कवि हौशिला प्रसाद अन्वेषी की नयी रचना

सुबह शाम कुछ गाता हूं मैं ।
सपने रोज सजाता हूं मैं ।।
कैसे हुआ समय यह पागल।
हरदम प्रश्न उठाता हूं मैं।।

संस्कार जीवन मूल्यों का ।
सबको पाठ पढ़ाता हूं मैं ।।
किसने ताना-बाना थोड़ा ।
उसका नाम बताता हूं मैं ।।

लक्ष्मी जी ने क्या कर डाला ।
इस पर ही पछताता हूं मैं ।।
कौन विदेशी कौन स्वदेशी ।
सब पर कलम चलाता हूं मैं ।।

नैतिकता के जो दुश्मन हैं ।
उनको खूब सुनाता हूं मैं ।।
मानवता के प्रेमी जन पर ।
प्रायः प्रेम लुटाता हूं मैं ।।

सामाजिक विद्रूपों पर तो ।
सदा आग बरसाता हूं मैं ।
क्रांति बगावत विद्रोहों पर ।
खुद को ही समझाता हूं मैं ।।

सुबह शाम कुछ गाता हूं मैं ।
सपने रोज सजाता हूं मैं ।।

         ........... अन्वेषी

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