शत शत नमन ! भारत रत्न महामना की जयन्ती आज

वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 25 दिसम्बर 2018। सामाजिक चेतना के उत्प्रेरक,मां भारती के उपासक व मां वागेश्वरी के वरद पुत्र महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म आज के प्रयागराज की संगमी बसुन्धरा पर 25 दिसंबर 1861 को पिता पंडित बैजनाथ दुबे तथा माता मूना देवी के की पांचवी संतान के रूप में हुआ था। इनके पितामह प्रेमधर चतुर्वेदी के पूर्वज मध्य भारत के मालवा प्रांत से आकर प्रयाग में बसे थे। मालवा के होने के कारण ही यह लोग मालवीय कहलाए।बिलक्षण वुद्धि और अप्रतिम प्रतिभा का धनी यही संस्कारित बालक आगे चलकर राष्ट्रहित और सनातन धर्म व शिक्षोत्थान के लिए अपने कर्मों के बल पर देश ही नहीं बल्कि विश्व में अपनी अमर कीर्ति स्थापित की। ब्रितानी हुकूमत की दासता की बेड़ियों
से जकड़े देश के वह इकलौते महापुरुष रहे जिन्हें महामना की उपाधि सेे विभूषित किया गया। संस्कृत के प्रकांड विद्वान रहे इनके पिता भागवत कथा के द्वारा लोगों को धर्मोपदेश देकर तथा कथा वाचन कर जीविकोपार्जन करते थे। उनके विद्वता और ज्ञान तथा मां की शालीनता का प्रभाव मालवीय जी के सम्पूर्ण जीवन में झलकता रहा। पंडित हरदेव शर्मा के ज्ञानोपदेश पाठशाला में महज 5 वर्ष की उम्र में शिक्षा ग्रहण करने पहुंचे और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपनी लगनशीलता के बल पर प्राथमिक शिक्षा के बाद आगे बढ़ते हुए इलाहाबाद के जिला स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने संस्कृत और हिंदी पर अच्छी पकड़ के कारण “मकरंद” उपनाम से कविताएं भी लिखनी प्रारंभ कर दी। मन को झकझोरने वाली इनकी कविताओं को पाठक बड़े चाव से पढ़ते थे। उन्होंने म्योर सेंट्रल कॉलेज से 1879 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी मेधा, लगन और विचारों से प्रभावित होकर हैरिसन स्कूल के प्रधानाचार्य ने उन्हें छात्रवृत्ति देकर कोलकाता विश्वविद्यालय भेजा, जहां से 1884 में उन्होंने बी.ए.की उपाधि प्राप्त की।
इसके उपरांत घर की गरीबी को दूर करने के मां के आग्रह पर अगले दो बर्षों तक सरकारी स्कूल मे शिक्षक की नौकरी की।फिर वे कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के आग्रह पर हिन्दुस्तान दैनिक अखबार में सम्पादन का कार्य करने लगे।करीब ढाई वर्षों तक सम्पादक का कार्य करने के बाद उन्होंने राजा साहब के मदिरा प्रेम के कारण अखबार छोड़ दिया।राजा साहब के लाख प्रयासों के बाद भी जब मालवीय जी सम्पादन कार्य के लिए तैयार नहीं हुए तो राजा साहब ने उन्हें वकील बनने की सलाह दी और वकालत की पढ़ाई का सारा खर्चा भी उठाया। बाद में कई बर्षों तक वकालत कर मालवीय जी ने प्रसिद्धी और धन दोनों अर्जित किया। भारतीय संस्कृति के पोषक मालवीय जी का ध्यान आरंभ से ही देश सेवा, समाजोत्थान तथा धर्मसेवा की ओर अग्रसर रहा, जिसके चलते वकालत छोड़ वे देश सेवा में जूट गये। । पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार तथा राष्ट्र की सेवा में अपना सर्वस्व अर्पण कर देने वाले मनीषी का मन, वाणी, विचार पर सदा संयम रहा। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रणेता के रूप में आज भी भारतीयों के दिल में बसते हैं । उनकी विलक्षण प्रतिभा का लोहा ब्रिटिश हुकूमत भी मानती रही।अपनी विद्वता,कर्तव्यनिष्ठा, सत्य पालन और देश प्रेम के कारण ही वे चार बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। परतंत्रता की बेड़ियों से जकड़े देशवासियों को जगाने के लिए उन्होंने कई अखबारों को अपनी लेखनी से जागृत किया। एक तरफ उन्होंने जहां अखबार हिंदुस्तान का 1887 में लगभग ढाई वर्षों तक तक संपादन किया, वहीं कांग्रेसी नेता पंडित अयोध्या नाथ के अखबार इंडियन ओपिनियन के संपादन में भी सहयोग दिया। उस समय ब्रितानी हुकूमत के समर्थक पायोनियर के समकक्ष उन्होंने 1909 में प्रयाग से ही दैनिक लीडर अखबार निकालकर लोगों में जागृति और देशप्रेम भरने का कार्य किया। उन्होंने दिल्ली जाकर अव्यवस्थित हिंदुस्तान टाइम्स को 1924 में व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिंदी के उत्थान में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा। यह उनकी ही देन रही कि देवनागरी लिपि व हिंदी भाषा को पश्चिमोत्तर प्रदेश व अवध के गवर्नर सर एंटोनी मैकडोनाल्ड के समक्ष 1898 में कचहरियों में प्रवेश मिला। हिंदी साहित्य सम्मेलन के 1910 के अध्यक्षीय संबोधन के अपने सारगर्भित भाषण में उन्होंने हिंदी के वर्चस्व पर भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि हिंदी एक दिन राष्ट्रभाषा बनेगी। जो सही साबित हुई। राष्ट्र हित में किये गए उनके अमूल्य योगदान की याद में भारतीय संसद में लगे महामना के तैल चित्र का विमोचन 19 दिसंबर 1957 को राष्ट्रपति महामहिम डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा किया गया था और 24 दिसंबर 2014 को भारत सरकार द्वारा मालवीय जी को भारत रत्न की उपाधि से भी सम्मानित किया गया। परोपकार एवं उदारता से परिपूर्ण देश भक्त, समाज सुधारक, दृढ़ संकल्पों के धनी, भारत, भारती और भारतीयता के पुरोधा मालवीय जी को आज उनके जन्मदिवस पर कोटिशः नमन।

   **डा. ए के राय**

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