महाशिवरात्रि ! 04 मार्च 2019 को

वाराणसी (उत्तर प्रदेश),03 मार्च 2019। महाशिवरात्रि देवाधिदेव महादेव की आराधना का मुख्य पर्व है। परम्परा के अनुसार फाल्गुन महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को यह पर्व हर साल मनाया जाता है। चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। इसलिए हर महीने कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भी शिवरात्रि व्रत किया जाता है,जिसे मास शिवरात्रि व्रत कहा जाता है। इस तरह सालभर में 12 शिवरात्रि व्रत किए जाते हैं लेकिन इनमें फाल्गुन महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी अत्यन्त खास है। इस तिथि को महाशिवरात्रि के रुप में मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि व्रत अर्धरात्रिव्यापिनी चतुर्दशी तिथि में करना चाहिए। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस वर्ष सोमवार 4 मार्च को दोपहर 4 बजकर 11 मिनट से चतुर्दशी तिथि लग रही है जो कि मंगलवार 5 मार्च को शाम 6 बजकर 18 मिनट तक रहेगी। अर्धरात्रिव्यापिनी ग्राह्य होने से यानी मध्यरात्रि और चतुर्दशी तिथि के योग में 4 मार्च को ही महाशिवरात्रि मनायी जाएगी।

महाशिवरात्रि पर इस वर्ष दुर्लभ संयोग बन रहा है। इस वर्ष महाशिवरात्रि सोमवार को है। सोमवार का स्वामी चन्द्रमा है। ज्योतिष शास्त्र में चन्द्रमा को सोम कहा गया है। और भगवान् शिव को सोमनाथ। अतः सोमवार को महाशिवरात्रि बहुत ही शुभ माना गया है। सोमवार को शिवजी की पूजा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। महाशिवरात्रि पर सूर्य-चंद्रमा शिव योग बना रहे हैं। ये योग सोमवार को दोपहर 1 बजकर 43 मिनट से शुरू हो रहा है। यह कल्याणकारक एवं सफलतादायक योग होता है। इसमें भगवान शिव की पूजा करने से विशेष फल मिलता है। इसमें वेदाध्ययन, आध्यात्मिक चिन्तन और बौद्धिक कार्य करना भी शुभ माने जाते हैं। शिव योग में पूजन, जागरण और उपवास करने वाले मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता। महाशिवरात्रि पर श्रवण और घनिष्ठा नक्षत्र होने से सिद्धि एवं शुभ नाम के योग बन रहे हैं। वहीं तिथि, वार और नक्षत्र मिलकर सर्वार्थसिद्धि योग भी बना रहे हैं। इन 3 शुभ योगों के कारण महाशिवरात्रि का पर्व और भी खास हो गया है। शिवपुराण के ईशान संहिता में कहा गया है कि इसी दिन शिव करोड़ों सूर्य के समान प्रभाव वाले सूर्य के रूप में अवतरित हुए और इसी दिन उनका, माता पार्वती के साथ विवाह हुआ था। महाशिवरात्रि पर व्रत रखने की परंपरा अत्यंत पुरानी है।

कहा जाता है कि महादेव का व्रत कोई भी व्यक्ति कर सकता है। मनपसंद वर की चाह में कुंवारी कन्याएं तो अपने सुहाग व परिवार की सुरक्षा व मनोवांछित फल की चाह में महिलाएं व्रत रखती हैं। माना जाता है कि महादेव की साधना, आराधना और उपासना से जहां कन्याओं को मनपसंद वर मिलता है, वहीं सुहागिन स्त्रियों के व्रत से उनके पति का जीवन और स्वास्थ्य हमेशा अच्छा बना रहता है।
मान्यता है कि महाशिवरात्रि का व्रत रखने से लोगों को पापों से मुक्ति मिलती है और आत्मा की शुद्धि होती है। मान्यता है कि शिवरात्रि के दिन शिवालयों में भगवान शिव का आगमन होता है, इसीलिए इस दिन शिवलिंग के विशेष पूजन की परंपरा है।
इस व्रत में श्रद्धालुओं द्वारा प्रात:काल स्नान करके शिवलिंग पर दूध, दही, जल, पुष्प, बेलपत्र, धतूरा और बेर आदि चढ़ाए जाने का रिवाज है। दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अलग-अलग तथा सबको एक साथ मिलाकर पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराकर जल से अभिषेक करें। चारों प्रहर की पूजा में शिवपंचाक्षर मंत्र “ऊं नम: शिवाय” का जाप करें। भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान, इन आठ नामों से फूल अर्पित कर भगवान शिव की आरती और परिक्र
अगले दिन (5 मार्च, मंगलवार को ) सुबह सुबह नहाकर भगवान शंकर की पूजा करने के बाद व्रत का समापन करें।

शुभ मुहूर्त
सुबह 07:15 से 08:14 तक सुबह 09:43 से 11:10 तक दोपहर 02:02 से 03:30 तक दोपहर 03:30 से शाम 04:39 तक।

शिवरात्रि पूजा के शुभ मुहूर्त –
पहले प्रहर की पूजा – शाम 06:22 से रात 09:28 तक दूसरे प्रहर की पूजा – रात 09:28 से 12:35 तक तीसरे प्रहर की पूजा – रात 12:35 से 03:41तक चौथे प्रहर की पूजा – रात 03:41 से अगले दिन सुबह 06:48 तक

Views: 41

Leave a Reply