“गुनाहों की देवी” का लोकार्पण सम्पन्न

गाजीपुर। ‌कथाकार रामावतार के उपन्यास गुनाहों की देवी का लोकार्पण रविवार को प्रेसीडीयम इंटरनेशनल स्कूल अष्टभुजी कॉलोनी बड़ीबाग लंका के सभागार में ससमारोह संपन्न हुआ।
समारोह की अध्यक्षता पीजी कालेज के पूर्व विभागाध्यक्ष संस्कृत डॉ युधिष्ठिर तिवारी ने किया। समारोह के मुख्यवक्ता कवि एवं नाटककार डॉ. गजाधर शर्मा गंगेश ने कहा कि गुनाहों की देवी समकालीन यथार्थ को केंद्र में रखकर लिखा गया एक सशक्त और विचारोत्तेजक उपन्यास है। कथाकार गतिशील जीवन की जटिल स्थिति में प्रश्न और उत्तर दोनों के बीच से अपने पाठक को लिए चलता है। इसमें कई देवियां हैं जो कोई न कोई गुनाह करती हैं। एक देवी पर गुनाह का आरोप तो लगता है लेकिन गुनाह नहीं बनता। पूर्व उपन्यासों की तरह रामावतार का यह उपन्यास भी पाठक को जिज्ञासा के धागे में बांधे रहता है।
विषय प्रवर्तन करते हुए समकालीन सोच के संपादक राम नगीना सिंह कुशवाहा ने गुनाहों की देवी उपन्यास के कथानक पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि उपन्यास में जीवन की विसंगतियों का इतना खूबसूरत चित्रांकन किया गया है कि कहीं से नहीं लगता कि उपन्यास कल्पना प्रसूत है।
कवि एवं समालोचक माधव कृष्ण ने कहा कि रामावतार जी ने दिल्ली में रह कर प्रख्यात कथाकार और गांधीवादी चिंतक जैनेंद्र कुमार से उपन्यास लिखने की जो दीक्षा ली थी उसका इस उपन्यास पर गहन प्रभाव है। वास्तव में मनुष्य नंगा यथार्थ नहीं जी सकता क्योंकि वह पशु नहीं है, जिसे केवल समायोजन करना आता है। पशुओं में संस्कृति नहीं होती, वह अपने परिवेश के साथ स्वयं को समायोजित और अनुकूलित कर लेता है, परन्तु मनुष्य कोरा आदर्श भी नहीं जी सकता। कठोपनिषद के ऋषि इस सत्य को समझते थे इसलिए वे कहते हैं “इन्द्रियाणि पराणि ह्यर्था:” विषय इन्द्रियों से अधिक शक्तिशाली होते हैं अतः एक नितांत आदर्शवादी मनुष्य भी विषयों के पाश में बंध जाता है।
पूर्व प्राचार्य डॉ राम बदन सिंह ने कहा कि कथाकार रामावतार के उपन्यास में पूंजीवादी समाज व्यवस्था में परिवार की स्थिति का जो चित्रांकन किया गया है उसमें श्रेया और मातंगी जैसे समाजवादी सोच के पात्र तो हैं लेकिन चाह कर भी वे कोई बड़ी क्रांति नहीं कर पाते।
डॉ श्रीकांत पांडेय ने कहा कि कथाकार ने उपन्यास के माध्यम से यह दिखाने का प्रयास किया है कि मनुष्य परिस्थितियों का स्वामी बनना चाहता है लेकिन दास बनकर रह जाता है। उनकी पत्नी सारे उपद्रवो की जड़ है। प्रोफ़ेसर साहब परिवार को टूटने से बचाना तो चाहते हैं लेकिन बचा न सके। डॉ व्यासमुनी राय ने स्त्री-पुरुष संबंधों पर अपने विचार रखे।
अध्यक्षता कर रहे डॉक्टर युधिष्ठिर तिवारी ने कहा कि यह उपन्यास जीवन की वह महागाथा है जिसमें सत्य असत्य, न्याय अन्याय और उचित अनुचित सब कुछ चलता रहता है और मनुष्य उसमें डूबता उतराता सुकून चाहता है।
डॉ संतोष तिवारी ने समारोह का संचालन करते हुए कहा कि गुनाहों की देवी उपन्यास का कथानक इतना सुंदर और स्थितियों का चित्रांकन इतना जीवंत है कि धर्मवीर भारती के उपन्यास गुनाहों के देवता की याद ताजी हो जाती है। नवनीत कुशवाहा, अनुश्री, पूजा राय, शेख अब्दुल मुस्तफा और आकाश विजय त्रिपाठी ने काव्य पाठ किया। विद्यालय के प्रबंधक माधव कृष्ण ने अतिथियों का स्वागत किया और इतिहासकार विश्व विमोहन शर्मा ने आभार ज्ञापन किया.
इस समारोह में प्रमोद कुमार राय, कन्हई राम प्रजापति, रामावतार शर्मा, शम्मी सिंह, अविरल द्विवेदी, आयुष सिंह, प्रांजल पाण्डेय, जनार्दन शर्मा सहित अनेकों बुद्धिजीवीगण उपस्थित रहे।

Visits: 378

Leave a Reply