काव्य रचना ! अनाम ख्वाहिशें

तुम संग जिंदगी बाटी
पर प्रेम बांटना कभी ना हो पाया
क्योंकि प्रेम था मुझे
हवाओं से, नदियों से,
घाटियों से, पक्षियों से…….
पहाड़ों से….,..
या उन तमाम चीजों से
जिन्हें किसी ने नहीं बनाया
प्रेम तुमसे भी किया तो जा सकता था
मगर जिंदगी बांटने के दौरान
मेरा प्रेम छन्न से छिटक कर
बिखर गया कहीं
और वो छन्न की आवाज
देर तक गूंजती रही
एकांत के परदे पर,
इंतजार करती रही
शांत कमरे के फर्श पर
उस वक्त तक का
जब तक मेरी आत्मा ने नई पोशाक का
लोकार्पण न कर लिया हो,
फिर तुम तक लौट आना
बस ऐसा ही था
जैसे रेत पर रेंगती फिरंगी उंगलियां
अनाम ख्वाहिशें लिखती है
जिन्हें लिखा तो जा सकता है
मगर जिया नहीं जा सकता
तो बस तभी से
इस अनंत निर्वाण के रास्ते पर
अकेली निकली मैं
नितांत अकेली ……
तुमसे परे खुद को तलाशती,
या स्वयं का निर्माण करती।

पूजा राय

छपरी – सिखड़ी – गाजीपुर (उत्तर प्रदेश)

Views: 61

Leave a Reply