“शिव महिमा”

“शिव महिमा”

चुटकी भर सिंदूर बिना जैसे श्रृंगार अधूरा है,
वैसे ही अभिषेक बिना शिव का श्रृंगार अधूरा है।
व्रत रखने वालों सावन में क्या कभी विचार किया तुमने,
जब तक न मिले गंगा का जल शिव का अभिषेक अधूरा है।

बेल पत्र,चंदन और भस्म शिव पूजा में माना जरूरी है,
वैसे ही लोटा भर पानी भोले के लिए जरूरी है।
जैसे प्रभु राम समाए थे सीता मैया की रग रग में,
वैसे ही शिव पूजा हेतू दिल में बस प्यार जरूरी है।

भोले हैं भोले भंडारी इनकी तो महिमा है न्यारी,
हों खाली हाथ और मन में स्नेह तो भी होती पूजा प्यारी।
करें त्याग दूषित विचार और अपना लें बस सदाचार,
खुश हो जाएं भोले शंभू जिनकी छवि है सबसे प्यारी।

कैसे गाऊँ मैं शिव महिमा जो कहलाएं औघड़ दानी,
वह शब्द कहाँ लाऊँ मैं जिसका कहीं और नहीं शानी।
यह वत्स नवाए शीश सदा खुश हो जाएँ भोले शंभू,
दिन रात करूँ पूजा उनकी जो कहलाते औघड़ दानी।

कवि – अशोक राय वत्स -रैनी , मऊ, उत्तरप्रदेश, 8619668341

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