छंद रचना ! कवि अशोक राय वत्स

“छंद”
जिसको गुमान बड़ा, अपनी ही फौज पे था,
सीमा बीच वीर देख, आँखें चुराने लगा।
नजरें झुकाने की जो, बातें सदा करता था,
खाके मार वीरों से वो ,दुम हिलाने लगा।
तोड़ी थी कमर अभी, गर्दनें मरोड़ी ही थी,
सुखोई की गर्जना से, शत्रु थर्राने लगा।
पहली ही चाल देख ,ड्रेगन बेहोश हुआ,
बंद जो दुकान हुई, शत्रु पटाने लगा।

बंद जो दुकान हुई, चीन में सियापा छाया,
आँख न मिलाई गई, भारती के लालों से।
बातें नित करता था,अपने जो पौरुष की,
मुंँडी ही मरोड़ी थी की, डरा महाकाल से।
रौद्र रुप देख चीन, बातें करे भाग भाग,
तोपें देख सीमा पार, डरे मार काट से।
वीरता न मिलती ये, बेच बेच माल को,
आँख जो तरेरते थे, पिट रहे लात से।

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