कविता ! “मैं देश बचाने वाला हूँ”

“मैं देश बचाने वाला हूँ”

जब देश हित में लिखता हूँ, वो कहते हैं आग उगलता हूँ।
जब बात देश की करता हूँ, कहते हैं मैं उकसाता हूँ।।

तुम भारत मूर्दाबाद कहो,मैं चुप कैसे रह पाऊंगा।
तुम अफजल का गुणगान करो,मैं शान्त नहीं रह पाऊंगा।।

तुम खुश होते हो गाली देकर, मैं जन गण मन ही गाता हूँ।
तुम आगजनी करने वाले, मैं वंदे मातरम सुनाता हूँ।।

तुम्हें हिन्द असुरक्षित लगता है,मुझे दिखती है जन्नत इसमें।
तुम बंटवारे के इच्छुक हो,मुझे माँ के दर्शन होते इसमें।।

तुम जिस थाली में खाते हो, फिर छेद उसी में करते हो।
हम राष्ट्र भक्त मतवाले हैं,तुम जड़ें खोदते रहते हो।।

तुम मोल लगाते हो सबका, मैं शब्द जाल ही बुनता हूँ।
तुम दूषित करने वाले इसको, मैं गंगा सा पवित्र बनाता हूँ।।

तुम नफरत बोने वाले हो, मैं नफरत का संहारक हूँ।
तुम जहर फिजा में घोल रहे, मैं बस अमृत का वितरक हूँ।।

तुम खुश होते हो आग लगाकर के,मैं आग बुझाने वाला हूँ।।
तुम टुकड़े करने वाले हो, मैं देश बचाने वाला हूँ।

कवि – अशोक राय वत्स – रैनी, मऊ, उत्तरप्रदेश मो.नं.8619668341

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