महावीर जयंती ! सत्य, अहिंसा व त्याग का दिया संदेश

नई दिल्ली ,29 मार्च 2018।जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर जयंती जैन धर्मावलम्बियों का प्रमुख पर्व है।

” किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती
अपने असल रूप को ना पहचानना है ,
और यह केवल आत्मज्ञान प्राप्त
करके ठीक की जा सकती है। “
जैन समुदाय द्वारा आज के दिन सभी जैन मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है। भगवान महावीर अहिंसा, त्याग और तपस्या का संदेश देने वाले महापुरुषों में अग्रणी रहे।महावीर जयंती हिंदू कलेंडर के अनुसार चैत्र मास की त्रयोदशी को मनाई जाती है।माना जाता है कि आज के ही दिन महावीर स्वामी ने जन्म लिया था, इसलिए चैत्र की त्रयोदशी को देश तथा विदेशों में रहने वाले जैन समुदाय के लोग द्वारा हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।भगवान महावीर को वर्धमान महावीर के नाम से भी जाना जाता है। श्वेतांबर जैन समुदाय का मानना है कि उनका जन्म लगभग 599 ईशा पूर्व में हुआ था तो वहीं दूसरी तरफ दिवंगत दिगंबर जैन समाज का मानना है कि भगवान महादेव का जन्म 615 ईशा पूर्व में हुआ था । उनकी जन्म स्थली बिहार के कुंडल पुर के राजघराने में हुआ था। इनकी माता श्री शलादेवी तथा पिता सिद्धार्थ थे। इनकी शादीह कलिंग राज्य की राजकुमारी यशोदा के साथ हुआ था।बचपन में उनका नाम वर्धमान था,अत्यंत साहसी और बलशाली होने के कारण तभी लोग इन्हें महावीर कहने लगे थे। अपने त्याग और तप के बल पर उन्होंने अपनी समस्त इंद्रियों को अपने बस में कर लिया था इसीलिए उन्हें जितेन्द्र भी कहा जाता है।

शारीरिक बलिष्ठता और सामाजिक प्रतिष्ठा के बावजूद उनका मन घर परिवार में नहीं रमा और 30 बर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया। दीक्षा लेने के बाद उन्होंने श्रद्धा व भक्ति के साथ 12 वर्षों तक कठोर तप किया। वैशाख शुल्क दशमी को ऋजु बालुका नदी के तट पर वृक्ष के नीचे भगवान महावीर को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। अपने तप के बल पर जैन धर्म को उन्होंने प्रतिष्ठित करने में सफलता प्राप्त की। भगवान महावीर का निर्वांण कार्तिक मास की अमावस्या को अर्थात दीपावली के दिन पावापुरी में हुआ था ।जैन धर्म अनुयायियों के अनुसार अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रहमचर्य तथा अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना आवश्यक बताया गया है। जैन विद्वानों का प्रमुख उपदेश है अहिंसा परमो धर्मः अर्थात अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है। अहिंसा ही परम ब्रम्ह है, अहिंसा से ही संसार का उद्धार होगा। महादेव जयंती के दिन भगवान महावीर की मूर्तियों का अभिषेक कर रथ पर बैठा कर जुलूस निकाला जाता है और लोगों को सत्य हिंसा का पालन करते हुए एक दूसरे का साथ निभाने की प्रेरणा दी जाती है।

जैन विद्वानों के अनुसार उनके बारे में प्राप्त जानकारी निम्न है–

भगवान महावीर परिचय
1. च्यवन – प्राणात देवलोक
2. गृह प्रवेश तिथि आशा शुक्ला – ६
3. गर्भ संहरण तिथि – आश्विन कृष्णा – १३
4. जन्म तिथि – चैत्र शुक्ला – १३
5. जन्म स्थान – क्षत्रियकुण्डपुर
6. नाम – वर्धमान, महावीर, देवार्य, ज्ञातनंदन, वीर, सन्मति
7. वर्ण – स्वर्ण (तप्त स्वर्ण के समान)
8. चिह्न – सिंह
9. पिता का नाम – सिद्धार्थ राजा
10. माता का नाम – त्रिशला देवी
11. मामा का नाम – गणतंत्र अध्यक्ष चेटक
12. वंश – इक्ष्वाकु
13. गोत्र – कश्यप
14. पत्नी का नाम – यशोदा देवी
15. पुत्री का नाम – प्रियदर्शना
16. भाई का नाम – नन्दीवर्धन
17. बहन का नाम – सुदर्शना
18. कुमार काल – ३० वर्ष
19. शरीर प्रमाण – ७ हाथ प्रमाण
20. गृहवास में ज्ञान – मति, श्रुत, अवधिज्ञान
21. दीक्षा तिथि – मार्गशीर्ष कृष्णा -१०
22. दीक्षा स्थल – क्षत्रियकुण्डपुर
23. दीक्षा के समय तप – दो दिन की तपस्या
24. दीक्षा पर्याय – ४२ वर्ष
25. दीक्षा वृक्ष – अशोक वृक्ष
26. दीक्षा परिवार – अकेले दीक्षित
27. साधना काल – 1२ वर्ष, ६ मास, १५ दिन
28. प्रथम देशना स्थल – जृंभक ग्राम (देवों के बीच में)
29. प्रथम देशना तिथि – बैशाख शुक्ला १०
30. द्वितीय देशना तिथि – बैशाख शुक्ला एकादशमी
31. द्वितीय देशना स्थल – पावापुरी
32. अन्तिम देशना स्थल – पावापुरी हस्तिपाल राजा की शाला
33. प्रथम पारणा स्थल – कोल्लाग सन्निवेश
34. प्रथम पारणा दाता – बहुल ब्राह्मण
35. केवलज्ञान तिथि – बैशाख शुक्ला दशमी
36. केवलज्ञान स्थल – ऋजुबालुका नदी के किनारे
37. केवलज्ञानोत्पत्ति – दो दिन के उपवास में
38. केवलज्ञान का समय – दिन का अन्तिम प्रहर
39. तीर्थोत्पत्ति – दूसरे समवसरण में तीर्थ व संघ की उत्पत्ति
40. आयु – ७२ वर्ष
41. गणधर – इन्द्रभूति आदि ११ गणधर
42. केवलज्ञानी – ७००
43. अवधिज्ञानी – १३००
44. मन: पर्यवज्ञानी – ५००
45. वादी – ४००
46. साधु सम्पदा – १४०००
47. साध्वी सम्पदा – ३६०००
48. श्रावक संख्या – १५९०००
49. श्राविका संख्या – ३१८०००
50. चातुर्मास संख्या – ४२
51. निर्माण कल्याणक तिथि – कार्तिक कृष्णा अमावस्या
52. निर्वाण भूमि – पावापुरी (बिहार)
53. मोक्ष परिवार – एकाकी सिद्ध
54. मोक्षासन – पर्यंकासन
55. भगवान ने साधक जीवन में तपस्या काल के कुल 4515 दिन में सिर्फ 349 दिन आहार किया। भगवान ने बेले के दिन दीक्षा ली थी, इसलिए एक उपवास और जोड़ दें तो कुल 4166 दिन तपस्या में बीते।

ऐसे महाषुरुष को शत शत नमन 🙏🙏

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