हथियाराम ! मठ परिसर में बह रही है आध्यात्म की गंगा

गाजीपुर। स्थित सिद्धपीठ हथियाराम मठ पर 26वें पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी भवाानी नंदन यति महाराज के पीठाधीश्वर पद पर आसीन होने के 25 वर्ष पूरे होने पर तीन दिवसीय रजत जयंती समारोह में काशी के प्रकांड वैदिक विद्वानों द्वारा हरिहरात्मक यज्ञ व विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान विधि विधान से के बीच आध्यात्म की गंगा बहती रही। मुख्य यजमान व पीठाधीश्वर स्वामी भवानीनंदन यतिजी महाराज समस्त अनुष्ठानों में सम्मिलित रहे।
त्रिदिवसीय समारोह में भाग लेने के लिए सिद्धपीठ पर शिष्य श्रद्धालुओं का समूह उमड़ पड़ा। जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी सोमेश्वर यति, महामंडलेश्वर स्वामी परेश यति, महामंडलेश्वर स्वामी मोहनानंद यति उत्तराखंड से चलकर सिद्धपीठ हथियाराम मठ पहुंचे। वहीं पूर्व कैबिनेट मंत्री व वर्तमान में उत्तर प्रदेश विधानसभा नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी,पूर्व मंत्री ओमप्रकाश सिंह,विधायक डा.विरेन्द्र यादव, धीरेंद्र श्रीवास्तव, पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री जय किशन साहू, मार्कण्डेय यादव, सन्तोष यादव, आचार्य संजय पाण्डेय, आचार्य बालकृष्ण पांथरी, सर्वेश पाण्डेय, प्राचार्य डॉ रत्नाकर त्रिपाठी, श्रवण तिवारी, आचार्य शरवेंद्र चन्द्र पाण्डेय, दीपक महाराज,ने भी सिद्धपीठ पर उपस्थित दर्ज कराई।

महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनंदन यति जी महाराज के निर्देशन में चल रहे सभी धार्मिक अनुष्ठानों के आचार्य सुरेश त्रिपाठी द्वारा काशी के वैदिक विद्वानों के प्रवचन करते हुए स्वामी भवानीनंदन यति ने कहा कि कलिकाल में चंडी के साथ विनायक की पूजा सबसे अधिक सार्थक एवं फल देने वाली होती है। इस प्रचंड कलिकाल में यदि कोई आदमी पूजा पाठ अनुष्ठान सफलता पूर्वक एवं मनोयोग से कर सकता है तो वह तात्कालिक शक्ति की उपलब्धता को ध्यान में ही रखकर कर सकता है। इसके लिए एक मात्र साधन माता दुर्गा व भगवान गणेश की पूजा ही है। दुर्गा की पूजा थोड़े समय में, कम सामग्री में तथा किसी भी स्थान पर की जा सकती है। बस उस स्थान, सामग्री एवं मुहूर्त के अनुरूप दुर्गा का भी रूप होना चाहिये।
उन्होंने कहा कि इसी प्रकार गणपति के भी विविध रूपों की पूजा का विधान है। श्रीऋद्धि-सिद्धि सहित श्रीगणेश-साधना ‘कलौ चण्डी-विनायकौ’- कलियुग में ‘चण्डी’ और ‘गणेश’ की साधना ही श्रेयस्कर है। सच पूछा जाए, तो विघ्न-विनाशक गणेश और सर्व-शक्ति-रुपा माँ भगवती चण्डी के बिना कोई उपासना पूर्ण हो ही नहीं सकती। ‘भगवान् गणेश’ सभी साधनाओं के मूल हैं, तो ‘चण्डी’ साधना को प्रवहमान करने वाली मूल शक्ति है।
यज्ञाचार्य सुरेश जी त्रिपाठी ने कहाकि मार्कंडेय पुराण में वर्णित दुर्गा के नौ रूप अप्रमेय, अनुपम, अलौकिक एवं शाश्वत रूप है। इनकी पूजा में बहुत कठोर व्रत, प्रतिबन्ध एवं तपस्या की आवश्यकता होती है। किन्तु इसका फल चिरस्थाई तथा जन्म जन्मान्तर के लिए होता है। किन्तु मातृखंड में वर्णित रूपों का अनुष्ठानं तात्कालिक सुख देने वाला, संकट दूर करने वाला एवं बाधा-रोग-शोक आदि से मुक्ति देने वाला होता है।
रजत जयंती समारोह के तहत त्रिदिवसीय धार्मिक अनुष्ठान के दूसरे दिन बुधवार को एक दिवसीय शतचंडी महायज्ञ के तहत 25 वैदिक विद्वानों द्वारा दुर्गा सप्तशती का 100 बार पाठ किया गया। मंत्रोच्चारण से समूचा सिद्धपीठ गुंजायमान हो उठा। भगवान सिद्धिविनायक की पूजन अर्चन भी विधि विधान के साथ किया गया।


सिद्धपीठ की महिमा अपरंपार- महामण्डलेश्वर परेश यति

गाजीपुर। उत्तराखंड के हल्द्वानी से चलकर सिद्धपीठ हथियाराम मठ पहुंचे वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी परेश यति ने कहा कि सिद्धपीठ हथियाराम मठ की महिमा अपरंपार है। अध्यात्म जगत में यह सिद्धपीठ तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात है। यहां स्थित मृण्मई बुढ़िया माई की कृपा सर्वत्र विद्यमान है। उन्होंने कहाकि वर्तमान पीठाधीश्वर स्वामी भवानीनंदन यति महाराज के नेतृत्व में सिद्ध पीठ उत्तरोत्तर विकास की ओर उन्मुख है।


पीठाधीश्वर भवानीनंदन यति के नेतृत्व में बढ़ी सिद्धपीठ की कीर्ति- महामण्डलेश्वर सोमेश्वर यति

गाजीपुर। उत्तराखंड से पधारे जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी सोमेश्वर यति ने रजत जयंती समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि सिद्धपीठ के 26वें पीठाधिपति महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनंदन यति के नेतृत्व में यहां की कीर्ति बढ़ी है। उन्होंने कहा कि लगभग 700 वर्ष प्राचीन सिद्धपीठ के गुरु शिष्य परंपरा में 26वें पीठाधीश्वर के रूप में विराजमान भवानीनंदन यति पूर्व से चली आ रही त्याग तपस्या की परंपरा को अनवरत जारी रखे हुए हैं। जो इस पीठ के लिए सम्मान का विषय है।

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