कवि हौसिला अन्वेषी की नयी रचना

जब
कोई नहीं होता
हमारे पास,
तब होते हैं
हमारे विचार
हमारे साथ ।
जो उछलते हैं
कूदते हैं
हाथ पाँव मारते हैं।
नाटक करते हैं
सताते हैं।
कभी कभी तो
खेलते कूदते हुए
उतर आते हैं
कागज पर ।
और कहते हैं,
अब मैं
तुम्हारा ही नहीं
सबका हूँ।
ले चलो मुझे
उस बस्ती में
जहाँ बैठे हैं ग्राहक
विचारों के,
हमें बाँटो
मगर फ्री में ।।
………अन्वेषी…

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