अशोक वत्स की नयी रचना

“पाती प्यार की”

यह प्रथम प्यार की पाती है
भेजी है प्रीति निभाने को।
उर में जो प्रेम पला मेरे
अर्पित है सत्य दिखाने को।
उद्गार लिखे मैंने दिल के
तुम तड़प समझ लो प्यार की।
मैंने तो बस यही लिखी है पाती अपने प्यार की।।
मेरे भाव बने हैं शब्द आज
जो दबे थे दिल के कोने में।
मेरा प्यार दिखाई देगा तुमको
हर अक्षर की गहराई में।
वो शब्द कहां से लाऊं मैं
जो तड़प दिखाए प्यार की।
मैंने है दिल खोल दिया तुम पढ़ो ये पाती प्यार की।।
जब देखा पहली बार तुम्हें
अपनापन पाया नयनों में।
जब बात हुई तुमसे मेरी
खो गया था बस मैं यादों में।
सच कहता हूं स्वीकार करो
गहराई मेरे प्यार की।
यह हुआ अंकुरित दिल में है आशा में बस प्यार की।।
इक इक बातें हैं खुदी हुई
इस हृदय पटल में गहरे से।
मैंने तो बस कोशिश की है
तुम्हें दूर रखूं फरेबों से।
टोका भी है तो इसी लिए
बगिया कुसुमित हो प्यार की।
अब तो तपन बुझा लेने दो हमको अपने प्यार की।।

अशोक राय वत्स ©® स्वरचित
रैनी, मऊ, उत्तरप्रदेश , 8619668341

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