स्वास्थ्य रक्षा को अग्रसर इलेक्ट्रोहोमियोपैथी , वनस्पतिक औषधियां रोगनाश करने में सक्षम

राजस्थान रहा इलेक्ट्रोहोमियोपैथी को मान्यता प्रदान करने वाला पहला राज्य

गाजीपुर(उत्तर प्रदेश),10 जनवरी 2020। आदि काल से मानव अपनी जीवन रक्षा के लिए वनस्पतियों पर निर्भर रहा है। अपनी स्वास्थ्य रक्षा हेतु मानव शुरू से ही प्रयत्नशील रहा और अपने चिंतन,खोज तथा प्रयोगों के आधार पर अनेकों चिकित्सा पद्धतियों की खोज की। प्रकृति के पंचतत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश तथा वायु) से पोषित वनस्पतियां अपने समावेशित प्रभाव से रोगों को दूर करने में आदि काल से सफल रही हैं। यही कारण है कि सभी चिकित्सा पद्धतियों में वनस्पतियों का उपयोग किसी न किसी रुप में अवश्य किया जाता है। वनस्पतियों की उपयोगिता और रोग निरोधक क्षमता को परखने और उन पर लम्बी शोध के उपरांत बोलांग्ना (इटली) के राष्ट्रभक्त, समाजसेवी, मानवता प्रेमी डा. काउंट सीजर मैटी द्वारा 1865 ईस्वी में पूर्ण वानस्पतिक चिकित्सा पद्धति की नींव डाली गई जिसे इलेक्ट्रो होमियोपैथी के नाम से जाना जाता है। इस वानस्पतिक चिकित्सा पद्धति की औषधियां विषविहीन, हानि रहित और तत्काल गुणकारी होती हैं जो मात्र लक्षणों के आधार पर शमन प्रक्रिया न अपनाकर मूल विकार को जड़ से नष्ट करने की क्षमता रखती हैं। इलेक्ट्रो होम्योपैथी अपने चिकित्सकों के माध्यम से आज विश्व के अनेक देशों में अपनी औषधियों द्वारा रोग पीड़ितों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचा रही है। भारत में इलेक्ट्रो होम्योपैथी का आरम्भ स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व बीसवीं सदी के आरम्भ से ही होता रहा और आज लगभग देश के सभी प्रांतों में इलेक्ट्रो होम्योपैथी के चिकित्सक, शिक्षण संस्थान कार्यरत हैं जो इन औषधियों के माध्यम से पीड़ित मानवता को रोगमुक्त कर रहे हैं।
इलेक्ट्रोहोमियोपैथी के शीर्ष संस्थानों, शोध संस्थानों, शिक्षण संस्थानों के विकास के इस दौर में औषधि निर्माताओं ने इलेक्ट्रो होम्योपैथिक औषधियों का निर्माण कर प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया है। भारत में अबतक आयुर्वेद, एलोपैथी, होम्योपैथी तथा यूनानी को चिकित्सा पद्धति के रूप में मान्यता प्राप्त है और पांचवी चिकित्सा पद्धति के रूप में इलेक्ट्रो होम्योपैथी राजकीय संरक्षण की ओर अग्रसर है। इसकी उपयोगिता को देखते हुए सरकार तथा शीर्ष अदालत सहित उच्च न्यायालय ने भी समय समय पर इसके पक्ष में निर्णय देकर इनकी शिक्षा, चिकित्सा तथा रिसर्च करने की अनुमति प्रदान की है।इलेक्ट्रो होमियोपैथिक शीर्ष संस्थाओं के प्रतिवेदनों तथा माननीय न्यायालयों के आदेश पर तथा इस चिकित्सा पद्धति की उपयोगिता को देखते हुए इसके नियमन व नियंत्रण हेतु केन्द्र सरकार द्वारा समिति गठित कर इस दिशा में यथोचित कार्रवाई की प्रक्रिया जारी है।
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार द्वारा इसके लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार के स्वास्थ्य शोध विभाग के अन्तर्गत डा. वीएम कटोच की अध्यक्षता व विभाग के अन्डर सेक्रेटरी ओम प्रकाश जी के सचिवत्व में अन्तर्विभागीय समिति (Inter departmental committee) के निर्देशन में इलेक्ट्रो होमियोपैथी का संयुक्त प्रतिवेदन जमा किया जा चुका है। इसी क्रम में राजस्थान सरकार ने गत वर्ष इलेक्ट्रोहोमियोपैथिक चिकित्सा पद्धति को मान्यता प्रदान करने के सम्बन्ध में राज्य विधानसभा में 10 मार्च 2018 को चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री कालीचरन सराफ राजस्थान इलेक्ट्रोपैथिक चिकित्सा पद्धति विधेयक 2018 को सदन में पेश किया जो ध्वनिमत से पारित किया गया। राजस्थान में इलेक्ट्रोपैथिक मेडिकल कौंसिल का गठन करते हुए अध्यक्ष पद पर डा. हेमन्त सेठिया की नियुक्ति की गयी जो इलेक्ट्रोहोमियोपैथी का नियमन और नियंत्रण करेंगे।
उल्लेखनीय है कि इलेक्ट्रोहोम्योपैथी चिकित्सा पद्धति की मान्यता के संदर्भ में इलेक्ट्रोहोम्योपैथी मेडिकल काउंसिल हरियाणा के प्रतिवेदन पर मुख्यमंत्री हरियाणा व स्वास्थ्य मंत्री हरियाणा द्वारा की गयी कार्यवाही के मद्देनजर आयुष विभाग हरियाणा ने इलेक्ट्रोहोम्योपैथी को मान्यता देने के लिये गठित समिति की बैठक निदेशक आयुष डा.सतपाल बहमनी की अध्यक्षता में 15 मार्च को सम्पन्न हुई। शासन द्वारा गठित समिति में निदेशक आयुष डा.सतपाल बहमनी सहित डा. सतपाल सिंह-डीएओ अम्बाला, डा.सुरेन्द्र यादव-एचएमओ, डा.चन्दन दुआ-एएमओ, डा. विनोद खगनवाल अध्यक्ष व समुन्दर सिंह सचिव इएचएमसीएचआर को सदस्य बनाया गया है।
महान मानवतप्रेमी, इलेक्ट्रोहोमियोपैथी के जनक महात्मा मैटी को आज उनके 211वें जन्मदिन (11जनवरी 2020) की पूर्व संध्या पर हार्दिक नमन……🤚🤚🤚🤚🤚

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