कविता ! “पौष की ठंडी”

“पौष की ठंडी”

पौष महिने की ठंडी का, कैसे करूं बखान।
पड़े कुहेसा रात दिन, जैसे हो बरसात।।

सूरज जी ठंडे पड़े, लगे हवा भी तीर सी।
पानी जब तन पर पड़े, चोट करे शमशीर सी।।

दादा दादी चाचा चाची ,सबको धूप सुहाय।
कम्बल में लिपटे रहें,सूझे न कोई उपाय।।

टोपी स्वेटर खूब बिक रहे, दुकानदार मुस्काय।
बच्चे से लेकर बूढ़े तक, सबको आग सुहाय।।

चाहे जितनी ओढ़ें रजाई ,तन की ठंड न जाय।
तिल पट्टी और गजक खाके,मन है गया अघाय।।

गरम पकौड़े मन को भाएं,बाबू जी मुस्काय।
गरम गरम हलवे की खुशबू, मुंह में पानी लाय।।

ठिठुर रहे हैं सबके तन मन,फिर भी जाड़ा भाय।
गरम गरम जब मिले माल सब,काहे न मन ललचाय।।

रचना कार – अशोक राय वत्स
रैनी, मऊ , उत्तरप्रदेश।

मोबाइल नं.8619668341

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