गुरु को समर्पित – शिक्षक दिवस

गुरु को समर्पित दिवस
✍️डा.ए.के.राय✍️
गाजीपुर। गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है। भारतवर्ष में आदिकाल से गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हमारे पुराने साहित्यों, पौराणिक ग्रन्थों से लेकर आधुनिक काल तक गुरु की महिमा का वर्णन किया गया है। कहा गया है कि
“गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरः,
गुरुर साक्षात परम ब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः”
इसके साथ ही गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि –गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊंचा है,इसलिए ईश वन्दना से पूर्व गुरु की बन्दना करनी चाहिए। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि उनके द्वारा ही हमें जीवन मिलता है। जीवन के सबसे पहले गुरु हमारे माता-पिता होते हैं, लेकिन विस्तृत जानकारी व ज्ञान हमें शिक्षक ही प्रदान करते हैं। शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को अलग अलग रूप-रंग के फूलों से सजाता है और सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
हमारे वैदिक साहित्य गुरु महिमा से भरे पड़े हैं। प्राचीन समय में गुरु कृपा से शिष्यगण गुरुकुलों में शस्त्र शास्त्र की शिक्षा प्राप्त करते थे और वहां गुरु की सेवा करते थे। गुरु के प्रति शिष्यों में अपार श्रद्धा होती थी। गुरु का आदेश व्रह्मवाक्य माना जाता था और गुरु के आदेश पालन हेतु शिष्य कुछ भी करने को तत्पर रहते थे। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाने में गुरु वशिष्ठ, कृष्ण को योगीराज बनाने में गुरु संदीपनी,शबरी को साध्वी बना ईश दर्शन कराने में गुरु मातंग ऋषि की भूमिका सर्वोपरि रही।
प्राचीन समय में हर देश में राजगुरु का महत्व सर्वाधिक रहता था। राजा गुरु के निर्देशन में ही कार्य करते थे। बदलते परिवेश में जब राजतंत्र बदले तो शिक्षा की दिशा और दशा में भी समयानुकूल परिवर्तन होते गये। दासता के दौर में गुरुकूलों के स्थान पर ब्रितानियों के मनमाफिक स्कूल और कालेज बनते गये। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भी शिक्षा में व्यापक परिवर्तन हुआ और स्कूली शिक्षा को बढ़ावा मिलता रहा। गुरु शिष्य की जो परम्परा शुरू से चली आ रही थी उसमें भी परिवर्तन हुआ फिर भी देश में शिक्षकों को विशेष सम्मान आज भी जारी है।
शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन पांच सितम्बर को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में हर वर्ष मनाया जाता है। डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक और शिक्षक थे। उनमें एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण विद्यमान थे। देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति के रुप में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उनका मानना था कि शिक्षकों का दिमाग देश में सबसे अच्छा होना चाहिए क्योंकि देश व समाज को बनाने में उनका सबसे बड़ा योगदान होता है। बीसवीं सदी के विद्वानों में उनका नाम सबसे उपर है। वे पश्चिमी सभ्यता से अलग, हिंदुत्व को देश में फैलाना चाहते थे। राधाकृष्णन जी ने हिंदू धर्म को भारत और पश्चिम दोनों में फ़ैलाने का प्रयास किया, वे दोनों सभ्यता को मिलाना चाहते थे। प्रति वर्ष शिक्षक दिवस के अवसर पर सरकार द्वारा योग्य शिक्षकों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाता है। शिक्षक दिवस के अवसर पर सभी गुरुओं को नमन….🙏🙏🙏🙏🙏

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