जांच की मांग

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्तों पर सूचना कानून की धारा 20 के तहत जनसूचना अधिकरियों पर मनमाने ढंग से अर्थदण्ड लगाने और निहित स्वार्थ पूरे होते ही अधिरोपित अर्थदण्ड को गैरकानूनी ढंग से वापस लेने का रैकेट चलाने का गंभीर आरोप लगा है।
यह आरोप लखनऊ निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा ने लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, प्रशासनिक सुधार विभाग के प्रमुख सचिव समेत सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त,रजिस्ट्रार,सचिव और उपसचिव को शिकायत भेजी है। उन्होंने सूचना आयोग के अभिलेखों, सूचना आयोग की सीसीटीवी फुटेज और सूचना आयुक्तों समेत उनके स्टाफ के सभी फ़ोन्स की सीडीआर के आधार पर जांच कराकर दोषी सूचना आयुक्तों को चिन्हित करके एक्ट की धारा 17 के तहत बर्खास्त करने की मांग उठा दी है.
उर्वशी शर्मा ने अपनी शिकायत में फारुक अहमद सरकार बनाम चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स मामले, कल्पनाथ चौबे बनाम सूचना आयुक्त, 2010 (3) के मामले,रमेश शर्मा बनाम स्टेट इन्फार्मेशन कमीशन, हरियाणा, 2008 के मामले, अजीत कुमार जैन बनाम हाईकोर्ट ऑफ डेल्ही के मामले,यूनियन ऑफ़ इंडिया बनाम धर्मेन्द्र टेक्सटाइल के मामले, संजय हिंदवान बनाम राज्य सूचना आयोग मामले, और श्रीमती चन्द्र कांता बनाम राज्य सूचना आयोग मामले में न्यायालयों द्वारा दी गई विधिक व्यवस्थाओं के साथ-साथ आरटीआई एक्ट की धारा 20 एवं उत्तरप्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली, 2015 के हवाले से अपनी शिकायत में लिखा है कि कोई भी सूचना आयुक्त अपनी सोच और कल्पनाओं के आधार पर धारा 20 के तहत दंड अधिरोपित नहीं कर सकता है। उर्वशी ने लिखा है कि दंड अधिरोपण एक्ट की धारा 20 के अनुसार नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का अनुपालन करते हुए जन सूचना अधिकारी को अपना पक्ष रखने का युक्तियुक्त अवसर देने के बाद ही लगाया जा सकता है।
उर्वशी शर्मा का कहना है कि प्रत्येक सूचना आयुक्त के पदीय दायित्व के तहत उससे यह अपेक्षित है कि वह जन सूचना अधिकारी पर आरटीआई एक्ट की धारा 20 का कोई भी दण्ड अधिरोपित करने से पहले आश्वस्त हो कि जनसूचना अधिकारी को नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के अनुसार सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दे दिया गया है तथा उत्तरप्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली, 2015 के नियम 12 में उल्लिखित दोनों आधारों पर मामले की पुनर्स्थापना का कोई अवसर उपस्थित होने की सम्भावना नहीं है।
उन्होंने कहा कि अधिनियम में मनमानी और निरंकुश पेनल्टी का कोई भी प्राविधान नहीं है। यदि कोई आयुक्त जन सूचना अधिकारी की गलती न होते हुए भी बिना जनसूचना अधिकारी को सुने ही मनमाना दंडादेश पारित कर रहा है या यदि कोई आयुक्त नियत तिथि से इतर तिथि पर सुनवाई करते हुए जनसूचना अधिकारी की अनुपस्थिति में दंडादेश पारित कर रहा है तो यह माना जाना चाहिए कि यह कृत्य या तो सम्बंधित सूचना आयुक्त का जन सूचना अधिकारी के प्रति दुर्भावना से दंड लगाने के कदाचार और नैतिक अधमता का कृत्य है अथवा सम्बंधित सूचना आयुक्त सूचना कानून को समझकर अपने पदीय दायित्वों के निर्वहन में मानसिक रूप से अक्षम है। इसके लिए सम्बंधित सूचना आयुक्त के खिलाफ सूचना कानून की धारा 17 के तहत कार्यवाही आरम्भ करके सूचना आयुक्त को बर्खास्त किया जाना आवश्यक है।
बकौल उर्वशी जनसूचना अधिकारी पर दण्ड अधिरोपण के पश्चात सम्बंधित मामले की पुनर्स्थापना और दंड वापसी कुछेक मामलों में अपवाद स्वरुप ही होनी चाहिए किन्तु दुर्भाग्य का विषय है कि उत्तर प्रदेश के कुछ सूचना आयुक्तों द्वारा अधिकाँश मामलों में पहले तो सूचना कानून की धारा 20 के तहत जनसूचना अधिकारियों पर मनमाने ढंग से अर्थदण्ड लगाया जा रहा है और निहित स्वार्थ पूरे होने पर अधिरोपित अर्थदण्ड वापस लेने का रैकेट अपने सुनवाई कक्ष के स्टाफ के साथ मिलकर चलाया जा रहा है।
उर्वशी ने बताया कि उनको उम्मीद है कि उनकी इस शिकायत पर माकूल कार्यवाही होगी और निहित स्वार्थों के लिए दंड लगाने और माफ करने का खेल करने वाले सूचना आयुक्त जल्द ही कानून के शिकंजे में कसे जायेंगे।

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