जयन्ती ! साहित्यिकार पंडित दूध नाथ पांडेय

मऊ(उत्तर प्रदेश),04 मार्च 2019।उत्तर प्रदेश के जनपद मऊ की धरती सदियों से स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, राजनीतिज्ञों, विद्वानों, साहित्यकारों और कला मर्मज्ञो की स्थली रही है। जहां से वातानुकूलित निर्झरिणी प्रवाहित होती है। पवित्र भारत देश ने चाहे जिस रूप में आवाज दिया मऊ जनपद के सच्चे सपूत प्रतिभागी बनने में कोई कोर कसर नहीं छोड़े ।किसी के हाथो ने नंगी तलवारों से शत्रु का दमन किया तो किसी के हाथों ने लेखनी के जरिए एकता का आह्वान कर देशप्रेम का सूत्रपात किया।
उक्त उद्गार पं0 दूध नाथ पांडेय ने कभी गुलाम भारत मे संगठित कांग्रेस की सभा में मऊ चौक पर व्यक्त किया था, जो आज भी प्रासंगिक है।
मऊ जनपद के डुमरांव गांव में पिता पंडित सत्यनारायण पांडेय व माता सामरथी देवी के पुत्र के रुप में 4 मार्च सन 1913 को जन्मे पंडित दूध नाथ पांडेय, वीर रस के प्रख्यात कवि पंडित श्याम नारायण पांडेय के भ्रातृज्य होने के साथ-साथ सहपाठी थे । चाचा भतीजे की उम्र में मात्र तीन चार वर्ष का ही अन्तर था।
कोलकाता के आदर्श हिन्दी हाई स्कूल में वरिष्ठ अध्यापक एवं प्रधानाध्यापक के रूप में 32 वर्षों तक सेवाकाल में कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के तत्कालीन विभागाध्यक्ष पंडित ललिता प्रसाद सुकुल एवं प्रवक्ता साहित्य मर्मज्ञ स्वर्गीय पंडित विष्णु कांत शास्त्री भूतपूर्व राज्यपाल उत्तर प्रदेश तथा कल्याण मल लोढ़ा के अलावा कई काव्य रचनाकारों से पं0 दूधनाथ पाण्डेय जी का संबंध मधुर था। पंडित दूध नाथ पांडेय मन के उदगारों, प्राकृतिक सौंदर्यों और पौराणिक गाथाओं, भूले बिसरे याददाश्तों को कलम के जरिए सुव्यवस्थित रूप प्रदान कर पाठकों, श्रोताओं को परोसने में सिद्धहस्त थे।
पंडित दूध नाथ पांडेय के लेखन कार्य के प्रेरणा स्रोत थे पंडित ललिता प्रसाद शुक्ल और हल्दीघाटी के रचयिता पंडित श्याम नारायण पाण्डेय जी। हिंदी दैनिक समाचार पत्र सन्मार्ग कोलकाता में रामकथा से संबंधित इनके कई निबंध प्रकाशित हुए।सुप्रसिद्ध पत्रिका मणिमय में भी दूध नाथ पांडे जी की कहानियों एवं कविताओं का वर्चस्व था। सर्वप्रथम उनकी कृति रामचरित रूपात्मक झांकी ललित निबंध की पराकाष्ठा पर खरी उतरने वाली गद्य विधा है, जिसके अंतःकरण में वर्णित संवाद में शिव धनुष के टूट जाने पर परशुराम का कोप तथा सीता स्वयंवर के समापन पर जनकपुर की नारियों का मंगल गान” राम मिथिला में आए सखी सब गाली देने लगी —।
उक्त पंक्तियां कालजयी बनकर आज भी विवाह जैसे मांगलिक अवसर पर गायी जाती है। तत्पश्चात 1987 में 54 प्रकरणों में निबद्ध 421 पृष्ठों का महाकाव्य ‘रामदूत ,जब पहली बार प्रकाश में आया तो भक्तजनो शुभचिंतकों ने भक्ति काव्य – गंगा में डुबकी लगाकर धन्य हो गए।वर्तमान में पूर्वी भारत के लगभग छोटे बड़े स्कूलों में अपनी पहचान बनाने में सफल, ‘सिंहासन बोल उठा’ कहानी की तो बात ही निराली है। हिंदी -अंग्रेजी -और संस्कृत में गहन अध्ययन परिपक्व पं0 दूध नाथ पांडेय की कहानी कृति’ हाँसी बुआ ,को जिसने एक बार पढ़ा वह मरते दम तक नहीं भूल सकता।
पंडित जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस में अच्छी पहचान बनाने वाले पं0 दूधनाथ पाण्डेय जी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न थे। साहित्य व शिक्षा के साथ ही राजनीतिक पटल पर भी कुशल वक्ता के रूप में दूध नाथ पांडेय जी आज भी अविस्मरणीय हैं।ब्रिटिश हुकूमत के विद्रोहियो में शामिल सन 1942 के गदर मे भाग लेने के कारण पंडित दूध नाथ पांडेय जी को कई बार जेल की सलाखों में कैद होना पड़ा।
दूध नाथ पांडे जी द्वारा रचित प्रमुख कृतियों में रामचरित्र रूपात्मक झांकी (जिसमें विश्वामित्र की यज्ञ- रक्षा, अहिल्या उद्धार, सीता स्वयंवर आदि का अनूठा संग्रह), राम दूत महाकाव्य, सिंहासन बोल उठा(चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की न्यायप्रियतालोक पर आधारित ऐतिहासिक कहानी), हांसी बुआ,राम भक्त तुलसी, सीता का पाताल प्रवेश,हर हर महादेव,बाल रचना -कलरव:-भाग-1,भाग-2 बच्चो अत्यंत पसंदीदा रचना है।समाज मे व्याप्त अनेको कुरीतियो पर उनके व्यंग्य काफी हद तक समाज को आईना दिखाने मे सिद्ध हस्त है। इसके अलावा ‘एक अध्यापक की जीवन गाथा’ संस्मरण भी सर्वाधिक रुचिकर ज्ञानवर्धक और समाजोपयोगी है।

  आज उनकी जयन्ती पर कोटि कोटि नमन !

रिपोर्ट -गौरीशंकर पाण्डेय ‘सरस’

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