रामलीला! बालि सुग्रीव युद्ध, बालि बध, हनुमान सीता मिलन एवं लंका दहन का हुआ मंचन

गाजीपुर(उत्तर प्रदेश),18 अक्टुबर 2018। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वाधान में स्थानीय रामलीला स्थल लंका के मैदान में बालि सुग्रीव युद्ध, बालि बध, हनुमान सीता मिलन एवं लंका दहन का मंचन किया गया।
मंचन में दर्शाया गया कि श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण संग सीता की खोज करते हुए ऋष्यमूख पर्वत पर पहुंचे। वहां किष्किन्धा नरेश बालि के भाई सुग्रीव अपने बानरी सेना के साथ रहते थे। राम लक्ष्मण के साथ हनुमान वहां पहुंच कर सुग्रीव से बताते हैं कि दोनों वीर पुरुष श्रीराम व लक्ष्मण है जो वनवास काल में अपने भार्या सीताजी को खोजते हुए यहां आये हैं। यह सुन सुग्रीव प्रभु श्रीराम के चरणों मे दण्डवत किया। श्रीराम ने महाराज सुग्रीव को अपने गले लगाते हुए अग्नि प्रज्ज्वलित कर मित्रता का कसम खायी । सुग्रीव अपने बड़े भाई बालि के सताये जाने से सम्बन्धित सभी बातों को श्रीराम को बताते हैं ।श्रीराम नें सारी बातों को सुन सुग्रीव से कहते है कि आप जाओ और वालि से युद्ध करो और मै अपने बाण से बालि को मार गिराता हॅू। इतना बल पाने के बाद बालि के पास सुग्रीव जाकरके युद्ध के लिए ललकारता है। सुग्रीव के ललकार को सुनकर बालि बाहर आता है और युद्ध शुरु हो जाता है। मौका देखकर श्रीराम ने अपने वाण को चलाया तो बालि क बजाय वह बाण सुग्रीव को लग जाता है। सुग्रीव दौड़ते हुए युद्ध भूमि से श्रीराम के पास आकरके कहते है कि आपने यह क्या किया। मारना था बालि को मार दिये हमें। इस बात को सुनकर श्रीराम कहते है कि दोनो का रुप एक देखकर मै पहचान नही सका। अब मै तुमको माला देता हॅू इतना कहने के बाद सुग्रीव को श्रीराम ने माला पहनाकर युद्ध के लिए दोबारा भेजते है। बालि सुग्रीव में युद्ध होता है, तभी मौका पाकर श्रीराम ने अपने वाण को पेड़ का सहारा लेकर मारते है वह बाण बालि के सीने में लग जाता है, तब बालि मुर्छित होकर जमीन पर गिर जाता है। जब उसको होश आता है तब वह देखता है कि श्रीराम सामने खड़े है। उसने कहा कि हे प्रभु धर्म हेतु अवतरेहॅू गोसाई मारेहॅू मोहि ब्याध की नाहि। मै बैरी सुग्रीव प्यारा कारण कवन नाथ मोहि मारा। इतना बात सुनने के बाद श्रीराम ने कहा कि हे बानरराज बालि सुनो, अनुज बधू भगिनि सुति नारी, सुन सठएं सम कन्या चारि। इन्ही कुदृष्टि विलोकिही जेही ताहि बधै कछू पाप न होई। बालि जब श्रीराम से इस बात को सुनता है तो वह मौन हो जाता है और श्रीराम का ध्यान देते हुए अपने शरीर को त्याग देता है। इसके बाद पति के मृत्यु को सुनकर तारा रोती विलखती अपने पति के पार्थिव शरीर के पास आती है उसका रोना देखकर श्रीराम ने उसको सान्त्वना देते हैं। श्रीराम लक्ष्मण को भेंजकर सुग्रीव को किष्किन्धा का राज तिलक देकर किष्किन्धा का राज सौप देते है। इसके बाद महाराज सुग्रीव सीताजी की खोज के लिए अपनी बानरी सेनाओं को चारो दिशाओं में भेजते हैं। श्रीराम का आदेश लेकर जामवन्त, अंगद हनुमान आदि बानरी सेना समुद्र के समीप जाकर हनुमान जी को बल पर ध्यान दिलाते है। जामवन्त जी के बात को सुनकर हनुमान जी विशालकाय रुप बनाकर सतयोजन समुद्र को लांघ कर लंका पहुचकर सीताजी को खोजते है। इसी दरमियान लंका मे विभिषण का कुटिया को देखते है कुटिया पर श्रीराम नाम अंकित व तुलसी जी का पेड़ देखते है और मन में सोचने लगे कि लंका निशिचर निकट निवासा इहा कहा सज्जन करवासा, इसके बाद वे अपने मन मे सोचने लगे कि राक्षस के राज्य में राम भक्त ऐसा कौन व्यक्ति है जब विभिषण जी बाहर आकर देखते है तो एक दरवाजे पर एक ब्राम्हण खड़ा होता देखकर उनसे परिचय पूछते है। जब हनुमान जी से परिचय पता चलता है तो उनके पैरो पर विभिषण जी गिर कर प्रणाम करते है तो हनुमान जी अपने असली रुप में आकर सीताजी के बारे मे पूछते हैं। विभिषण जी बताते है कि हे हनुमान जी, माता सीताजी को लंका पति रावण हरकर ले आया और उन्हे अशोक वाटिका के नीचे रखा है। इतना सुनने के बाद अशोक वाटिका में जाते है और सीता जी से मिलने के बाद सीताजी से पूछकर बगीचे के फल खाते हैं और पेड़ को तोड़ते है। राक्षसो से जब रावण को पता चलता है कि कोई बानर आकर फल खा रहा है और बगीचे के पेड़ो को तोड़कर उजाड़ रहा है तब रावण मेघनाथ को भेजता है। मेघनाथ हनुमान जी को ब्रम्हफास में बांधकर रावण के दरबार मे ले जाते हैं, जहां रावण के आदेशानुसार हनुमान जी के पूंछ में आग लगा देते है। आग लगता देखकर हनुमान जी अतिलघु रुप धारण कर आकाश में उड़ते है और नीचे आते हुए सोने की लंका को जलाकर राख कर देते हैं। फिर वे अशोक वाटिका में आकर सीताजी को प्रणाम करते हैं और उनसे निशानी स्वरुप चूणामणि लेकर वापस श्रीराम जी के पास चले जाते हैं। रामलीला मंचन के इस मौके पर कमेटी के पदाधिकारी गण और हजारों की संख्या में दर्शकगण मौजूद रहे।

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