राष्ट्रीय शिक्षा नीति ! एक विस्तृत सोच

गाजीपुर। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को 21वीं सदी का क्रांतिकारी सुधार है। इसमें कम उम्र में शिक्षा, पूछताछ आधारित शिक्षा, शिक्षक प्रशिक्षण, मूलभूत एवं संख्यात्मक साक्षरता पर जोर दिया गया है। एनईपी 2020 से युवा सशक्त होंगे, जो राष्ट्र को 21वीं सदी में ले जाएंगे। “यह एक ऐसी नीति है जो विद्यार्थियों और शिक्षकों दोनों के लिए शिक्षण-सीखने के अनुभव को सुखद बनाएगी।”
भारत में अगले 10 साल में सकल नामांकन अनुपात वर्तमान के लगभग 25 प्रतिशत के स्तर से दो गुना हो जाएगा। देश भर के विद्यार्थी आकांक्षी हो गए हैं और आर्थिक विकास से अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए माता-पिता की गंभीरता भी बढ़ी है। उच्च शिक्षा संस्थानों के विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में भौगोलिक प्रसार और मांग बढ़ने जैसे कुछ अहम कारणो के कारण भारत में जीईआर में सुधार होगा। नई नीति मूलभूत और संख्यात्मक साक्षरता पर जोर देती है और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) जैसे संस्थानों से सभी को शिक्षा तक पहुंच उपलब्ध होगी। बाल शिक्षा (अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन) के महत्व को एनईपी की मुख्य विशेषता हैं। 3-8 साल के आयु वर्ग के बच्चों संज्ञानात्मक कौशल, जिज्ञासा और मानसिक क्षमता विकसित करना है। रटने के बजाय विषय की समझ के साथ शिक्षा हासिल करना महत्वपूर्ण है। शुरुआती चरण में जहां गतिविधि आधारित पढ़ाई पर जोर है, वहीं 9वीं से 12वीं तक की शिक्षा में व्यापकता, औचित्य और नए ज्ञान पर जोर दिया गया है जिससे बच्चों में वैज्ञानिक स्वभाव पैदा होगा। शोध एवं नवाचार से हमारी शिक्षा वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी नागरिक तैयार करने में सक्षम हो जाएगी। अनुसंधान आधारित नवाचार को प्रोत्साहन देने के लिए 3,000 ‘अटल टिंकरिंग लैब्स’ सफलतापूर्वक चल रही हैं, जो आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए आवश्यक हैं।समाज में शिक्षकों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होता हैं। “एक शिक्षक सिर्फ किताबों या ब्लैकबोर्ड्स के माध्यम से ही नहीं पढ़ाता है। आदर्श शिक्षक वह है, जो अपने आचरण से विद्यार्थियों में मूल्यों का संचार करता है।” शिक्षकों को समग्र शिक्षण कार्यक्रम उपलब्ध कराने के लिए चार साल की एकीकृत बीएड डिग्री पेश की जा रही है, जिससे उनमें व्यावहारिक शिक्षण कौशल विकसित होगा। इससे शिक्षक पसंद के आधार पर अच्छे शिक्षक बनने के लिए प्रोत्साहित होंगे, न कि आखिरी विकल्प के रूप में। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को व्यापक विचार विमर्श के साथ तैयार किया गया है। 13-14 विषय विशेषज्ञों ने डॉ. के. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में काफी गंभीरता और जोश से काम किया है। साल 2030 तक हर बच्चे के लिए शिक्षा सुनिश्चित हो। अगर सबसे पहले स्कूली शिक्षा की बात की जाए तो स्कूली शिक्षा के मूलभूत ढांचे में ही एक बड़ा परिवर्तन आया है। 10+2 पर आधारित हमारी स्कूली शिक्षा प्रणाली को 5+3+3+4 के रूप में बदला गया है। इसमें पहले 5 वर्ष अर्ली स्कूलिंग के होंगे। इसे अर्ली चाइल्डहुड पॉलिसी का नाम दिया गया है, जिसके अनुसार 3 से 6 वर्ष के बच्चों को भी स्कूली शिक्षा के अंतर्गत शामिल किया जाएगा। वर्तमान में 3 से 5 वर्ष की उम्र के बच्चे 10 +2 वाले स्कूली शिक्षा प्रणाली में शामिल नहीं हैं और 5 या 6 वर्ष के बच्चों का प्रवेश ही प्राथमिक कक्षा यानी की कक्षा एक में प्रवेश दिया जाता है। हालांकि इन छोटे बच्चों के प्री स्कूलिंग के लिए सरकारों ने आंगनबाड़ी की पहले से व्यवस्था की थी, लेकिन इस ढांचे को और मजबूत किया जाएगा। नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा की एक मजबूत बुनियाद को शामिल किया गया है जिससे आगे चलकर बच्चों का विकास बेहतर हो। इस तरह शिक्षा के अधिकार का दायरा बढ़ गया है। यह पहले 6 से 14 साल के बच्चों के लिए था, जो अब बढ़कर 3 से 18 साल के बच्चों के लिए हो गया है और उनके लिए प्राथमिक, माध्यमिक और उत्तर माध्यमिक शिक्षा अनिवार्य हो गई है। सरकार ने इसके साथ ही स्कूली शिक्षा में 2030 तक नामांकन अनुपात यानी ग्रास इनरोलमेंट रेशियो (जीईआर) को 100 प्रतिशत और उच्च शिक्षा में इसे 50 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य रखा है। ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक 2017-18 में भारत का उच्च शिक्षा में जीईआर 27.4 प्रतिशत था, जिसे अगले 15 सालों में दोगुना करने का लक्ष्य सरकार ने रखा है। 5+3+3+4 के प्रारूप में पहला पांच साल बच्चा प्री स्कूल और कक्षा 1 और 2 में पढ़ेगा, इन्हें मिलाकर पांच साल पूरे हो जाएंगे। इसके बाद 8 साल से 11 साल की उम्र में आगे की तीन कक्षाओं कक्षा-3, 4 और 5 की पढ़ाई होगी। इसके बाद 11 से 14 साल की उम्र में कक्षा 6, 7 और 8 की पढ़ाई होगी। इसके बाद 14 से 18 साल की उम्र में छात्र 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई कर सकेंगे। यह 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई बोर्ड आधारित होगी, लेकिन इसे खासा सरल नई शिक्षा नीति में बनाया गया है। शिक्षा मंत्रालय में स्कूली शिक्षा विभाग की प्रमुख सचिव अनीता करवाल ने कहा कि इसके लिए बोर्ड परीक्षा को दो भागों में बांटने का प्रस्ताव है, जिसके तहत साल में दो हिस्सों में बोर्ड की परीक्षा ली जा सकती है। इससे बच्चों पर परीक्षा का बोझ कम होगा और वह रट्टा मारने की बजाय सीखने और आंकलन पर जोर देंगे। स्कूली शिक्षा में एक और अहम बदलाव के रूप में मातृभाषा को शामिल किया गया है, जिस पर खासा विवाद हो रहा है। नई शिक्षा नीति के अनुसार अब बच्चे पहली से पांचवी तक की कक्षा या संभवतः आठवीं तक की कक्षा अपनी मातृभाषा के माध्यम में ही ग्रहण करेंगे। इसके अलावा यह भी कहा गया है कि अगर आगे की कक्षाओं में भी इसे जारी रखा जाता है तो यह और बेहतर होगा क्योंकि बच्चा अपनी भाषा में चीज़ों को बेहतर ढंग से समझता है, इसलिए शुरूआती शिक्षा मातृभाषा माध्यम में ही होना चाहिए।
नई शिक्षा नीति को लेकर जनपद के शिक्षकों में भी बहुत उत्साह देखने को मिल रहा है। इसके अंतर्गत जनपद में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी श्री श्रवण कुमार गुप्ता के निर्देशन में कई ऑनलाइन वेबिनार कार्यक्रम भी संचालित किए जा रहे है जिससे नई शिक्षा नीति के मूल्यों व उद्देश्यों पर शिक्षक समाज की समझ और भी गहरी हो सके। इस हेतु जिला शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान सैदपुर पर भी सेमिनार का आयोजन किया गया है जिसमे जनपद के समस्त खंड शिक्षा अधिकारी प्रतिभाग करेंगे और नई शिक्षा नीति के उद्देश्यों को प्रत्येक शिक्षकों तक पहुंचाने का कार्य करेंगे। इसी क्रम में ड्राप आउट बच्चों के चिन्हांकन एवं उनका विद्यालयों में पुनः नामांकन कराकर उन्हें शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने का कार्य भी गतिमान है। साथ ही विद्यालयों में सभी आवश्यक अवस्थापना सुविधाओं को बच्चों को मुहैया कराने का कार्य भी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी महोदय के कुशल मार्गदर्शन में चलाया जा रहा है ।

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