कविता ! “वीरता है यदि तुममे”
“वीरता है यदि तुममे”
जो खुद को वीर कहते हैं,वही डरपोक होते हैं।
जो सच में वीर होते हैं, कभी न मुंह से कहते हैं।।
वीरता है यदि तुममे ,तो कौशल रण में दिखता है।
कहूँ क्या बात कायर की, वह जीवन भर ही मरता है।।
वीरता पन्ना की देखो, निज सुत को वारा था उसने।
वीर था महाराणा प्रताप, खदेड़ा मुगलों को उसने।।
दिखाओ तुम न झुठी शान , कि तुमसा है नहीं संगदिल।
पिटे हर बार रण में हो, कि तुमसा है नहीं बुजदिल।।
शौर्य आजाद का देखो, फिरंगी को नचाया था।
बोस की शान तो देखो, बिगुल उसने बजाया था।।
भगत की बात करनी हो, तो उससा पूत न कोई।
गया जब वह था दुनिया से, तो रोई आँख हर कोई।।
क्यों लड़ते हो यों अपनों से, ये गहना है न वीरों का।
वीरता है यदि तुममें, लड़ो तुम रण समसीरों का।।
जो लड़ते हों यों श्वानों सा, उन्हें नहीं वीर कहते हैं।
वीरता है यदि तुममें , चलो सीमा पर लड़ते हैं।।
सुनो तुम बात वत्स की, मुझे मेरा हिन्द प्यारा है।
जो गाली दी इसे समझो,मृत्यु ने पुकारा है।।
यदि तुमको है जीना तो, रखो तुम हिन्द से नाता।
बचेगा एक न तुममें,जिसे हमने न हो काटा।।
जो खाएं हिन्द का दाना , और गाएँ शत्रु का गाना।
उड़ा दो उनको तोपों से, करें जो काम मनमाना।।
हटा कर तीन सौ सत्तर , दिलाई मुक्ति है जिसने।
उसी को सच्चे अर्थों में, देश का लाल कहते हैं।।
रचनाकार – अशोक राय वत्स
.रैनी, मऊ – उत्तरप्रदेश
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