शीर्ष अदालत ! प्रधानमंत्री को अपशब्द कहने वाले स्कूल और टीचर्स को नहीं मिली राहत

नई दिल्ली, 06 मार्च 2020। सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक के बीदर में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ नाटक का मंचन करने वाले स्कूल, शिक्षक और नाटक में भाग लेने वाली बच्ची की मां के खिलाफ दर्ज देशद्रोह का मामला रद्द करने की मांग शुक्रवार को खारिज कर दी।
बताते चलें कि नागरिकता संशोधन कानून को लेकर कर्नाटक के बीदर में छात्रों को नाटक करने की अनुमति देने के लिए स्कूल के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया है। इस नाटक में कथित रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की खराब छवि पेश की गई थी। 26 जनवरी को शाहीन स्कूल के प्रबंधन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (ए) और 153 (ए) के तहत ‘विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने के लिए’ भी मामला दर्ज किया गया। स्कूल की प्रधानाध्यापिका फरीदा बेगम और पीएम के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने वाले छात्र की मां नजमुन्निसा को 30 जनवरी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।
पुलिस ने बच्चों और स्कूल कर्मचारियों से नाटक लिखने और वे विशिष्ट संवाद बोलने का काम करने वालों के बारे में पूछा। पुलिस पहले ही एक बच्चे की मां नजबुन्निसा को गिरफ्तार कर चुकी है, जिसने कथित विवादित संवाद बोले थे। साथ ही शिक्षिका फरीदा बेगम को भी गिरफ्तार किया गया है, जो इस कार्यक्रम की देखरेख कर रही थी। बीदर के पुलिस उपाधीक्षक एच बसावेश्वर से जब संपर्क किया गया, तो उन्होंने यह कहते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि वह अभी मामले की जांच कर रहे हैं।
पुलिस ने 26 जनवरी को यह मामला दर्ज किया, जब 21 जनवरी का एक वीडियो फेसबुक दिखा, जिसमें चौथी और पांचवीं कक्षा के बच्चे शाहीन स्कूल में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ नाटक कर रहे थे और अपने डायलॉग में वे पीएम मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल कर रहे थे। बच्चों ने स्कूल के वार्षिक समारोह में भाग लेने के दौरान यह नाटक किया।
उल्लेखनीय है कि सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना की याचिका में इस क़ानून के दुरुपयोग से निपटने के लिए मैकेनिज्म बनाए की मांग भी की गयी थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने की मंजूरी का अधिकार एक कमेटी को दिया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को कहा कि वह इस मामले में प्रभावित पक्ष नहीं है। न्यायमूर्ति खानविलकर ने याचिकाकर्ता की और से याचिका दायर करने के औचित्य पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘प्रभावित पक्ष को आने दीजिये।

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