फागुनी बयार – मौसम ने ली अंगड़ाई है
“मौसम ने ली अंगड़ाई है”
मुखड़ा हुआ गुलाबी देखो,
गोरी कैसे शर्माई है।
होली के रंग ने दिल में
पिया मिलन की आस जगाई है।
खेतों में सरसों ने देखो ,
कैसे ली अंगड़ाई है।
होली के दिन आने से,
मौसम में मादकता छाई है।
आंगन वाले आम की डरिया,
देखो कैसे झुक आई है।
पिया मिलन की आश में गोरी,
मन ही मन इठलाई है।
घर से लेकर बगिया तक में,
रौनक फिर से आई है।
देखो बाबा के होठों पर,
कैसी मस्ती छाई है।
बच्चे से लेकर बूढे तक में,
उमंग नई अब छाई है।
गोरी डूबी मस्ती में,
धरती ने ली अंगड़ाई है।
होली के मौसम में देखो,
सब पर मादकता छाई है।
अब दोष न देना जग वालों,
हर मन में मस्ती छाई है।
होली के मौसम में देखो,
गोरी मिलने को आई है।
यदि मन बहके मेरा लोगों,
मत कहना लाज न आई है।
होली के मौसम में देखो।
मौसम ने ली अंगड़ाई है।
रचनाकार कवि – अशोक राय वत्स
रैनी (मऊ), उत्तरप्रदेश
मो. 8619668341
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