मातृ दिवस ! “तूने हमें प्यार करने को कोई दिन नहीं ढूढा, फिर तेरे सम्मान को हम एक दिन में क्यों समेटे”

वाराणसी ( उत्तर प्रदेश) , 13 मई 2018। आधुनिक मातृ दिवस का आरम्भ ग्राफटन वेस्ट वर्जिनिया में एना जार्विस के द्वारा मातृ शक्ति अर्थात समस्त माताओं तथा मातृत्व के लिए खास तौर पर पारिवारिक एवं उनके आपसी संबंधों को सम्मान देने के लिए आरम्भ किया गया था। सन 1912 में एना जार्विस ने ” मई माह के दूसरे रविवार को ” और “मदर डे” कहावत को ट्रेडमार्क बनाया और मदर डे इंटरनेशनल एसोसिएशन का सृजन किया। जबकि कुछ लोगों का दावा है कि मातृ पूजा का रिवाज़ पुराने ग्रीस से उत्पन्न हुआ है जो “स्य्बेले”ग्रीक देवताओं की मां थीं, उनके सम्मान में मनाया जाता था। यह त्यौहार एशिया माइनर के आस-पास और साथ ही साथ रोम में भी वसंत विषुव के आस-पास इदेस ऑफ़ मार्च (15 मार्च से 18 मार्च ) तक मनाया जाता था। इस दिन माताओं को उपहार दिये जाते थे। यूरोप और ब्रिटेन में कई प्रचलित परम्पराएं हैं जहां एक विशिष्ट रविवार को मातृत्व और माताओं को सम्मानित किया जाता है।
हमारे देश हिन्दुस्तान में, हिन्दू धर्म शास्त्रों व पौराणिक कथाओं के अनुसार मातृ पूजन का विधान श्रृष्टि के आदिकाल से ही रहा है। ऋषि मुनियों द्वारा आदि शक्ति के रुप में मां जगदम्बा का पूजन अर्चन कर उनसे आशीष व प्रेरणा लेकर कार्य करने के अनेकों उल्लेख मिलते हैंं। नवरात्रि के नौ दिन तक चलने वाली देवी की पूजा में भी हम मातृ शक्ति का ही पूजन करते हैं। यदि ध्यान से चिंतन करें तो नवरात्रि के देवी के नौ स्वरूप वास्तव में स्त्री के पूरे जीवनचक्र का बिम्ब हैंं। नवरात्रि में देवी के नौ रुप की पूजा की जाती है। देवी के ये नौ रूप हैं –शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। इन नौ रातों में तीन देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ रुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। नवदुर्गा के ये सभी नौ स्वरूप ममतामयी स्त्री के पूर्ण जीवनचक्र को दर्शाते हैं । जैसे –
1. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या “शैलपुत्री” स्वरूप होती है।
2. स्त्री का कौमार्य अवस्था तक “ब्रह्मचारिणी” का रूप होता है।
3. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह “चंद्रघंटा” के समान है।
4. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह “कूष्मांडा” स्वरूप में है।
5. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री “स्कन्दमाता” हो जाती है।
6. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री “कात्यायनी” का रूप है।
7. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह “कालरात्रि” जैसी है।
8. संसार (कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार करने से “महागौरी” हो जाती है।
9. धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार में अपनी संतान को सिद्धि(समस्त सुख-संपदा) का आशीर्वाद देने वाली “सिद्धिदात्री” हो जाती है।
इसी प्रकार पितृ व मातृ वंदना की परम्परा का उल्लेख राम चरित मानस में भी मिलता है। इसका वर्णन करते हुए लिखा गया है कि ” प्रातकाल उठि कै रघुनाथा ,मातु पिता गुरू नावहिं माथा। कहने का तात्पर्य यह है कि श्रृजन का पूजन वर्ष में मात्र एक दिन में सम्भव नहीं है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने व्यस्ततम समय के मध्य भी अपनी जननी के प्रति उदार बने, संस्कारित हों और उनकी महत्ता को समझ जीवनपर्यंत उनका सम्मान करें, तभी मातृत्व दिवस सही मायने में सफल होगा।
मातृ दिवस पर मातृ शक्तियों को सादर नमन।

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