कविता !”दिल मेरा है ढूँढ रहा”
“दिल मेरा है ढूँढ रहा”
दिल मेरा उनको है ढूँढ रहा,
जिनके बल पर हम जीवित हैं।
दिल आज उसे है ढूँढ रहा,
जिसने अकबर को ललकारा।
मैं ढूँढ रहा हूँ उसको आज,
है जिसने हल्दी घाटी का समर लड़ा।
वह महाराणा प्रताप कहाँ ?
वह पन्ना का बलिदान कहाँ?
वह भामाशाह का त्याग कहाँ?
खाई थी जिसने घास की रोटी
वह मेवाड़ी सरदार कहाँ?
दिल मेरा जिसको है ढूँढ रहा,
वह चूंडावत सा रण प्रेम कहाँ?
वह भीलों का सरदार कहाँ?
वह चेतक का असवार कहाँ?
मैं ढूँढ रहा हूँ जिसको आज
वह मेवाड़ी प्रताप कहाँ?
हम ढूँढ रहे हैं जिनको आज,
वह जयमल फत्ता से वीर कहाँ?
राणा का प्रिय रामप्रसाद कहाँ?
याराना था जिसने खूब निभाया,
वह हाकिम खां सा अब वफादार कहाँ?
वह झाला जैसा बलिदान प्रेम ,
वह महाराणा का स्वाभिमान।
जिसकी हुंकार डराती थी,
वह महाराणा प्रताप कहाँ?
वह हल्दी घाटी का बलिदान कहाँ?
वह समर प्रेम वह देशभक्ति
वह रण कौशल स्वाभिमान कहाँ?
वह महाराणा प्रताप कहाँ?
जब से देख रहा हूँ यह गद्दारी ,
जब से देखी पुलवामा घटना
दिल मेरा फिर से है ढूँढ रहा।
वह एकलिंग का दीवान कहाँ?
वह वीर प्रताप का स्वाभिमान
वह देशभक्ति वह देश प्रेम।
बलिदान धरा पर होने हेतु
वह जजबा वह रण प्रेम कहाँ?
जिसे ढूँढ रहा है दिल बार बार,
वह महाराणा प्रताप कहाँ?
वह महाराणा प्रताप कहाँ ?
<strong>रचनाकार - अशोक राय वत्स</strong>
रैनी (मऊ) उत्तरप्रदेश
मो.नं. 8619668341
Hits: 73