मातृदिवस पर समर्पित …… “घनाक्षरी” “मॉं तो चारों धाम है”

“घनाक्षरी” “मॉं तो चारों धाम है”

अमृत पिला के हमें,जीवन ये देने वाली,

सुख चैन त्याग कर, लोरी है सुनाती मॉं,

जख्मों को सहला कर,सीने से लगाती वह,

हर एक आहट पे, मुड़ी चली आती मॉं।

उर में समेटे दुःख, अश्कों का सागर पी के,

सुत की खुशी के लिए,सदा मुस्कुराती मॉं।

संकट जो आए कभी,बन जाती रण चण्डी,

आंचल की छांव देके, प्यार से सुलाती मॉं।

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थकती नहीं वो कभी,सुख सभी तज देती,

खुश रहे परिवार, मॉं का अरमान है।

रिश्ता नहीं दुनिया में, जननी समान कोई,

मॉं की सेवा करने में, जीवन उद्धार है।

पोथी पढ़ी जग घूमा, मिला बस ज्ञान यही,

चरणों में स्वर्ग वाली, मॉं तो भगवान है।

हमारी गलतियों को, पल में भुलाने वाली,

घर में है देवी रुपी , मॉं तो चारों धाम है।

कवि, अशोक राय वत्स ©® रैनी, मऊ, उत्तरप्रदेश
मो.नं. 8619668341

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