कविता ! “सजा तो मिलनी चाहिए”

“सजा तो मिलनी चाहिए”

गलती करने पर भी क्यों शर्म नहीं आपको?
हम तो गैर ही सही , खुदा से डर तो चाहिए।
जिस खुदा के नाम पर बैरी बना दिया हमें।
उसी के वास्ते कहो ,क्या जुल्म करना चाहिए?

इबादत के नाम पर तो तुम भी शीश नवाते ही हो।
औरों पे तुम्हें इस तरह क्या थूकना यों चाहिए?
निकल रहे हो यों घरों से जैसे मर्ज तुम्हें कोई।
कर बहाना मर्ज का , क्या यों भटकना चाहिए?

मदद के नाम यदि करता हो सेवा आपकी।
क्या उसी पर पत्थरों से वार करना चाहिए?
ये देश है सभी का गौरव इसी से है।
क्या इस तरह से देश से गद्दारी करनी चाहिए?

मजहब नहीं सिखाता नफरत दिलों में रखना।
मजहब के वास्ते क्या तुम्हें नंगा होना चाहिए?
उठा है यों धुआं तो फिर आग भी जली ही है।
तुम्हीं बताओ इस आग में ,क्या वतन झुलसना चाहिए?

घरों को छोड़ कर जो ,सेवा में लीन हैं अभी।
क्या उन्हीं के साथ हमें मारपीट चाहिए?
देश द्रोही को कभी सुकून मिला है नहीं।
तुम्हें भी अपने कर्मों की सजा तो मिलनी चाहिए।।

     स्वरचित - अशोक राय वत्स

रैनी, मऊ, उत्तरप्रदेश 8619668341

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