तुभ्यं नमामि मदिराय तुभ्यं नमामि

तुभ्यं नमामि मदिराय तुभ्यं नमामिगाजीपुर, 06 मई 2020। वैश्विक महामारी के संक्रमण से जूझ रहे प्रदेश में जीवनोपयोगी आवश्यक वस्तुओं की बिक्री हेतु दुकानों व व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को खोलने पर रोक तथा शराब को अति आवश्यक वस्तु मानते हुए इसकी बिक्री को अनुमति देकर सरकार स्वयं अपनी किरकिरी करा रही है। इस फरमान के बाद पियक्कड़ शराब की दुकानों की गणेश परिक्रमा कर सरकार के आगे नतमस्तक हो गये हैं कि कम से कम सरकार ने उनकी सुधी तो ली। एक तरफ जहां कोरोना संक्रमण चक्र को तोड़ने तथा संभावित खतरों से लोगों के बचाव के लिए, संभावित कोरोना कैरियर के लिए स्थान स्थान पर चौदह दिनों के पृथकवास के लिए क्वॉरेंटाइन सेंटर में रखा जा रहा है। एक ओर जहां सरकार द्वारा लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए, उन्हें घरों में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है, तो वहीं दूसरी ओर मदिरा प्रेमियों को शराब उपलब्ध कराकर उन्हें मनमानी करने की छूट दी जा रही है। आज लोगों को शराब से ज्यादा उन चीजों की आवश्यकता है जिन्हें पाने के लिए लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। ताजी सब्जी, दूध व आवश्यक वस्तुओं के लिए भागम भाग हो रही है, वहीं शराब खुले रूप में मिल रही है। सिर्फ राजस्व बढ़ाने के लिए, शराबियों को शराब उपलब्ध कराकर उन्हें मनमानी करने की ओर प्रेरित करने जैसा ही है। शराब बंदी के कारण पिछले दिनों में अपराध की गति भी धीमी पड़ी है। ऐसे में लोगों को शराब उपलब्ध कराना कहीं सरकार के अबतक के सारे किए कराए प्रयासों पर पानी न फेर दे,इसकी चिन्ता है। सामान्य जनमानस इससे बुरी तरह आहत है कि कहीं शराबियों के चलते लाकडाउन का प्रभाव निष्प्रभावी न हो जाये।
वुद्धिजीवियों का कहना है कि सरकार का यह फरमान क्या संकेत देना चाहता है यह तो समझ से परे है। जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में शराब पाने के लिए लोगों में आपाधापी मची हुई है। इसके लिए लोग एकाग्रता के साथ सवेरे से लाइनों में लगकर धक्का-मुक्की जोर-जबर्दस्ती कर उसे पाने में लगे हुए हैं।आलम यह है कि कभी नोटबंदी के दौरान(8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान कर 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों को बंद कर दिया था) रुपए पाने के लिए लोग ठंढी के मौसम में घंटों लाइन में लगे रहते थे। उस दौरान प्रायः खबर सुनने को मिलती थी कि नोटबंदी के लाइन में लगे लगे लोग बेहोश हो गए हैं परंतु आज तपती दोपहर में उससे बड़ी लाइने शराब की दुकान चिलचिलाती धूप में देखी जा सकती हैं और इस भयंकर गर्मी में अभी तक कहीं से किसी के गिरकर बेहोश होने की खबर नहीं आई है।
सामाजिक चिन्तकों का कहना है कि कोरोना संक्रमण के दौर से गुजर रहे प्रदेश को बचाने के लिए सरकार को सर्वप्रथम कोरोना महामारी के संक्रमण को निःसंक्रमण करने पर ध्यान देना चाहिये। एक तरफ जहां आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहे मजदूर व श्रमिक लोग सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए राशन और भोजन के पैकेट पर आधारित है वहीं दूसरी ओर सरकार शराब मुहैया कराकर श्रमिक वर्ग को और कमजोर करने पर तुली हुई है। आज भीड़ में अनेकों ऐसे चेहरे दिखाई दे रहे हैं जो सरकारी निशुल्क राशन पाने के लिए लाइन में लगकर अपनी आर्थिक तंगी का रोना रोते हैं, वही शराब की दुकानों पर लाइन लगाकर किसी तरह उसे पाने की जुगाड़ में लगे हुए हैं।
वास्तव में कोरोना से मुक्ति दिलाने में शराब का कहीं कोई योगदान नहीं है, सिर्फ राजस्व बढ़ाने के फेर में सरकार लोगों को मौत के मुंह में ढकेल रही है। कोविद के संक्रमण पर रोक हेतु क्षेत्र को रंगीन बनकर (रेड जोन,आरेंज जोन और ग्रीन जोन में बांटकर)जहां शिक्षा तथा ज्ञान के केंद्र स्कूल, विद्यालय, महाविद्यालय, ट्रेनिंग सेंटर तथा उद्योग धंधों पर अंकुश लगाया गया है। वहां भी शराब की बिक्री की अनुमति देना समझ से परे है। देखने में तो लग रहा है कि लाल,नारंगी व हरे रंग का मतलब सिर्फ अनपढ.,मजदूर व सामाजिक बंधन माननेवालों के लिए ही है। शराब की सर्वभौमिक सत्ता पर किसी भी रंग का कोई प्रभाव नहीं है।
यही कारण है कि मानव में आज शराब की सर्वभौमिक सत्ता को स्वीकार करने की होड़ लगी हुई है। इसके कंठ से नीचे जाते ही अज्ञानी भी महाज्ञानी बन जाता है। अतिरेक से भरे उसके आध्यात्मिक दर्शन,उपदेश व ज्ञान की चर्चा का विरोध करने का साहस कोई नहीं जूटा पाता है।
लोग चुटकी लेते हुए कह रहे हैं कि जहां पर पूर्ण होशो हवास में रहने के बावजूद लोग लॉकडाउन का पालन नहीं कर रहे हैं वैसे में मदहोश शराबी से क्या उम्मीद की जा सकती है। निसंदेह इनके बर्ताव से संक्रमण चक्र टूटने के स्थान पर जुड़ने में देर नहीं लगेगी। शराब बिक्री का यह फैसला कहीं सरकार के लिए ही घातक न हो जाए, इसके लिए सरकार को एक बार फिर सोचना चाहिये।

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