देश विदेश के दिग्गज विद्वानों ने बढ़ाई अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार की महत्ता 

विराट व्यक्तित्व के स्वामी थे स्वामी सहजानन्द सरस्वती : जय प्रकाश नारायण


गाजीपुर। स्वामी सहजानन्द स्नातकोत्तर महाविद्यालय और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “बदलते सामाजिक परिवेश में कृषक समाज : स्वामी सहजानन्द सरस्वती के विचारों की प्रासंगिकता” शीर्षक के द्विदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय अंतर्विषयक संगोष्ठी का  उद्घाटन दीप प्रज्वलन एवं अतिथिगणों के स्वागत-सम्मान के साथ आरम्भ हुआ।

            उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि

गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय, गुजरात के कुलपति प्रो. रमाशंकर दुबे ने अपने उद्बोधन में कहा कि स्वामी सहजानन्द सरस्वती के कर्मयोग में महात्मा गांधी व विनोबा भावे के सर्वोदय और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय का अद्भुत समन्वय था। विशिष्ट अतिथि प्रो. ए. के. त्यागी, कुलपति महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी ने अपने वक्तव्य में भारतीय कृषि व्यवस्था की खामियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि किसानों की गरीबी जब तक बनी रहेगी तब तक स्वामी जी का ध्येय पूर्ण नहीं होगा। कृषक को परम्परागत कृषि से इतर वैज्ञानिक कृषि व मार्केट की भी समझ रखनी होगी ताकि वह अपने उत्पाद का उचित मूल्य अर्जित कर सके। 

         अल-मरगेब विश्वविद्यालय, लीबिया से पधारे विशेष अतिथि प्रो. अनिल कुमार प्रसाद ने अपने वक्तव्य में कहा कि स्वामी सहजानन्द सच्चे कर्मयोगी, तपस्वी, परिव्राजक, संन्यासी और  परम कृषक-योद्धा थे। उनकी जीवन यात्रा ओंकार से हुंकार तक की थी जो सीधे अन्नदाता और शोषित समाज के उत्थान से जुड़ी थी।

          प्रो. पवन अग्रवाल, अध्यक्ष, भारतीय हिंदी परिषद, लखनऊ ने अपने बीज वक्तव्य में भारतीय कृषक आंदोलन के इतिहास और उसमें स्वामी जी के संघर्ष को सविस्तार रेखांकित किया। 

          स्वामी सहजानन्द के व्यक्तित्व-कृतित्त्व के गम्भीर अध्येता जयप्रकाश नारायण ने उनके जीवन-प्रसंग के अनछुए पहलुओं को उद्धाटित किया। आपने कहा कि किसानों की मुक्ति का प्रश्न जब भी खड़ा होगा, उसके सर्वोच्च प्रेरक व नायक स्वामी सहजानन्द ही होंगे। आधुनिक पूंजीवादी व्यवस्था किसान की दुर्दशा को दूर नहीं कर सकती और न ही आज की जटिल राजनीतिक व्यवस्था इसका हल ढूँढने में कोई रुचि दिखा रही है।

          मुख्य वक्ता प्रो. अनिल राय, आर्थो, बीएचयू ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि स्वामीजी ने भारतीय कृषक समाज की विद्रूपता, विपन्नता और पीड़ा को अनुभूत किया। वे स्वाधीनता आंदोलन की मुख्यधारा में सहभागिता करने के साथ ही कृषक-विरोधी व्यवस्थाओं से भी लड़ते रहे।

     नार्वे से आमंत्रित सुरेश चंद्र शुक्ल ने अपने वक्तव्य में स्वामीजी के आदर्शों के पालन का आह्वान किया। 

       कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. वी के राय ने अपना उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि स्वामी सहजानन्द सरस्वती वैचारिकी और व्यवहार की सामंजस्यता के आदर्श उदाहरण थे। वे अपने सिद्धांतों के प्रति दृढसंकल्पित थे और उससे समझौता नहीं करते थे। प्राचार्य ने स्वामी जी के व्यक्तित्व की समतुल्यता तृतीय अमेरिकी राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन से जोड़कर की।    

          संगोष्ठी के आरम्भ में मंचासीन अतिथियों एवं प्रतिभागी प्रबुद्धजन का स्वागत महाविद्यालय के कला संकाय अध्यक्ष प्रो. ए. एन. राय ने किया। विषय प्रवर्तन महाविद्यालय के हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. सतीश कुमार राय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो. अजय राय एवं मंच संचालन संगोष्ठी के समन्वयक डॉ. प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ‘अनंग’ ने किया।  

           इसी कड़ी में संगोष्ठी के प्रथम एवं द्वितीय तकनीकी सत्र का भी समापन हुआ। प्रथम सत्र में विद्वत् वक्ताओं ने निर्धारित विमर्शणीय बिंदुओं पर गहन-सारगर्भित वक्तव्य प्रस्तुत किया। मुख्य वक्ता डॉ. सुनील राय, दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन में कहा कि जातीय श्रेष्ठता सामंतवाद को जन्म देती है। स्वामी जी तमाम क्षुद्रताओं और संकीर्णताओं के विरोधी थे। प्रो. रामकृष्ण उपाध्याय ने स्वामीजी को महान राष्ट्रवादी नेता बताया।        

           महाविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णानन्द चतुर्वेदी ने कहा कि संघर्ष से अनुभूतियां प्राप्त होती हैं और निरंतर संघर्ष इनको समृद्ध करता रहता है। आज का कृषक समाज पलायन एवं उपभोक्तावादी हो गया है। 

सामाजिक कार्यकर्ता व कवि मोती प्रधान ने स्वामीजी के संघर्षों के इतिहास को व्यक्त करती कृषक-संवेदना से आप्लावित एक भोजपुरी लोकगीत की मार्मिक प्रस्तुति दी। 

         प्रो. जगदीश भगत, विश्वभारती विश्वविद्यालय, कोलकाता ने कहा कि स्वामी जी के साहित्य-राशि में बहुत से अमूल्य मोती हैं जिन्हें निकालकर समाज और देश का कल्याण किया जा सकता है। 

         ‘अभिनव कदम’ पत्रिका के सम्पादक एवं प्रखर सामाजिक चिंतक जयप्रकाश धूमकेतु ने स्वामी जी के व्यक्तित्व का गहरा साम्य महापंडित राहुल सांकृत्यायन से स्थापित करते हुए स्वामी जी के स्वतंत्रता आंदोलन में प्रदत्त योगदान को रेखांकित का सार्थक प्रयास किया। तकनीकी सत्र की अध्यक्षता करते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ अनूप ने किसानों के प्रति ब्रिटिश सरकार की शोषणकारी नीतियों और उसके विरुद्ध स्वामी जी के संघर्ष को गम्भीरता से उद्घाटित करने का प्रयास किया। 

   तकनीकी सत्र में स्वागत उद्बोधन हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. राकेश पांडेय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. विलोक सिंह ने किया। मंच संचालन डॉ. शशिकला जायसवाल, राजकीय महिला पीजी कॉलेज, गाजीपुर ने किया। 

            तकनीकी सत्र में करीब दो दर्जन शोधपत्रों का वाचन किया गया। संगोष्ठी में प्रज्ञान-पथ (स्मारिका), डॉ. प्रमोद कुमार अनंग कृत ‘उद्घोष’ काव्य संग्रह, डॉ. शशिकला जायसवाल रचित ‘हिंदी गद्य’ पुस्तकों का विमोचन भी हुआ।

संगोष्ठी में दूर-दराज से आए प्रबुद्धजन, शिक्षकगण, शोधार्थी, विद्यार्थी, पत्रकार, प्रो. रामनगीना यादव (सेवानिवृत्त), प्रो. गायत्री सिंह, प्रो. रामधारी राम, डॉ. विलोक सिंह, डॉ. कंचन सिंह, डॉ. शिल्पी सिंह, डॉ. प्रियंका यादव, डॉ. राकेश पांडेय, सुश्री तूलिका श्रीवास्तव, श्रीमती सौम्या वर्मा, श्रीकांत पांडेय, प्रो. अखिलेश शर्मा ‘शास्त्री’, प्रो. विनय कुमार दुबे, प्रो. विमला राय आदि उपस्थित रहे।

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