कविता ! “वह पहले वाले गाँव कहाँ”

वह पहले वाले गाँव कहाँ, जो हमें लुभाया करते थे।
वह बाबा का संवाद कहाँ, जो हमें रिझाया करता था।।

छुट्टी आते ही गर्मी की,हम गाँव को भागा करते थे।
भरी दुपहरी में बच्चों संग, धूम मचाया करते थे।।

दबे पांव घर से बाहर, बागों में जाया करते थे।
कच्ची अमिया को नमक लगा, चटकारा ले खाया करते थे।।

लू लग जाएगी कड़ी धूप में,सभी यही समझाते थे।
लेकिन हम भी तो दबे पांव,घर से बाहर चल जाते थे।।

गिल्ली डंडा, लुका छुपी, ये खेल हमें लुभाते थे।
नदी नहाने बच्चों संग ,हम मीलों दूर तक जाते थे।।

कहाँ गए वह गाँव हमारे, कहाँ गया वह प्यार दुलार।
कहाँ गए वह गाँव के कुँए,जहाँ मेला सा लग जाता था।।

न घर में चक्की दिखती है,न धान कुटाई होती है।
न चौपालों में रौनक है,न गीत सुनाई देते हैं।।

हो गए ओझल वे दृश्य सभी, अब दिखता है परिवेश नया।
न प्यार रहा है वाणी में,न हीं अब गाँव लुभाते हैं।।

छुट्टी लगते ही गर्मी की,हम गाँव को भागा करते थे।
वह पहले वाले गाँव कहाँ ,जो हमें लुभाया करते थे।।

कवि – अशोक राय वत्स
मो.नं. – 8619668341

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