कारगिल विजय दिवस

गाजीपुर । “या तो तू युद्ध में बलिदान देकर स्वर्ग को प्राप्त करेगा अथवा विजयश्री प्राप्त कर पृथ्वी का राज्य भोगेगा” गीता के इसी श्लोक को प्रेरणा मानकर भारत के शूरवीरों ने कारगिल युद्ध में दुश्मन को पाँव पीछे खींचने के लिए मजबूर कर दिया था। छब्बीस जुलाई 1999 के दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ‘ऑपरेशन विजय’ को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था। आज उनके साहस और शौर्य को पूरा देश “कारगिल विजय दिवस” के रूप में स्मरण कर नमन करता है।
बात जब- जब देश पर मर मिटने की आयी है, बलिदानी माटी गाजीपुर ने आगे आकर नेतृत्व किया है। इस शहादत की फेहरिस्त बहुत लंबी है। इन शहीदों की पंक्ति में 15 जून 1999 को कमलेश सिंह ने अपनी भारत माता की रक्षा के लिए प्राणों की शहादत देकर अपनी अमर गाथा दुनिया के सामने छोड़ गये।
गाजीपुर मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर बिरनों ब्लाक के भैरोपुर गांव के रहने वालें कैप्टन अजनाथ सिंह के चार पुत्रो में दूसरे नम्बर के पुत्र कमलेश सिंह 31 जुलाई 1985 को बनारस रिक्रूटिंग आफिस से ई.एम.ई. में भर्ती हुए, इनका विवाह 13 मई 1986 को रंजना सिंह से हुआ था। शुरू से ही पिता की विरासत को आगे बढ़ाने का जज्बा लेकर सेना में भर्ती हुए कमलेश सिंह की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता के सेवाकाल के दौरान साथ रहते हुए सेंट्रल स्कूल जामनगर (गुजरात) मे हुई थी। मिडिल स्कूल अपने गांव के निकट बद्धपुर तथा हाई स्कूल की शिक्षा नेहरू इंटर कालेज शादियाबाद से प्राप्त की थी। शहीद के पिता कमलेश सिंह ने बातचीत के दौरान उनकी स्मृति को नम आंखों से याद करते बताया कि वह अपने कार्य के प्रति इतने कुशल और निपुण थे की इनकी ड्यूटी अधिकतर वीआईपी के साथ ही करते थे। इनकी पोस्टिंग अप्रैल में 574 एफ.आर. आई. में भटिंडा में हो गयी। वहां से वह 7 जून को छुट्टी आने वाले थे लेकिन बीच में ऑपरेशन विजय शुरू हो जाने की वजह से छुट्टी नहीं मिली। वह 5 यार्ड की टुकड़ी के साथ कारगिल चले गये। वहां पर द्वितीय राज राइफल के साथ लड़ाई में हिस्सा लिया। वहीं 15 जून 1999 को जब राज राइफल दुश्मनों पर मौत बनकर टूट पड़ी थी कि उसी समय बम का एक टुकड़ा शहीद कमलेश सिंह के शरीर से टकराया और उन्होंने भारत माता के चरणों में अपने प्राण न्योछावर कर दिये।
आगे उन्हें रुंधे गले से बताया कि उनका पार्थिव शरीर दिनांक 19 जून 1999 को गाजीपुर मुख्यालय लाया गया। वहां से भैरोपुर गांव गया। अंत में पार्थिव शरीर की अंत्येष्टि रजागंज स्थित गाजीपुर घाट पर गंगा किनारे देर शाम को पूरे सैनिक सम्मान के साथ किया गया। उन्होंने एक अद्भुत संयोग का जिक्र करते बताया कि “जिस जगह पर पिता ने लड़ाई में हिस्सा लिया था। उसी जगह पर पुत्र ने अपनी शहादत देकर जिले का नाम रोशन करते हुए अमर हो गये। उनकी वीरता का सम्मान यही नहीं रुका उनकी बहादुरी और अदम्य साहस के लिए भारत के तत्कलीन राष्ट्रपति ने उन को मरणोपरांत सेना मेडल से अलंकृत किया।
इस शहीद के बूढ़े पिता अजनाथ सिंह और माता केशरी देवी आज भी पुत्र वियोग में दुखी हो जाते है लेकिन उनकी शहादत पर गर्व भी करते है पर उनकी पीड़ा भी है कि सरकार ने उन्हें कुछ नही दिया। जो भी सुविधाएं मिली वह उनकी पत्नी को मिली। जो शहादत के कुछ दिन बाद ही सभी रिश्ते नाते तोड़कर ससुराल से चली गयी जो आजतक नही लौटी। खैर आज हम सबके बीच शहीद कमलेश सिंह तो नही है लेकिन उनकी बहादुरी, उनके अविस्मरणीय वीरता और कौशल ने आने वाली पीढ़ियों को देश के लिए मर मिटने के जज्बों को बल प्रदान करती रहेगी।

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